711 ईस्वी में आरबों ने सिंध जीता। वहाँ सारी शासन व्यवस्थाएँ हाथ में आते ही भारत के अन्य भू भाग पर अधिकार करने की उनकी इच्छा जाग गई। मुल्तान मे इतना धन मिला की मुल्तान को सुवर्ण नगरी का खिताब दे दिया। जब आरबों को ये पता चला की भारत के अंदर के भागों में और भी सोना है तो वे लालच को रोक नहीं पाये और भारत जीतने की योजना बनाने लगे।
आरबों के लगातार हमलों से राजस्थान और गुजरात के बड़े राज्य कमजोर हो गए थे। तभी 725 ईस्वी में राजस्थान की जालोर जागीर में नागभट्ट ने कमान संभाली। आरबों के आक्रमण कि वजह से सारे भारतीय राज्य बिखर गए थे। तभी राजस्थान में दो महान शासक का उद्भव हुआ। जिनमें एक नागभट्ट प्रतिहार(भगवान श्री राम के भाई लक्ष्मण जी के वंशज) वंश के और दूसरे मेवाड़ के काल भोज जो बाद में बापा रावल के नाम से प्रसिद्ध हुए। जब 726 ईस्वी में सिंध का आरब शासक जुनैद गजवा-ए-हिंद का ख्वाब ले के आया तभी नागभट्ट और बापा रावल ने उसे मिल के हराया। नागभट्ट ने 730 ईस्वी में राजा तौर पे कमान संभाली। आरबों के सामने लड़ने के लिए बड़ी सेना और बड़ा राज्य जरूरी था। इसीलिए स्थानिक जागीर और शासकों को हराकर अपने आधीन किया।
जुनैद के बाद सिंध में अंधाधुंधी का माहौल था। जब आरबों का खलीफा हिशम को सिंध की अंधाधुंधी का पता चला तब उसने इराक की आरब सेना सिंध भेजी और वहाँ आरबों की व्यवस्था स्थिर की। खलीफा अब किसी भी हाल में भारत पर इस्लामिक शासन चाहता था इसीलिए इसने बड़ी फौज इकट्ठा की। और 738 उस फौज को राजस्थान, गुजरात और मालवा पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया। जिसका सेनापति अल हकम था।
लेकिन अभी भारत मे कुछ राजा शक्तिशाली बन चुके थे। समय को देखते हुए नागभट्ट ने भारत के सभी राजाओं को इन आततायी म्लेच्छों से लड़ने के लिए एक होने का निमंत्रण भेजा। उस निमंत्रण का स्वीकार करते हुए भारत के राजाओं का एक संगठन बना जिन में प्रतिहार वंश के नागभट्ट प्रथम, मेवाड़ के बापा रावल, गुजरात से जयभट्ट, नवसारी और कर्नाटक के चालुक्य राज्य, जैसे राजाओंने आरबों को सबक सिखाना तय किया। इस अभियान में प्रतिहार, चालुक्य, काछेला, सैन्धव, चवोत्कट(चपोत्कट, चावडा) और राष्ट्रकूट योद्धाओं का योगदान रहा।
738 ईस्वी में आरबों ने अपनी सेना अलग अलग दिशा से राजस्थान, गुजरात, मध्य भारत और दक्षिण भारत जीतने के लिए भेजी। तब नागभट्ट ने सभी हिंदु राजाओं से मिलकर आरबों को हंमेशा के लिए हिंद विजय के सपना भुलाने के लिए व्यूह रचना बनाई। नागभट्ट की अगवाई में सभी हिंदु राजाओं ने अपने अपने क्षेत्र में सेना जमाकर आरबों की राह देखने लगे।
जब आरब सेना अवंती की तरफ बढ़ रही थी तब नागभट्ट ने सभी साथी राजाओं को विचार विमर्श के लिए बुलवाया। आरबों को हंमेशा के लिए भारत का रास्ता भुला देना चाहते थे। तभी सेनापति के सुचन से युद्ध के नियमो को न माननेवाले, गौ मांस भक्षी और बलात्कारी आरबों को उसी की भाषा में आक्रमण कर के मिट्टी में मिलाने के लिए रात में ही आक्रमण किया गया। सुबह होते तक आरब सेना का एक भी सैनिक जीवित नहीं बच पाया था। आरबों ने कभी किसी भारतीय राजा से ऐसी आक्रामकता के बारे में सोचा तक नहीं था। इसीलिए आरब इतिहासकारों ने अवंती पर आक्रमण का तो उल्लेख किया लेकिन परिणाम का उल्लेख नहीं किया।
तो आरबों की दूसरी सेना गुजरात से होते हुए दक्षिण भारत की और जा रहे थे। तब नवसारिका (नवसारी) के पास हिंदु राजाओं के संगठन ने आरबों को ललकारा। इस युद्ध में सेना की अगवाई चालुक्य पुलकेसीन को सोपी गई थी। जब आरब सेना पर भयंकर प्रहार किया। आरब सेना तितर भीतर हो गई और हार के पीछे मुड़ के भागी तब नागभट्ट की योजना के अनुसार भागती सेना को सम्पूर्ण रूप से खतम करने की योजना बनाई गई थी। जिसमे अलग अलग क्षेत्र से भागती सेना जहां से गुजरती थी वहाँ के शासक आरब सेना पर अचानक हमला करके आरबों को खतम करते थे। जैसे जालोर में प्रतिहारों, मेवाड़ में बापा रावल, उत्तर गुजरात में चवोत्कट(चावडा), दक्षिण गुजरात के चालुक्य, सौराष्ट्र के सैन्धव, कच्छ के काछेला, कच्छ और सौराष्ट्र के बीच समुद्री प्रदेश के मेरो ने चुन चुन के आरब सैनिको को मारा। जिसमें भागती हुई सेना के सेनापति अल हाकम की मेरो के हाथो मौत हो गई।
सेना पति अल हकम की मौत के बाद आरबों में आपसी जंग छिड़ी हुई थी। सत्ता के लिए आपस में लड़ रहे थे। इसीलिए आरबों का कोई आक्रमण भारत पर नहीं आया।
लेकिन अब भारत के राजाओं मे सत्ता के लिए आपसी लड़ाई होने लगी थी। चालुक्य वंश के विक्रमादित्य द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उत्तराधिकारी किर्तिवर्मन राजा बने। लेकिन 750 ईस्वी में उनके आधीन राज्य के सेनापति राष्ट्रकूट वंश के दंती दुर्ग ने सत्ता पलट की और चालुक्य के राज्य को जीतने लगा। तभी नागभट्ट ने उज्जैन अपनी सेना भेजकर उज्जैन को बचाने का प्रयत्न किया लेकिन शायद नागभट्ट की सेना हारी। लेकिन 753 ईस्वी में नागभट्ट ने उज्जैन दंती दुर्ग से जीत लिया और मालवा पर अपना अधिकार कर लिया। 757 ईस्वी आते आते चालुक्य कीर्तिवर्मन की सारी सत्ता समाप्त हो गई। बचा हुआ दक्षिणी भारत का राज्य भी दंतिदुर्ग ने जीत लिया। लेकिन उज्जैन को प्रतिहारों ने अपनी राजधानी बनाया।
भारत में ऐसे मजबूत राज्यों के उद्भव के बाद आरब फिर भारत नहीं आए। आरबों का राज्य सिर्फ मुल्तान और मंसूरा के बहुत ही छोटे से हिस्से में सिमट गया। बाद में 10 वी सदी में मुहम्मद गजनी आया जिसने आरबों को हटाकर अपना राज्य स्थापित किया।
आगे प्रतिहार वंश मे नागभट्ट द्वितीय हुए जिन्होंने कन्नौज जीता और इसी वंश में आगे मिहिर भोज प्रथम हुए। ये सारी जानकारी ग्वालियर अभिलेख से मिलती है की किस तरह नागभट्ट प्रथम ने म्लेच्छों की विशाल सेना को हराया। नागभट्ट प्रथम अपने योगदान के लिए हंमेशा जाने जाएंगे।
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