चांडाल कन्या का यह वर्णन पढ़ कर अनेक प्रश्न पेदा होते है पहले तो यही कि फ़ाहियान के वर्णन से कितना भिन्न है? दूसरे एक बाण एक वात्सायन ब्राह्मण है। उसके द्वारा चांडाल बस्ती का ऐसा वर्णन कर चुकने के बाद चांडाल कन्या का ऐसा ऐश्वर्यशाली वर्णन करने में कुछ संकोच नहीं होता। क्या इस वर्णन का छुआछूत से जुड़ी प्रचंड घृणा की भावना से मेल बैठता है?