राजा बिंबिसार हर्यक वंश के राजा थे। उनका शासनकाल 558 BCE से 491 BCE का रहा। वह अपने ऐतिहासिक सवाल के लिए मशहूर है जो उन्होंने जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी से सवाल किया कि रामायण के इतने सारे संस्करण है उनमें कौन सा सही है? इस ऐतिहासिक सवाल से ही साबित होता है कि रामायण महावीर स्वामी के समय भी इतनी लोकप्रिय थी कि रामायण के बहुत सारे वर्जन(संस्करण) थे कि खुद राजा सही वर्जन के जानने के लिए उत्सुक था।

मगध में बृहदत्त वंश का राज्य था। इस वंश का उल्लेख महाभारत में भी आता है। जरासंध इसी वंश का राजा था। इसी बृहदत्त वंश का आखरी राजा जिसकी निःसंतान रहकर मृत्यु हो गई जिससे उनकी जगह उनका मंत्री क्षेमजित(हेमजित) या भट्टीय सर्व सम्मति से राजा बने।

इसी क्षेमजित के पुत्र थे राजा बिंबिसारउनकी राजधानी राजगृह थी बाद में उन्होंने एक गाँव के पास एक किल्ला का निर्माण किया आगे चलकर वह पाटलीपुत्र के नाम से जाना गया। बिंबिसार ने अंग देश के राजा ब्रह्म दत्त को युद्ध में मार दिया और मगध का राज्य विस्तार किया। उसने अपने पुत्र कुनिक को अंग देश का राजा बनाया। वही कुनिक आखिर में अपने अजातशत्रु के नाम से प्रख्यात हुआ। राजा बिंबिसार ने जैन और बौद्ध धर्म के अनुयाईओ को समान रूप से राज्याश्रय किया। जैन और बौद्ध धर्मों को राज्याश्रय दिया। श्रमण करने वाले भिक्षुकों के लिए विहार बनवाए।

राजा बिंबिसार की तीन पत्नियों का जिक्र ऐतिहासिक ग्रंथों में से प्राप्त होता है। जिनमें पहली कोसला राज्य के राजा प्रसन्न जीत की बहन, दूसरी मद्र(आधुनिक पंजाब और हरियाणा) देश की राजकुमारी क्षेमा और तीसरी चेलना लिच्छवी की राजकुमारी।

बिंबिसार के बाद उनके पुत्र अजातशत्रु(कुनिक) ने एक महान साम्राज्य की स्थापना की।

इस तरह से देखा जाये तो राजा बिंबिसार के इतिहास से महाभारत और रामायण कालीन राज वंशो का इतिहास भी प्राप्त होता है। जैसे मद्र देश का उल्लेख महाभारत में है जहां पांडु राजा मद्र देश की राजकुमारी माद्री से विवाह करते है। राजा बिंबिसार के पिता से पहले जो राजवंश था वह जरासंध का वंश था उसी वंश के बाद मगध के राजा बने। ऐसे ही कोसल राज्य का उल्लेख रामायण में भी मिलता है इस तरह से रामायण और महाभारत सम्पूर्ण रूप से ऐतिहासिक ग्रंथ साबित होते है।

हालाकी जैन मुनि विमसूरीजी द्वारा 400 BCE में एक और रामायण का वर्जन लिखा गया जो सम्पूर्ण जैन फिलोसोफी पर आधारित है।

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