अकसर हमें ये जानने को मिलता है की आरबों ने सिंध जीता और ब्राह्मण राजा दाहर(दाहिर) को हराया लेकिन आरबों से पहले सिंध का इतिहास क्या है ये कही भी पढ़ाया नहीं जाता लेकिन ये सिर्फ इतिहास की पुस्तकों में ही रहता है इसीलिए आज सिंध के प्राचीन इतिहास को हम देखेंगे।
दाहर के पिता का नाम चच था। चच अरोर के राय वंश के शासन में मंत्री था। राय वंश का आखिरी शासक राय साहसी की बीमार होकर मृत्यु हो जाने से उनकी विधवा सुहानंदी(सुनंदा) के साथ विवाह कर चच 632 ई. में राजा बना। बाद में वह अपने मंत्री बुद्धिमान से पूछता है कि अरोर के साम्राज्य का आधिपत्य स्वीकार करने वाले कौन से राज्य थे ताकि उन राजाओं से अपना Tribute(कर) वसूला जाये। उसके मंत्री ने चार राज्यों के बारे में बताया उन पर चच ने आक्रमण किया और अपना राज्य विस्तार किया। उसकी दिग्विजय यात्रा इस तरह रही।
- चच सबसे पहले बाबियाह और इस्कंदाह पर आक्रमण करते उसके राजा जेत्तार(चित्र) को हराते है। जिसमें राजा चित्र का जागीरदार चच से मिल जाता है और राजा चित्र को गद्दारी करके मार देता है।
- वहाँ से वह मुल्तान पर आक्रमण करके राजा बछरा को हराते है। बछरा को संधि करनी पड़ती है। आज मुल्तान भले ही पाकिस्तान के पंजाब का हिस्सा हो लेकिन कभी ये सारा प्रदेश सिंधु राज्य के अंतर्गत आता था।
- मुल्तान के बाद वह बुधिया के बसर कोटक(लोहाना) काका(काकुत्स) के पिता को हराते है। बसर कोटक संधि करता है।
- फिर वह सिविस्तान के राजा मत्ता(मथ्था) को हराते है। मत्ता भाग जाता है औरवह ब्राह्मणाबाद एवं नेरुन(नारायण कोट) के राजा अघम लोहाना से मदद मांगता है लेकिन वक्त पर मदद ना मिलने पर चच से संधि कर लेता है।
अघम लोहाना के आधिपत्य में तीन राज्य थे – सामा लोहाना, लाखा लोहाना और सहता लोहाना। जब सिविस्तान का राजा मत्ता अघम को पत्र लिखता है और अघम लोहाना को यह पत्र मिलता है तो वह सिविस्तान के राजा मत्ता को जवाबी पत्र लिखता है और वह पत्र चच के हाथो लग जाता है इसीलिए चच अघम पर आक्रमण करने कि सोचता है। फिर वह अघम लोहाना को पत्र लिखता है। (चच नामा फारसी में लिखा है लेकिन मूल संस्करण(version) तवारीख ए अल हिंदवा अल सिंध नाम कि अरबी बुक थी जिसमें सारे राजाओं के पत्र का अरबी भाषांतर है)
अलोर के राजा चच का ब्राह्मणाबाद के राजा अघम लोहाना को पत्र copied from Chachnama pg no. 32
“You consider yourselves kings of the time, from your power and grandeur, origin and lineage. Though I have not inherited this kingdom and sovereignty, and this wealth and affluence, this power and dignity, from my father and grandfather, and though this country has not been ours before, still my elevation and my improved fortunes are due to the grace of God. It was not by my army that I won them, but the One God, the Peerless, the Incomparable, the Creator of the world, has given me the kingdom by the blessing of Selaij; and it is from him that I receive help in every thing. I do not depend upon any other person for assistance. He is the Accomplisher of my undertakings and the Giver of help in all my movements. He is the Bestower of victory and success in all contests and oppositions. We have been graciously javoured with the blessings of both the worlds. If (you think) your power and prestige are the creation of your own bravery, courage, resources, and splendour, then, without doubt, your fortunes will decay, and the vengeance of death is but the legitimate due of your soul.”
Chachnama page no. 32
इसी पत्र से पता चलता है कि अघम प्राचीन लोहाना राजवंश का था। इस वंश और राज्य का उल्लेख और भी आगे आयेगा। इस राजा अघम लोहाना ने एक नगर अघम कोट बसाया था जो आज सिंध का मोहन जोदड़ो के बाद का दूसरा सब से बड़ा टीला है। इस भव्य नगर को मदद खान पठान ने पूरी तरह खतम कर दिया। आज भुतिया खण्डहर खड़े है।
Reference: Agham Kot (1) Agham Kot or Aghamani, Badin, Heritage of Sindh (2) Agham Kot — a forgotten archaeological site of Sindh, Daily Times
अब चच ने जिस राय वंश के राजा की जगह अपना ब्राह्मण वंश स्थापित किया वह राय वंश का शासन 489 से 632 CE तक था। इस वंश को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। कोई इसे मौर्य वंश की शाखा बताकर शूद्र साबित करने की कोशिश करता है लेकिन मौर्य वंश के भी क्षत्रिय होने के प्रमाण मिलते है तो कुछ लोग इसे राजपूत वंश का बताते है। इस वंश के पाँच राजा हुए।
राय वंश से पहले रोर वंश का शासन था। इस वंश का शासन काल 450 BCE से 489 AD तक रहा याने 900 साल से भी ज्यादा रहा। जिसके 42 राजाओं के नाम प्राप्त होते है। इस वंश को बौद्ध शास्त्रों में भी जगह मिली है इनके अनुसार ये वंश और भी ज्यादा प्राचीन है और सौवीर राज्य की राजधानी रोरुका थी और इनके राजा रुद्रायन थे और मगध के राजा बिंबिसार और इस रोर वंश के राजा के बीच अच्छे संबंध होने की बात कही है। मगध के राजा बिंबिसार का शासन काल 544 BCE से 492 BCE के बीच का था।
भारत के इतिहास में ग्रीक से पहले पारसी राजा दरीअस प्रथम का आक्रमण हुआ था। दरीअस ने 516 BCE में सिंध पर आक्रमण करके यहाँ के राजाओं को अपना आधिपत्य स्वीकार करवाया था। और यहाँ अपने लश्करी थाने लगाए थे और यहाँ के स्थानिक राजाओं से tribute(कर) वसूलता था। लेकिन सिकंदर ने जब पारसिक(ईरान) देश को तबाह किया तो हिंदुस्तान के हिन्दू राजा हल और non hindu (probablyबौद्ध) राजा काफंड के बेटे आयन ने मिलकर दरीअस के सेनापति महरा को भागा दिया था। Ref Book: मजमुल-उत्त तवारीख-The history of India as told by its own historian, Author: H. M. Elliot, Page no. (100-112)
इसके बाद सिंध को चार भागो में विभाजित कर दिया गया।
(1) झोर(Zor, Ror, Arore) (2) इस्कंदाह (अस्कलंदुस, Asklandus) (3) सिविस्तान 4) लोहाना
अब आपको इस्कंदाह, लोहाना और सिविस्तान का संक्षिप्त इतिहास बताता हूँ।
इस्कंदाह: इस राज्य का वर्णन महाभारत में आता है की इस्कंदाह जाट और मेर की वस्ती वाला राज था। मेर और जाट के बीच संघर्ष के बाद दोनों दुर्योधन(महाभारत) के पास गए और बिनती की कि उन पर कोई राजा नियुक्त हो। इसीलिए दुर्योघन ने अपनी बहन दुष्यला के पति जयद्रथ को वहाँ का राजा बना दिया।
लोहाना: भगवान श्री राम के पुत्र लव ने पाकिस्तान का लाहोर शहर बसाया और लव के वंशज लोहाना कहे गए जो लोह-राणा (लोहर-राणा) का shortform है। Ref: Kashmir: Its Aborigines and Their Exodus
इसके अलावा महाभारत में एक श्लोक है जिसमे अर्जुन का अलग अलग राज्यों से युद्ध का विवरण है।
लोहान्परमकाम्बोजानृषिकानुत्तरानपि
सभा पर्व (दिग्विजयपर्व)२.२४.२४
भगवान राम के पुत्र महाराज लव का राज लाहोर से उत्तर-पूर्व में कश्मीर और दक्षिण में पाताल(पत्तल) तक था।
आरबके बाद इस लोहाना वंश के लोग कच्छ(गुजरात), पंजाब, कश्मीर कि तरफ चले गए। पृथ्वीराज के वीर सेनापति आजानुबाहु(अजानबाहु) लोहाना के बारे में भी यहाँ से पढ़ सकते है। Ref: Prithviraj Raso Vol. – I by Chandarbardai थानेसार के युद्ध में इसी योद्धा ने अपना पराक्रम दिखाया था। REf: Battle of Thanesar
सिविस्तान: हमने पुरानो में शिवि राजा की कहानी तो सुनी ही होगी जिसमें राजा शिबी शरणागत वत्सल थे। इसीलिए धर्मराज और इंद्रदेव ने उनकी परीक्षा लेने के लिए बाज और कबूतर का रूप धरा और बाज कबूतर के पीछे शिकार करने के लिए उड़ा। कबूतर शिबी राजा के चरणो में जा बैठा। शिबी राजा ने कबूतर के बराबर अपने शरीर का मांस बाज को देने के लिए अपने शरीर को कांटा। यही शिबी राजा का राज्य शिबी स्थान याने सिविस्तान कहा गया। ये यदुवंशी राजा थे। सिविस्तान के राजा यदुवंशी राजा थे।
और आखिर में अति प्राचीन कथा में हम भक्त प्रहलाद के बारे में कैसे भूल सकते है जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे। इन सब राजवंशो से पहले मुल्तान पर भक्त प्रहलाद का अधिकार माना जाता है। प्रहलाद पुर मंदिर के बारे में बहोत कम लोग जानते है। इस तरीके से सिंध का इतिहास बहुत ही प्राचीन है। लेकिन आरब आक्रमण के बाद सारी संस्कृति छिन्नभिन्न हो गई। वहाँ की जातियां अपने आपको बचाने गुजरात(कच्छ), राजस्थान, कश्मीर की तरफ चली गई। जिसमें लोहाना, भाटिया और मेर जैसी जातियां गुजरात चली गई। इसका रेकॉर्ड मिलता है।
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