रानी दिद्दा कश्मीर के राजा क्षेम गुप्त की रानी थी। पति के मृत्यु के पश्चात उसने जिस तरीके से राज्य का कार भार संभाला और मुहम्मद गजनी को दो दो बार हराया उसे देखते हुए Women Empowerment का असली उदाहरण यही रानी हो सकती है जिसने इतिहास में प्रथम बार गुरिल्ला युद्ध किया फिर भी हमारे इतिहास से गायब क्यों है?
रानी दिद्दा का जन्म 924 ई. मे राजौरी पुंच के लोहर वंश के राजा सिंह राजा के यहाँ हुआ। दिद्दा की माता काबुल की हिंदु शाही भीम की बेटी थी। ऐसे वह भीम शाही की नाती थी। दिद्दा के पिता सिंह राजा वारिस के तौर पे एक पुत्र चाहते थे लेकिन उसकी बजाय एक बेटी दिद्दा का जन्म हुआ। कहा जाता है की उसके पिता उसकी उपेक्षा करने लगे जब वह पोलियो जैसी बीमारी से ग्रसित होकर एक पैर से अपाहिज हो गई। दिद्दा का चचेरा भाई विग्रह राज सिंह राजा के राज्य पर नजर लगाए बैठा था। लेकिन दिद्दा ने हार नहीं मानी उसने वह हर विद्या हांसल की जो एक एक राजकुमार के पास होती है।
दिद्दा जब बड़ी होती है तो उसके जीवन में एक सुखद घटना घटती है की शिकार पे उसकी मुलाक़ात श्रीनगर के राजा क्षेम गुप्त से हो जाती है। दिद्दा बहुत ही खुब सुरत थी और अपाहिज होने के बावजूद वो शस्त्र चलाने में इतनी माहिर थी ये देखके क्षेमगुप्त मोहित हो जाते है और दिद्दा के पिता को विवाह का प्रस्ताव भेज देते है। वैसे क्षेम गुप्त विवाहित ही थे उसकी प्रथम पत्नी उसके मंत्री फाल्गुन की बेटी सुगंधा थी। लेकिन सिंह राज द्वारा प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है और 950 ई. में दिद्दा का विवाह क्षेमगुप्त से हो जाता है। विवाह के बाद दिद्दा राज्य की ज़िम्मेदारी उठाने लगी थी। वो क्षेमगुप्त को हर संभव तरीके से मदद करती थी।
राजा क्षेम गुप्त अपनी पत्नी के नाम से जाने गए। उन्हे दिद्दक क्षेमगुप्त(सेनगुप्त) के नाम से से पुकारा जाता था। क्षेम गुप्त ऐसे पहले राजा थे जिसने अपनी पत्नी के नाम से सिक्के निकाले थे। उसके बाद दिद्दा को खुद को एक भाई याने दिद्दा के पिता सिंह राजा के यहाँ एक एक बेटे का जन्म हुआ जिसका नाम उदय राज रखा गया। तो तो दूसरी तरफ दिद्दा को खुद को अभिमन्यु नाम को पुत्र का जन्म हुआ।
दिद्दा की दोगुनी खुशी ज्यादा दिन तक नहीं टिकी। 958 ई. में दिद्दा के पति क्षेम गुप्त की शिकार पे अकस्मात होकर मृत्यु हो जाती है। दिद्दा की मुश्किलें और उसके विजय की अब शुरुआत होने वाली थी।
राजा क्षेम गुप्त की दूसरी पत्नी सुगंधा थी। सुगंधा का पिता फाल्गुन अब दिद्दा को रास्ते से हटाने के लिए षड्यंत्र करने लगा। उसने दिद्दा क्योंकि दिद्दा राजा की अति प्रिय थी उसे सती बनाने की योजना बनाई। लेकिन दिद्दा शस्त्र विद्या के साथ साथ शास्त्र और कूटनीति की भी विद्वान थी। परिस्थिति को भांप कर दिद्दा ने अपनी प्रजा को बताया की अगर उनके स्वर्गीय पति को कुछ भी देना हो तो वह अखंडित होना चाहिए, क्योंकि दिद्दा अपाहिज थी इसीलिए वो सती नहीं हो सकती। दिद्दा ने सारे राज पुरुषों एवं प्रजा को ये विश्वास दिला दिया। इसीलिए अब फाल्गुन की चाल उलटी पड़ गई और उसकी खुद की बेटी सुगंधा को सती होना पड़ा। क्योंकि दिद्दा के सामने हर चाले उलटी पड़ती थी इसीलिए फाल्गुन ने कूटनीति शुरू करके दिद्दा को चुड़ैल रानी और लंगड़ी रानी जैसे उपनाम भी प्रचलित करना शुरू कर दिया। लेकिन दिद्दा की कार्यवाही की वजह से फाल्गुन को भागकर नजदीकी राज्य में शरण लेनी पड़ी। अब दिद्दा अपने बेटे अभिमन्यु की राजमाता बनाकर शासन चलाने लगती है।
दिद्दाने उससे जलने वाले सारे राज पुरुषों पर कठोर कार्यवाही करके दबाया या भगाया। कुछ ऐसे थे जिनको सिर्फ धन चाहिए या पद चाहिए उन्हें राज्य में पद और धन दे के अपनी तरफ कर दिया। एक और घटना घटती है कि दिद्दा के माता-पिता कि हत्या हो जाती है और उसका चचेरा भाई विग्रह राज लोहर राज्य का राजा बन जाता है। इसीलिए दिद्दा के अपने भाई उदय राज को दिद्दा के पास आकर शरण लेनी पड़ती है। अभी 972 ई. में अभिमन्यु की मृत्यु भी हो जाती है तो अभिमन्यु का पुत्र नंदि गुप्त को राजा बनाया जाता है। लेकिन एक ही साल में नंदी गुप्त बीमार होकर मर जाता है तो दिद्दा का दूसरा पौत्र अभिमन्यु का दूसरा पुत्र त्रिभुवन गुप्त को राजा बनाया जाता है लेकिन उसकी भी दो वर्ष में मृत्यु हो जाती है उसके लिए दिद्दा को जिम्मेदार ठहराया जाता है। 975 में दिद्दा का तीसरा पौत्र भीम गुप्त भी राजा बनता है। दिद्दा ने तुंग नाम के चरवाहा की विद्वता से प्रसन्न होकर अपना मंत्री बनाया। तब दिद्दा की उम्र 55 साल हो चुकी थी। विरोधिओं ने दिद्दा पर चारित्र्य हिनता का आक्षेप लगाया। अंग्रेज़ इतिहासकारों ने भी दिद्दा के विषय में तर्क हिन आरोपों के स्वीकार किया लेकिन दिद्दा का पोता तब राजा था और दिद्दा की उम्र को देखते हुए सिर्फ एक स्त्री द्वारा पुरुषों के समान सम्राट जैसा स्थान पाना और सम्राज्ञी बनने से ईर्षा का भाव उत्पन्न होना साफ दिख रहा है। इसीलिए इस विषय में कोई तथ्य नहीं की दिद्दा का चारित्र्य पतन हुआ हो। भीम गुप्त की 982 ई. में मृत्यु हो जाती है तो दिद्दा अपने भाई उदय राज के बेटे संग्राम राज को दत्तक लेती है।
इसी दौरान महमूद ग़ज़नवी का आक्रमण हुआ। उस वक्त सिर्फ एक लुटेरा था और मंदिरों को तोड़ता था और मंदिरों के धन को लुटता था। उसने कश्मीर पर 45,000 सैनिकों की विशाल सेना के साथ आक्रमण किया। दिद्दा को के अचानक हुए आक्रमण के बारे में पता चला। लेकिन दिद्दा इन सबकी समझ से परे थी। दिद्दा ने महज 500 सैनिको के साथ योग्य जगह पसंद करके मोरचाबंदी की और महमूद ग़ज़नवी की राह देखने लगी। जब महमूद ग़ज़नवी आया तब उसकी सेना पर तुट पड़ी। इतिहास में पहली बार गुरिल्ला पद्धति से युद्ध हुआ। महमूद ग़ज़नवी इस तरीके से व्युहात्मक जगह पर से अचानक धावा बोला जाने के युद्ध अभ्यास जानता नहीं था। सिर्फ 45 मिनिट में पूरी बाजी पलट गई। महमूद ग़ज़नवी की सेना दुंग दबाकर भाग खड़ी हुई।
कहा जाता है की 997 ई. में महमूद ग़ज़नवी के पिता सुबुकटीजीन की हत्या कश्मीर के अंतर्गत लोहकोट के किल्ले के राणा जसाराज (जसराज) लोहाना द्वारा की जाती है तो वह फिर बदला लेने के लिए लोहकोट पर आक्रमण करता है। अब महमूद ग़ज़नवी ने दुबारा आक्रमण किया। लेकिन अब दिद्दा बहुत ही शक्तिशाली बन चुकी थी और उसकी विशाल सेना ने महमूद ग़ज़नवी को अपनी विरता का वह स्वाद चखाया कि महमूद ग़ज़नवी को वह स्वाद बिलकुल पसंद नहीं आया और कश्मीर का रास्ता हमेशा के लिए छोड़ दिया और मंदिर लूटने गुजरात का रुख किया।
दिद्दाने 1003 ई. तक राज किया और जब दिद्दा की मृत्यु होती है तो उसका दत्तक पुत्र संग्राम राज गद्दी पे बेठता है है और यहाँ से लोहर वंश की शुरुआत होती है। दिद्दा ने अपने जीवन काल में अनेक मंदिर, बौद्ध विहार बनवाए और अपनी प्रतिष्ठा सुधारने की कोशिश की। दिद्दा के नाम के सिक्के भी है।
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