जम्मू कश्मीर की समस्या कहने से ऐसा बोध होता है कि यह सम्पूर्ण कश्मीर की समस्या है जबकि यदि हम कश्मीर के तीनों भागों को देखें तो न तो जम्मू में तरह की अशांति है और न ही लद्दाख में। कश्मीर में अशांति है लेकिन वह भी एक सीमित समुदाय द्वारा प्रायोजित हिंसा के कारण है। कश्मीर में हिन्दू मुसलमान और बौद्ध मुख्यतया रहते हैं । मौजूदा समस्या में एकमात्र कश्मीरी मुसलमानों की ही भागेदारी दिखती है। तो सवाल उठता है कि यह समस्या कश्मीर की है या कश्मीरी मुसलमानों की। आंकड़े कहते हैं कि कश्मीर में उपद्रव फैलाने वाले एकमात्र कश्मीरी मुसलमान ही हैं। कश्मीर में एक नारा चलता है आजादी का मतलब क्या .. ला इलाही इल्ल्लिल्लाह , पाकिस्तान से रिश्ता क्या.. ला इलाही इल्ल्लिल्लाह। कहने का मतलब ये है कश्मीर का मसला राजनैतिक या वहाँ के पिछड़ेपन से क्षोभ से नही बल्कि खालिस “कट्टर इस्लामिक रिकग्निशन” से जुडा हुआ है। यह एक ‘डेवलपमेंटल इशू’ नही वरन “वहाबी फैलाव” का मुद्दा है। सरकारें इस बात को समझती हैं या नही समझती हैं पर खुल्ला खेल जारी है। अलगाववादी गिलानी जो भारत के हवा पानी दवाओं और सुरक्षा पर ज़िंदा है बोलता है कि यदि कश्मीर सड़कें सोने से भी भर दी जाएँ फिर भी वह प्रतिरोध करना नही छोड़ेंगे। इस कथन के क्या निहितार्थ हैं ? इसके मायने यह हैं कि जो 80 हजार करोड़ की रकम सूबे को अनुदान के तौर पर दी गयी उससे कश्मीर में रोजगार और विकास आयेगा स्थिरता आयेगी या घाटी शांत हो जायेगी ऐसा सोचना बेवकूफी होगी। आप पत्थर फेंकने वाले हाथों में लैपटॉप देने की बात कर रहे हैं वह लैपटॉप को पत्थर के मानिंद आप पर फेंकेंगे। आप कहते हैं कि इनके एक हाथ में कुरआन दूसरे हाथ में लैपटॉप हो तो जान लीजिये यह एक अत्यंत खतरनाक स्थिति है। कुरआन की आयतों की व्याख्या अपनी सुविधानुसार करके लोगों को भडकाने उकसाने और भावनात्मक दोहन का काम निरंतर चल रहा है। ध्यान दिया जाय कि पुरानी आदत और नई तकनीक भयंकर परिणाम देती है। आदत पत्थर फेंकने की है तो लैपटॉप से ये लोग बम बनाकर फिर उसे फेंकेगे।
कश्मीर को आजाद करने की मांग करते हुए कश्मीरी मुसलमान और इनके दिल्ली वाले दोस्त लोग भूल जाते हैं कि कश्मीर सनातन हिंदुत्व का सबसे बड़ा केंद्र रहा है। साधना संस्कृति विज्ञान और सनातन जीवन पद्धति की जड़ें यहाँ सबसे गहरी रही हैं। अगर कश्मीर पर किसी ने अतिक्रमण किया है तो वह अरबी संस्कृति ने किया है और कायदे से उसे वहाँ से जाना चाहिए ताकि कश्मीर स्वतन्त्र हो सके। तो समस्या के मूल में विचारधारा है न कि कोई और कारण। यह विचारधारा वहाबी आतंक विचारधारा है । हरकत-उल-अंसार (मुजाहिद्दीन), जैश-ए-मोहम्मद, लश्करे- तोएबा, अल बद्र, अल जिहाद, स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) और महिला आतंकवादी संगठन दुख्तरानेमिल्लत जैसे दुनिया के सौ से ज्यादा आतंकवादी संगठनों के सरगना वहाबी समुदाय के ही हैं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, पाकिस्तानी की गुप्तचर संस्था आईएसआई के प्रमुख, बंगलादेश की पूर्व राष्ट्रपति खालिदा जिया, कंधार अपहरण कांड का मुख्य आरोपी अजहर मसूद और सलाहुद्दीन, मुंबई बम कांड का मुख्य आरोपी दाऊद इब्राहिम सहित भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अनेक अध्यक्ष और अन्य जिम्मेदार पदों पर आसीन लोग वहाबी विचारधारा को मानने वाले हैं। देवबंद विश्वविद्यालय के कुलपति अल नदवी भी कट्टरवादी विचारधारा के समर्थक रहे हैं । वहाबियों के अनुसार मजहब के आदेश तब तक लागू नहीं होंगे जब तक इस्लामी आधार और व्यवस्था का नियंत्रण स्थापित नहीं हो जाता। कश्मीर उसी वहाबी फैलाव के चपेटे में है जो एक न एक दिन केवल कश्मीर ही नही वरन इस्लाम के अन्य फिरकों के लिए भी घातक साबित होगा ।
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