देश में जहां पिछले कई महीनों से किसान बिल के नाम पर अशांति फैलाने का कार्य करने का कार्य कुछ तथाकथित किसान बनकर बैठे गुंडे और मव्वाली किस्म के लोग कर रहे है किसान कभी भी अपने द्वारा मेहनत से उगाए गए धान को यूं बर्बाद करने के लिए सड़कों पर नहीं फेंकेगा, ये कार्य वो ही कर सकता है जिसको बीज से धान के निकलने का दर्द पता ना हो, ये तथाकथित किसान वो ही मिलेंगे जो शाहीन बाग में भी शामिल थे और आज इस आंदोलन में और कल किसी और अशांति फैलाने वाले कार्य में मिल जाएंगे, भोले भाले किसानों को एमएसपी या धान बिक्री के नाम पर बरगलाने का कार्य कुछ तथाकथित राजनीतिक दलों के दल्ले करने का प्रयास कर रहे है किसानों को धान की कीमतों को लेकर भ्रमित करने में ऐसे ऐसे लोग सामने आ रहे है जिनको खुद कुछ नहीं पता, कल मैं राहुल गांधी का एक भाषण सुन रहा था जिसमें वो ना जाने कहां कहां की बातो को लेकर अदानी अंबानी को टारगेट कर केंद्र सरकार को निशाना बना रहे थे जबकि राहुल गांधी खुद किसानों के प्रति ज्ञान के मामले में 0 (शून्य) है पर राजनीतिक दल के बड़े लीडर होने की वजह से ज्ञान पेलना उनका धर्म है पर अगर इतनी किसानों की चिंता है तो उनके है जीजा और नकली किसान रॉबर्ट वाड्रा पर भी कार्यवाही करने की बात करते क्यूंकि किसानों का ना जाने कितनी लाखों एकड़ जमीन हथियाने में राहुल गांधी के जीजाश्री पर मुकदमे चल रहे है और माननीय जीजा – साला जमानत पर चल रहे है ये तो केंद्र सरकार की नाकामी है कि ऐसे लोगों को अंदर नहीं भेज रहे है
कोरोना महामारी की अधिक खतरनाक होती जटिल स्थितियों के बीच किसानों के आंदोलन का जो उग्र स्वरूप दिल्ली की सीमाओं एवं दिल्ली में दिखा है, जो उन्हें दिल्ली में प्रवेश एवं बुराड़ी ग्राउंड में प्रदर्शन की अनुमति मिली है, वह दुखद ही नहीं, चिंताजनक भी है। यह आन्दोलन किसानों के हितों से अधिक राजनीतिक कुचेष्टाओं का षड़यंत्र है। किसानों के जीवन को संकट में डालना एवं उन्हें आन्दोलन के लिये उकसाना राजनीतिक विसंगति एवं षड़यंत्र को ही उजागर कर रहा है।
बहुत सावधान रहने की जरूरत है, जब जीवन खतरे में हैं तब किसान आन्दोलन जैसी कोई भी गलत शुरुआत राष्ट्रहित में नहीं है, क्योंकि गणित के सवाल की गलत शुरुआत सही उत्तर नहीं दे पाती। गलत दिशा एवं गलत समय का चयन सही मंजिल तक नहीं पहुंचाता। यह किसान आन्दोलन सहानुभूति से अधिक घृणा का सबब बन रहा है, जिसे रोकना न केवल हरियाणा पुलिस, बल्कि दिल्ली पुलिस के लिए भी चुनौतीपूर्ण बन गया है। वर्तमान की स्वास्थ्य एवं जीवन-रक्षा जरूरतों को देखते हुए केंद्र सरकार यह नहीं चाहती कि किसी भी तरह का विरोध मार्च दिल्ली में आयोजित हो, इसलिए पंजाब से होते हुए हरियाणा के रास्ते दिल्ली में घुसने की कोशिश करने वाले किसानों के खिलाफ कुछ बल प्रयोग भी किया गया है।
सीमा पर बैरिकेडिंग के चलते दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद और सिंघु बॉर्डरों पर वाहनों के लंबे जाम की समस्या देखी गई है। मेट्रो सेवाओं पर भी असर पड़ा है। बड़ी संख्या में आन्दोलन में शामिल किसानों ने कोरोना के लिये जारी निर्देशों की धज्जियां उडाते हुए न माॅस्क का प्रयोग किया है, न सामाजिक दूरी का। इस तरह की अराजकता, अस्थिरता एवं अनुशासनहीनता को रोकना सबसे बड़ी जरूरत है। इसी जरूरत को देखते हुए किसानों को किसी भी तरह से दिल्ली पहुंचने से रोका गया, रोका भी जाना चाहिए। जिन भी राजनीतिक दलों ने इस तरह के आन्दोलन को हवा दी है, वे अराष्ट्रीय है, विघटनकारी है।
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि किसान हित के नाम पर वे अपने-अपने अहं की चिन्ता एवं बिना विधेयकों की मूल भावना को समझे विरोध की राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस एवं अन्य दल इन कानूनों के खिलाफ आमजनता एवं किसानों को बरगलाने, भ्रमित एवं गुमराह करने के लिये छल-कपट एवं झूठ का जमकर सहारा ले रहा है।
पुलिस ने स्पष्ट कर दिया था कि किसान अगर कोरोना महामारी के समय में दिल्ली आने की कोेशिश करते हैं, तो वह कानूनों का उल्लंघन है। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। बहरहाल, आम लोगों या किसानों को हुई परेशानी के लिए राजनीति को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। यह समय ऐसे आन्दोलनों से राजनीतिक लाभ लेने का समय नहीं है। समूचा राष्ट्र कोरोना से जुड़ी अन्तहीन समस्याओं से घिरा है, दिल्ली के हालात तो अधिक बदतर है। ऐसे समय में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का किसानों को रोकने के लिये किये प्रयोगों पर राजनीति करना विडम्बनापूर्ण है। बात केवल केजरीवाल की ही नहीं है बल्कि पंजाब के मुख्यमंत्री भी इसके लिये जिम्मेदार है।
साफ तौर पर पंजाब के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि किसान दिल्ली में विरोध मार्च करके अपनी ताकत दिखाएं। यह बात छिपी हुई नहीं है, पिछले दिनों में पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी दिल्ली में विरोध जताया था, पर उनकी मांग नहीं मानी गई।
आनन-फानन में वह किसानों को खुश करने के लिए अपनी ओर से ऐसे कानून बनाने की कोशिश कर चुके हैं, पर वह जानते हैं कि केंद्र सरकार की सहमति के बिना यह कानून मंजूर नहीं होगा। पंजाब में किसानों का प्रदर्शन लगातार जारी है, अतः प्रदर्शन का स्थान बदलने की राजनीति कतई अचरज का विषय नहीं है। पंजाब के बजाय अगर दिल्ली में किसान अपनी आवाज उठाएं, तो यह पंजाब के अनुकूल है, लेकिन यह दिल्ली के लिये कैसे अनुकूल हो सकती है? एक तरह से साबित हो गया, भारतीय राजनीति में परस्पर विरोध कितना जड़ एवं अव्यावहारिक है। हमारे राजनेता जब टकराव पर उतरते हैं, तो शायद नहीं सोचते कि देश में क्या संदेश जा रहा है। क्या भारतीय राजनीति आज इतनी अशालीन एवं असंवेदनशील हो गयी है कि असंख्य लोगों के जीवन को संकट में डालने से उन्हें कोई गुरेज नहीं रहा?
भारत में शांतिपूर्वक आंदोलन करने का अधिकार सभी को है लेकिन कोरोना महामारी के दौरान किसान आंदोलन लम्बा न खिंचे, इसके लिए गम्भीर प्रयासों की जरूरत है। देश के अनेक किसान संगठनों जैसे अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, राष्ट्रीय किसान महासंघ और भारतीय किसान संघ के विभिन्न धड़ों द्वारा किये जा रहे इन प्रदर्शनों का मुख्य उद्देश्य नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा पारित तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए केन्द्र सरकार पर दबाव बनाना है। मोर्चा नेताओं का कहना है कि उन्हें प्रदर्शन की अनुमति मिले या नहीं लेकिन किसान संसद पहुंचेंगे और प्रदर्शन करेंगे। कोरोना काल में दिल्ली में मौतों का आंकड़ा पहले ही काफी खौफ पैदा कर चुका है। संक्रमण के नए केस कम होने का नाम नहीं ले रहे। ऐसी स्थिति में किसानों का आंदोलन मुसीबत ही पैदा करेगा। ऐसे में पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के किसानों का प्रदर्शन में शामिल होना उचित नहीं होगा। किसान प्रदर्शन से टकराव की स्थितियां पैदा हो सकती हैं। केन्द्र सरकार को अब किसानों से बातचीत की दिशा में गम्भीर पहल करनी होगी। यदि किसानों में नए सुधारों को लेकर कुछ आशंकाएं और असुरक्षा बोध है तो उन्हें दूर किया जाना चाहिए। दूसरी तरफ किसान संगठनों को भी संयम से काम लेना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी लगभग हर मंच से कृषि कानूनों के फायदे गिनवा रहे हैं। आंदोलन वही बेहतर होता है जो अनुशासित हो और जिससे न आंदोलनकारियों को नुकसान हो न दूसरे लोगों और न ही राज्यों का। जो भी शंकाएं हैं उनका निवारण हो सकता है। कानूनों में फेरबदल होते रहे हैं। बेहतर यही होगा कि किसान संगठन देश हित में अपने आन्दोलन को वापस लें।
किसानों के दिल्ली कूच के प्रयास को रोकने के लिए हरियाणा सरकार को जोर लगाना वाजिब है। पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच ट्विटर पर छिड़ी जंग केवल यही संकेत दे रही है कि किसान आंदोलन के पीछे राजनीति ज्यादा जिम्मेदार है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने दिल्ली की ओर मार्च कर रहे किसानों को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि किसानों के खिलाफ बल प्रयोग करना पूरी तरह अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक है। इसका हरियाणा के मुख्यमंत्री ने ट्वीट करते हुए जवाब दिया कि मैंने पहले ही कहा है और मैं इसे फिर दोहरा रहा हूं कि मैं राजनीति छोड़ दूंगा, अगर एमएसपी पर कोई परेशानी होगी, इसलिए कृपया निर्दोष किसानों को उकसाना बंद कीजिए। दो पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच इस तरह के अप्रिय संवाद से साफ है, राज्यों के बीच में स्वस्थ संवाद और समन्वय का अभाव होने लगा है। वैचारिक या राजनीतिक मतभेद के आधार पर संघर्ष चल रहा है, तो क्या इसका नुकसान राष्ट्रीय राजधानी को भुगतना पड़ेगा? ऐसे मतभेद के रहते क्या किसानों की समस्या का समाधान हो सकता है?
किसान तभी मजबूत होगा वह देश के किसी दूसरे कोने में जाकर अपना उत्पाद बेच सकेगा, पर इसके साथ ही, मंडी और एमएसपी की मौलिक भारतीय व्यवस्था को भी मजबूत रखने की जरूरत है। केंद्र सरकार इन्हीं बातों को बार-बार दोहरा चुकी है कि मंडी और समर्थन मूल्य की व्यवस्था बनी रहेगी। ऐसे में, अविश्वास एवं विरोध गैरभाजपा सरकारों या किसान समाज में क्यों पैदा हो रहा है? उसे दूर करने की जिम्मेदारी भले केन्द्र सरकार पर ज्यादा हो, लेकिन इस कार्य में विपक्ष को भी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। तमाम किसान संगठनों के साथ मिलकर देश को आश्वस्त करने का समय है, ताकि किसानों के नाम पर शुरू हुई राजनीति का संतोषजनक पटाक्षेप हो। समय रहते निर्णायक मंचों पर किसानों को सुनने और संतुष्ट करने के प्रयास तेज होने चाहिए।
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