देश का इतिहास उठा कर देखिए तो 60 के दशक के बाद देश में करीब 16 बड़े दंगे हुए हैं जिसमें से 15 केवल कांग्रेस शासित राज्य या उनके सहयोगी पार्टियों के शासन काल में हुए हैं। भाजपा के शासन में केवल एक 2002 में गुजरात में दंगा हुआ है, लेकिन झूठ के शोर में आज भाजपा सांप्रदायिक और ना जाने कितने लोगों का नरसंहार जिन कांग्रेसी सरकारों के शासनकाल में हुआ है वो कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष पार्टी बनी हुई है।
कांग्रेस शासन काल में जितने भी दंगे हुए हैं, सही अर्थों में वो दंगे से अधिक नरसंहार थे, जिसमें किसी एक पूरे समुदाय को न केवल प्रशासन के द्वारा बल्कि कांग्रेसी कार्यकर्ताओं द्वारा भी कत्लेआम किया गया…
दंगों की अपनी इस प्रथा को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस आज किसान आंदोलन की आड़ में देश के अन्नदाताओं को भ्रमित कर एक और अध्याय लिखना चाहती है। खुद तो कृषि सुधारों के नाम पर किसानों के साथ विश्वासघात करती रही। पहले एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तो घोषित होता था लेकिन उसके अनुसार खरीद बहुत कम की जाती थी। सालों तक एमएसपी को लेकर छल किया गया है। किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्ज माफी के पैकेज घोषित होते थे, लेकिन छोटे और सीमांत किसानों तक वे पहुंचते ही नहीं थे। कर्ज माफी को लेकर भी छल किया गया।
देश का किसान कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की नीयत को समझ रहा है और केन्द्र सरकार के सीधे सहयोग से निरंतर अपने दूरगामी भविष्य को लेकर आश्वस्त भी है पर बीच में यह तथाकथित किसान जो मोदी विरोध में हर रोज नये नये प्रपंचो के साथ सामने आ रहे हैं जबकि यह लोग पहले ही कई राष्ट्रीय मुद्दों पर सरकार का विरोध करते रहे हैं और उसमें पोल खुलने के बाद अब किसानों को बरगला कर अपना व्यक्तिगत एजेंडा चला रहे हैं
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