पिछले साल दिल्ली में हूए दंगे केवल राजधानी को ही नहीं अपितु संपूर्ण भारत के लिए एक कड़वी यादों की तरह हैं। दंगो में जिस तरह हिन्दूवो को, उनकी साधनसंपती को निशाना बनाया गया, जिस तरह से दंगो में हत्यारों का इस्तेमाल किया गया उससे साफ दिखता है कि दंगे प्रनियोजित और हिंदूवो के खिलाफ थे। हालांकि हमारा देश धर्मनिरपेक्षता के व्याख्यान पर चल रहा हो लेकिन इस धर्मनिरपेक्षता के झूठे शब्द ने हमेशा हिन्दू समुदाय के साथ अन्याय किया। धर्मनिरपेक्षता का ठेका ले रखे हमारे देश के बुद्धिजीवियों ने देश की ८० प्रतिशत हिन्दू आबादी का दमन करने के लिए कहीं सांप्रदायिक घटनावो को अंजाम दिया और ये घटनाए सेक्यूलर के आगे देशहित में हो गई। आज़ादी के बाद निरंतर चली आ रही कॉन्ग्रेसी सरकार और देशविरोधी ताकतों ने धर्मनिरपेक्षता के सही मायनों को ग़लत बनाकर खूब राजनैतिक रोटियां सेखी। इसिलिए मुस्लिम समुदाय द्वारा किए गए हिंसक प्रदर्शन हो या दंगे इससे भारत की धर्मनिरपेक्षता हमेशा टिकी रही; तो हिन्दू समुदाय द्वारा किए गए बचाव कार्य को सांप्रदायिक रूप दिया गया।

भारत और दंगो का इतिहास पुराना रहा है। आजादी से पहिले भी कहीं बार हिन्दू मुस्लिम के नाम पर दंगे हुए। सही मायनों में भारत का विभाजन ही इस बात पर हुआ था कि, हिन्दू और मुस्लिम एक साथ नहीं रह सकते। आजादी के बात याहा मुस्लिम भी ठेहर गए और हिन्दूवो के प्रति उनकी दमनकारी नीति भी। स्वतंत्रता के पश्चात देश में कहीं बार दंगे हुए। दंगों के बीच कहीं लोगों कि जाने गई, कहीं सरकारी संपत्ति को ध्वस्त किया गया। आम तौर पर दंगो ने केवल देश में अराजकता फैलाई और आम लोगों की जाने ली कहीं लोगों को बेघर कर दिया। दंगो को प्रमुखता से देखे तो दंगोके नियोजन से लेकर भड़काने तक केवल एक समुदाय का हाथ रहा है। और उनके निशाने पर केवल राष्ट्रभक्त रहे है। ये सिर्फ अकेले भारत की नहीं बल्कि समूचे विश्व की परेशानी बन गई है। दुनिया के जगह जगह हो रहे दंगोके पिछे इस्लामिक आतंकवाद का हाथ नजर आता है। इस्लामिक आतंकवाद गुजरते दिनों के साथ दुनिया के नसो को जखेड रहा है। जहा सनातन संस्कृति ने विश्व की नसों में प्यार का संचार किया; तो वहीं इस्लामिक आतंकवाद ने उन्हीं नसो को कुरेदकर खून का सैलाब बहाया।

छोटीसी बात को मुद्दा बनाकर भारी मात्रा में भीड़ का एकत्रित आना, बाद में भीड़ का प्रदर्शन के जरिए दंगो में बदल जाना, दंगो के बीच भारी पैमाने पर हत्यारों का इस्तमाल करना इस बात का पुख्ता सबूत देता है कि कुछ पल में अचानक से भीड़ का जुटना, इतने कम समय में हत्यारों का इंतज़ाम करना, अचानक से भीड़ का हिंसक प्रदर्शन में बदल जाना कोई अचानक हुई घटना नहीं बल्कि एक सोची समझी साजिश है। जैसे कि पिछले साल अगस्त में हुई बैंगलुरु हिंसा। एक विधायक के भतीजे द्वारा फ़ेसबुक पर मोहम्मद पैगबर के बारे में की गई टीपनी के तुरंत बाद ही मुस्लिम समुदाय का भारी मात्रा में एकत्रित आना, बाद में हिंसक प्रदर्शन करना, सीसीटीवी फोटेज में स्वय कि पहचान ना हो इसलिए गलियों की विज को खंडित कर देना, नगर में शहर के अन्य जगह से पुलिसकर्मी ना आये इसलिए नगर के मुख्य सड़कों को बंद कर देना ये सब बाते अचानक नहीं हो सकती। सब गुट अपने अपने तरीके से बराबर काम करने की योजना को कुछ चंद समय में तय नहीं किया जा सकता, दंगो के लिए भारी पैमाने पर विदेशो से फंडिग होती है। और उस पैसे को दंगा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हिंसक प्रदर्शन करना तय रेहता है केवल जरूरत रहती है तो केवल एक कारण कि जैसे ही कारण मिला उनके उपद्रव जागृत हुए।

दिल्ली दंगा

दिल्ली के शाहीनबाग में छोटेसे विरोध प्रदर्शन से शुरू हुई बात जनवरी तक हिंसक प्रदर्शन में तो फरवरी के अंतिम तक दंगो में बदल गई। CAA कानून के खिलाफ चल रहे महिला विरोध प्रदर्शन को दंगो में बदल जाने के लिए यहां के विपंक्षी दलों ने बड़ी भूमिका निभाई । मुख्यतौर पर केजरीवाल सरकार और कांग्रेस ने शाहीनबाग में हो रहे प्रदर्शन को बढ़ावा दिया जिसका नतीजा दिल्ली ने दंगो के रूप में भुगता। CAA कानून के खिलाफ देश के कहीं जगह पर विरोध प्रदर्शन हुए लेकिन दिल्ली में हो रहा विरोध प्रदर्शन केवल प्रदर्शन ना होकर फरवरी में किए जा रहे दंगो कि पहीली सीढ़ी थी। इस प्रदर्शन पर वामपंथी संघटनो ने, पाकिस्तानी आतंकवादियो, देश को तोड़ने वाली टुकडे टुकड़े गैंग ने, पिंजरा तोड गैग ने , गुराखा पोश महिलावों ने अपना कब्जा कर लिया, तो इन वामपंथियों के मदत में विपक्षी दल आ गए। इन लोगो ने शाहीनबाग को अपने कब्जे में ले लिया और वहा की बड़ी जगह पर अपना ठिकाना बना लिया। सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के कड़ी मेहनत के बाद भी मुस्लिम समुदाय ने प्रदर्शन को बंद नहीं किया। क्युकी इनका असली मकसद कानून का विरोध नहीं बल्कि देश में अराजकता फैलाना था। लंम्बे अर्से से चल रहे इस प्रदर्शन में किसी राष्ट्रवादियों को प्रवेश नहीं था नाही किसी राष्ट्रवादी मिडिया कर्मी को। इस प्रदर्शन के अंदर वहीं जा सकते थे जो लोगो वामपंथी सोच रखते हो। कुछ महीनों के लिए लोकतांत्रिक देश में ये जगह भारत के बाहर की हो गई थीं, यहा राष्ट्रवादी सोच रखने वाले किसी भी देशभक्त को प्रवेश नहीं था, हम देश की किसी भी जगह पर जा सकते थे लेकिन शाहीनबाग के उस प्रदर्शन के ठिकाने पर नहीं। प्रदर्शनकारी अपने हाथो में संविधान की प्रतियां लेकर संविधान की ही धाज्जिया उड़ा रहे थे। दिल्ली दंगो के मुख्य साजिशकर्ता ताहिर हुसैन, उमर खालिद, खालिद सैफी के अलावा आतंकवादियों का बड़ा गुट फरवरी के दंगो के लिए योजना बनाने में शुरवात से ही तैयार था। दंगो कि रचना में पहिले चरण में प्रदर्शन दूसरे में इलाकों कि पहचान कर सड़कों को बंद करना और अंतिम चरण में दंगे को अंजाम दिया गया। शुरवात से ही इस प्रदर्शन में बड़े दंगे कि साजिश रची जा रही थी, दिल्ली पुलिस ने अपने चार्ज शीट में साफ साफ लिखा कि, दिल्ली दंगो कि साजिश २०१९ के लोकसभा चुनावों के नतीजे आने बाद से ही रची जा रही थी। इनका मुख्य उद्देश मोदी सरकार को उखाड़ फेकना था । टुकडे टुकड़े गैग की सदस्य आयशी घोष ने शाहीनबाग में कहा था कि, ‘हमारी लड़ाई CAA के खिलाफ है लेकिन हम कश्मीर की लड़ाई भी लड़ेंगे।’ आम तौर पर ये प्रदर्शन CAA के खिलाफ नहीं बल्कि मोदी सरकार द्वारा लिए गए देशहित के सभी कार्यों के खिलाफ था। आगे दिल्ली पुलिस ने कहा कि, साजिशकर्ता देश की छवि आंतराष्ट्रीय स्तर पर बिगड़ना चाहते थे इसलिए जब फरवरी में डोनाल्ड ट्रप भारत आए तो उसी दिन हिंसा फैलाने की कोशिश की गई। १७ फरवरी को खालिद सैफी ने अमरावती में एक भाषण में भी कहा था कि, ‘जब डोनाल्ड ट्रप भारत आएंगे तो सड़कों पर उतर जाना।’ चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने दंगे कि योजना बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए कहीं व्हाट्स ऐप ग्रुुप का भी जिक्र अपने चार्गशीट में किया। पुलिस ने वॉरियर्स नामक एक ग्रुुप का हवाला देते हुए काहा कि इस ग्रुप पर २९ दिसम्बर २०१९ को एक मैसेज फॉरवर्ड किया गया था जिसमें जिक्र था कि, मुस्लिम महिलाए सड़क पर उतर चुकी है ये बड़ी कामयाबी है। ५ जनवरी २०२० के एक और मैसेज के बारे में जिक्र है जिसमें लिखा था, CAA, NPR, NRC के खिलाफ औरतों का इन्कलाब। एक फ़ोटो भी था जिसमें समय और जगह के बारे में उल्लेख था। इसके अलावा भी कहीं और ग्रुप के बारे में चार्जशीट में उल्लेख है जैसे जामिया कोंड्रिनेशन कमेटी, वरियर्स, खिदमत,औरतों का इंकलाब, डीपीएसजी, सेव कंस्टीट्यूशन येसे कही व्हाट्स ऐप ग्रुप ने दंगो के नियोजन के लिए महत्त्व पूर्ण भूमिका निभाई। हम यहां पर वॉरियर्स नामक ग्रुप के व्हाट्स ऐप मैसेज कि बात करेंगे।

१) वॉरियर्स नामक वॉट्स ऐप ग्रुुप को २७ दिसंबर को गुल हसन ने बनाया और लिखा की मैंने एक ग्रुप बनाया है जिसमें आपको योजना किं सारी जानकारियां मिलेगी ।

२) २९ दिसंबर को एक और मैसेज आया जिसमें लिखा था कि, कल थोड़ा जल्दी आने की कोशिश करे। १० बजे सुबह आ जाए ताकि कैपेंन हो सके।

३) १७ जनवरी को फिर एक बार आया मैसेज कुछ ऎसा था, जल्द से जल्द सभी औरते प्रोटेस्ट की जगह पर पहुचे, फोर्स बढ़ती जा रही है और औरतों की संख्या बहुत कम है।

४) दंगो के शुरवाती दिनों में २३ फरवरी के सुबह एक मैसेज आया जिसमें लिखा था कि, हौजरानी में महिलाएं सो रही थी लेकिन सीलमपुर में चक्का जाम कि बात सुनकर सब पूरी ताकत से उट गई और समर्थन में नारे लगा रही है,

५) उसी दिन एक और मैसेज फॉरवर्ड किया गया, ऎतिहासिक भारत बंद कि शुरवात जाफराबाद, सीलमपुर से कर दी गई है। सभी के साथ जाफराबाद पहुंचे आज संवैधानिक दायरे में रहकर भारत बंद किया जाएगा। भाजपा सरकार को बहुजनो की ताकत का एहसास करवाया जाएगा ।

किस तरह इन्ह वॉट्स ऐप ग्रुप ने प्रदर्शन के शुरवाती दौर से लेकर दंगो के दिन तक ऎहम भूमिका निभाई। ऊपर से महिलावो का दिखाई देने वाला प्रदर्शन कैसे आतंकवादीयो के इशारे पर चल रहा था ये समजा जा सकता है।

 

मोदी सरकार ने ९ दिसंबर को CAA कानून का प्रकाशन किया। विपक्ष ने कानून के खिलाफ मुस्लिम समुदाय में भ्रम फैलाया। कानून के खिलाफ देश की जगह जगह पर मुस्लिम समुदाय द्वारा विरोध प्रदर्शन हुए जिसमें दिल्ली का शाहीनबाग केद्र था और ईसी शाहीनबाग से देशद्रोही ताकतों ने देश जलाने कि योजना रची। साजिश की शुरवात हुई प्रदर्शन में महीलावो को बिठाने से ताकि प्रदर्शन को खतम करने के लिए पुलिस बल का इस्तमाल न कर पाए। ५००-५०० रुपए के प्रति दिन से साजिशकर्ता मुस्लिम महिलावो को प्रदर्शन में बिठाने लगे ताकि प्रदर्शन के आड में दंगो कि साजिश रच पाए। दिल्ली के दंगो में ५२ से ज्यादा लोगो ने अपनी जान गवाई, ६०० से भी ज्यादा लोक घायल हुए ३७० दुकानें जलाई गई, १४२ से ज्यादा घरे जलाए गए, गाडियां जलाई गई। दंगाईयो ने गाडियां जलाने के लिए E वाहन एप का इस्तमाल किया जिससे पता लगे कि गाड़ीयो का मालिक कौन है। केवल हिन्दू गाड़ियों कि पहचान करके ही गाड़ियों को जलाया गया । २५ फरवरी को आम आदमी पार्टी का पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और मुस्लिमो ने मिलकर IB ऑफिसर अंकीत शर्मा की बुरे तरीके से हत्या कर दी, चाकुसे करीबन ५० से ज्यादा घाव किए गए और उनके मृत शरीर को नाले में फेक दिया गया। अंकीत शर्मा का इतना ही अपराध था कि वो एक हिन्दू थे और ताहिर हुसैन के ग़लत इरादों को जान चुके थे। शाहीनबाग ने कैसे हिन्दूवो का दमन किया और उन्हें निशाना बनाया ये देखा जा सकता है। हिन्दुत्व और राष्ट्र के बारे में शाहीनबाग में दिए जाने वाले नारे कुछ इस कदर थे, १) हिंदुत्व की कब्र खोलेगी २) कैसी आजादी कैसी आजादी जिन्ना वाली आजादी ३) आसाम को भारत से अलग कर दो।

दंगो की मानसिकता को पेहचानना बहुत मुश्किल है। इसके लिए कहीं दिनों से योजना बनाई जाती है। दंगो के लिए विदेशों से फंडिंग कि जाती है, आतंकवादी संघटनों द्वारा हत्यारो को दंगाईयों तक पहुंचाया जाता हैं। दिल्ली दंगो में भी कहीं विदेशों से फंडिग कि गई थी। भारत में स्थित पीएफआई ने दिल्ली दंगो को पैसा पहुंचाने कि अहम भूमिका निभाई। दंगो के लिए पहिले से ही सभी चीजों को हत्यारो के रूप में इस्तमाल करने के लिए इकट्ठा किया गया था। दंगो को आखरी अंजाम तक पहुंचाने में ताहिर हुसैन का बड़ा हाथ रहा है, फरवरी के महीने में ही उसके बैंक खातो में पूरे १ करोड़ ३० लाख की भारी भक्कम राशि आ गई थी। दंगो के बाद हुई छानबीन से पता चला कि ताहिर हुसैन के घरके छत के ऊपर वो तमाम चीजें मौजूद थी जिसे दंगो के बीच हत्यारो के तौर पर इस्तमाल किया गया। पहिले से ही पत्थर, रॉड, गूलेर, काच कि बोतलें, इटे, तेजाब, पेट्रोल बॉम्ब, डिजेल जैसी चीजें ताहिर के घर के छतो से पाई गई। दंगो के पहिले ताहिर हुसैन ने अपनी लाइसंस पिस्तौल भी छुड़ा ली थी और साथ में १०० कारतूस भी खरीदी किए थे। जिसके बाद दिल्ली पुलिस को उसके घर से ६४ कारतूस बरामद हुए।

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महीनों की साजिश के बाद ५ दिनों में उत्तर पूर्व दिल्ली को जलाने के लिए कैसे टुकडे टुकड़े गैंग ने, विपक्षी दलों के नेता ने, वामपंथी संघटनो ने अपने कार्यों को पूरा किया,

१) हमारे देश में एनजीओ कि संस्था को बड़ा मानसम्मान मिलता है, लेकिन समाज सेवा के नाम पर ऎसी संस्थाएं समाज को गिरोह में लेती हैं। हमारे देश में एनजीओ कि संस्था चलाने वाला खालिद सैफी शाहीनबाग में टुकड़े टुकड़े गैंग का सदस्य उमर खालिद से मिलता है

२) ८ जनवरी २०२० को शाहीनबाग में उमर खालिद, खालिद सैफी और ताहिर हुसैन के बीच एक मुलाकात होती है जिसमें दंगो के लिए पैसों की फंडिग कि बात होती है। जिस के बाद पैसों की सारी ज़िम्मेदारी खालिद सैफी अपने ऊपर लेता है।

३) इससे पहिले जामिया नगर के ओकला मंच पर हुए युनाईटेड अगेंस्ट हेट्स के कार्यक्रम में आम आदमी पार्टी के नेता कन्हैया कुमार और उमर खालिद को एकसाथ देखा गया था।

४) २० फरवरी को दंगो कि शुरवात हुई और इसी दिन खालिद सैफी ने दिल्ली के उप मुख्मंत्री मनीष ससोदिया से मुलाकात की।

५) दंगो के तीसरे दिन यानी २३ फरवरी को आम आदमी पार्टी की विधायक आतीशी मार्लेना से भी खालिद सैफी ने मुलाकात की।

६) इसके पहिले भी दिसम्बर के महीने में आम आदमी पार्टी के नेता अमातुल्लाह खांन का जामिया में भाषण हुआ जिसमें उसने कहा कि, ‘मोदी राज में मुस्लिम दाड़ी टोपी आजाद नहीं कह सकते, गुरखा नहीं पहन सकते, राज को उखाड़कर फेक दो।’ इसके तुरंत बाद ही हिंसा भड़की १००- १५० सरकारी गाड़ियों को जलाया गया।

७) आम आदमी का शाहीनबाग से इतना जुड़ाव और दंगो के मुख्य अपराधी के तौर पर ताहिर हुसैन का होना दंगो में आम आदमी पार्टी की भूमिका को रेखांकित करता है।

विरोध प्रदर्शन की आड़ में इस्लामिक आतंकवाद ने कैसे देश को जलाने कि साजिश रची इसकी कल्पना भी हम नहीं कर सकते। दिल्ली दंगा देश पर लगा एक जख्म है लेकिन आज भी इसके अपराधी कॉन्ग्रेस के लिए मासूम है। आज भी देश में बैठे देशद्रोहियों का बड़ा गुट उमर खालिद को छुड़ाने की बात करता है। दिल्ली को जलाने वाली ये यादे आज भी हर राष्ट्रवादियों के मन में कड़वी यादें  बनकर जिंदा है।

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