जी हाँ, सुभाष बाबू को भारत देश भूल जाएं इस बात की भरपूर कोशिश कांग्रेस द्वारा की गई थी लेकिन आज उन्हीं सुभाष बाबू को कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल अपना आदर्श बता रहे है, अपनी प्रेरणा बता रहे है तो आप ये मानिए कि सुभाष बाबू का व्यक्तित्व इतना विराट है कि वो लाख कोशिशों के बावजूद भी छुप नही सकता।

1940 के दशक में जब कांग्रेस अपने चरम पर थी उस समय गांधी और नेहरू के पूर्ण विरोध के बाद भी सुभाष बाबू लगातार दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने और वो भी गांधी के प्रिय उम्मीदवार को हराकर, तो आप सुभाष बाबू की लोकप्रियता का अंदाज़ा लगा सकते है।
जब सुभाष बाबू दूसरी बार अध्यक्ष बने तो गांधी नाराज़ भी हो गए थे, चूंकि उस समय गांधी का प्रभाव कांग्रेस पर अधिक था और कांग्रेस में फूट ना पड़े इसलिए सुभाष बाबू ने अपना इस्तीफा दे दिया।

ये तस्वीरें ही काफी है साबित करने के लिए कि उस समय कौन अधिक लोकप्रिय था।

सुभाष बाबू कहते थे कि,
“यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े तब वीरों की भांति झुकना !”
उस समय सुभाष बाबू को गांधी की नाराजगी के आगे झुकना जरूर पड़ा था लेकिन इसका मतलब ये कतई नही था कि वो भारत की स्वतंत्रता के लक्ष्य से भी पीछे हट गए थे।

सुभाष बाबू मानते थे कि यदि भारत को आज़ाद कराना है तो देशी ताकतों के साथ हमें विदेशी ताकतों की भी मदद लेनी होगी, तब ही हम अंग्रेजों को पूर्ण रूप से भारत से बाहर कर सकते है।
सुभाष बाबू का भारत की आज़ादी के बारे में एक व्यापक दृष्टिकोण था। वो सिर्फ अंग्रेजों से भारत को आज़ाद कराना नही चाहते थे बल्कि वो चाहते थे कि भारत पूर्ण रूप से आज़ाद हो। भारत को वो हर उस राजनीतिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक आज़ादी से मुक्त करना चाहते थे जो अंग्रेजों या अन्य किसी बाहरी सत्ता ने भारत पर थोपी थी।

उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि अंग्रेज सरकार उनके हर एक कदम से घबराती थी और उनके छोटे से कदम पर भी उन्हें घर में नज़रबंद कर देती थी।
उस समय का शक्तिशाली शासक एडोल्फ हिटलर भी उनसे प्रभावित हुए बिना नही रह सका, यही कारण था कि उसने सुभाष बाबू की सहायता हेतु वादा किया था।
सुभाष बाबू की आज़ाद सरकार को उस समय के 9 ताकतवर देशों ने मान्यता दी थी जो एक बहुत बड़ी बात थी और ये सारा कार्य किया था सुभाष बाबू ने मात्र 4 वर्षों में।
हमें बचपन से ये पढ़ाया जाता रहा है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू थे लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि ये बात गलत है, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे सुभाष बाबू उर्फ सुभाष चंद्र बोस।

https://twitter.com/narendramodi/status/1053923176009293824?s=20

कांग्रेस को बस इसी बात से नफ़रत थी कि सुभाष बाबू किस प्रकार नेहरू से भी अधिक लोकप्रिय थे, इसी कारण कांग्रेस जब भी सत्ता में रही उसने सुभाष बाबू को नजरअंदाज किया।
लेकिन जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से ये देश एक बार फिर से सुभाष बाबू के योगदान को जान सका है।
चाहे वो 2018 में आज़ाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगाँठ पर प्रधानमंत्री द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अलावा भी प्रथम बार लाल किले पर झंडा फहराना हो,
चाहे वो सुभाष बाबू की स्मृतियों से सम्बन्धित सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय का निर्माण करना हो,
चाहे वो सुभाष बाबू से सम्बन्धित वर्षों से लंबित गुप्त दस्तावेजों को सार्वजनिक करना हो,
या इस बार 23 जनवरी को सुभाष बाबू के जन्मदिवस को “पराक्रम दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय हो,

या फिर आज 23 जनवरी 2023 को सुभाष बाबू के जन्मदिवस पर देश के वीर जवानों का सम्मान करना हो।

मोदी सरकार ने जैसा सम्मान सुभाष बाबू को दिया, जिसके कि वो हक़दार थे, वैसा सम्मान किसी भी पिछली सरकारों ने नही दिया। आज़ादी के बाद कम से कम कोई सरकार तो ऐसी आई जिन्होंने सुभाष बाबू को उनका वास्तविक सम्मान प्रदान किया। वरना यदि कांग्रेस थोड़े समय सत्ता में और रहती थी तो शायद इस देश को सुभाष बाबू याद ही नही रहते।

आज उनके जन्मदिवस पर आप सभी पाठकों को “पराक्रम दिवस” की शुभकामनाएं और उम्मीद है कि आप सभी सुभाष बाबू के इस कथन को हमेशा याद रखेंगे कि,
“अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है”
जय हिंद 🇮🇳🇮🇳
वंदेमातरम 🇮🇳🇮🇳

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.