2015 का बिहार चुनाव याद है जब राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी लालू यादव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने अखाड़े पर आने के लिए मजबूर कर दिया था और यही वह चुनाव भी था जिसने मोदी के विजयरथ को रोक दिया था। उस चुनाव में मोदी पहली बार अपनी परंपरागत राष्ट्रवाद की राजनीति से बाहर निकल कर जाने अनजाने जातिवादी चुनाव का हिस्सा बन बैठे और उसका हस्र क्या हुआ पूरे देश ने देखा।

मोदी औपचारिक रूप से उस हार पर कभी सफाई नही दी, और एक मंझे हुए राजनेता को देनी भी नही चाहिए, सबक लेना था सो लिया। पिछले 6 वर्ष से भारत का सारा विपक्ष, खासकर कांग्रेस मोदी के बनाये हुए राष्ट्रवाद के अखाड़े पर आकर खेल रही है, और यही वजह है कि कांग्रेस लगातार वजूद खोती जा रही है। पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस के आचरण को सूक्ष्मता से देखा जाए तो कांग्रेस का नेतृत्व, अपनी ज्यादातर हार के बाद अपनी कमियों को खोजने की जगह एक दिशाहीन राजनैतिक दल की तरह भाजपा की ताकत को आत्मसात करने कोशिश करती रही है।

कांग्रेस कभी समझ ही नही पाई कि हिंदुत्व भाजपा की ताकत है, न कि काँग्रेस की कमजोरी लेकिन कांग्रेस भाजपा की इस ताकत का विकल्प खोजने की बजाए या तो इसे नष्ट करना चाहती है या उसे कॉपी, और ये दोनो स्थिति उसके लिए आगे कुआं और पीछे खाई वाली परिस्थिति है। कांग्रेस ने हिदुत्व पर प्रहार करने के लिए ‘भगवा आंतकवाद’ जैसे शब्दों को गढ़ा, और मीडिया में बैठे अपने इकोसिस्टम के द्वारा उसका पूरी दुनिया में प्रचार प्रसार किया मग़र जब लगातार चुनावी हार से घबराकर कांग्रेस, ‘सॉफ्ट’ हिंदुत्व की ओर लौटने की कोशिश की तो उस समय तक विचारधारा की सबसे संकरी गली में घुस चुके उसके इकोसिस्टम को यूटूर्न लेने के लिए इतनी भी जगह नही मिल सकी कि वह लौट सके। वास्तव में भूतकाल में उनके द्वारा दी गयी ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी ने ही वर्तमान के उसके सॉफ्ट हिंदुत्व को ढोंग व अर्थहीन बनाकर रख दिया।

सही मायनों में देखा जाए तो कांग्रेस बार बार एक ऐसे महल को खड़ा करना चाहती है जिसकी नींव पर भाजपा का कब्जा है लेकिन कांग्रेस की दिशाहीनता की कतार यहीं खत्म नही होती। सोनिया गांधी की राजनीतिक निष्क्रियता व अनुभवी नेताओ को हासिये में डाल देने के बाद, मौजूदा बौने नेत्तृत्व के चलते कांग्रेस के पास मुद्दों का इतना अकाल पड़ चुका है कि वह चाह कर भी मोदी के बनाये हुए राष्ट्रवाद के अखाड़े से बाहर निकल नही पा रही है और मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ उसे कुछ उदाहरणों से समझिये।

‘देश की सुरक्षा और सेना के सशक्तिकरण के लिए राफेल डील कितनी जरूरी है’ इस बात को पूरे देश को एहसास था मगर कांग्रेस के बौने नेतृत्व को देश का ये सेंटिमेंट समझ नही आया। उसके साथ ही, जेएनयू में देश विरोधी नारेबाजी का प्रकरण हो, CAA हो, अनुच्छेद 370 हो या राममंदिर जैसे मुद्दे जो कि देश की गरिमा, गौरव और गर्व से जुड़े हुए मुद्दे हैं जिन्हें राष्ट्रवादी देश का डीएनए कहा जा सकता है और कांग्रेस ने देश के इसी डीएनए को कभी समझने की कोशिश नही की।

किसान आंदोलन के शुरू में पंजाब कांग्रेस फ्रंटफुट पर खेलती हुई जरूर नज़र आई मगर बॉल राष्ट्रीय कांग्रेस के हिस्से में आते ही स्थिति बदलने लगी। राष्ट्रीय कांग्रेस के बौने नेतृत्व का आसानी से पकड़ा जाने वाला झूठ, तर्कहीन तर्क, जल्दबाजी व बचकाना बयानबाजी, और सरकार के खिलाफ बोलते बोलते देश के खिलाफ़ बोल जाने की आदत जैसी नकारात्मक भूमिका, बहुत जल्दी उसे बैकफुट पर ला दिया। यद्यपि बामपंथियो ने अपनी एकजुटता, दुष्प्रचार क्षमता व पदचाप हीन दंगाई रणनीति से इसे कई बार संभाला मग़र एक के बाद एक बैठकों के बाद सरकार का लगातार झुकना और उसी समय किसान नेताओ के अड़ियल रवैय्या ने आंदोलन की विश्वसनीयता पर असर डालना शुरू कर दिया।

यद्यपि किसान आंदोलन को कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष एक मौके की तरह देख रहा था, वह चाहता था कि किसी तरह से दिल्ली की सड़कों में खून बहे और इसीलिए 26 जनवरी को धैर्य टूटने की हद तक सुरक्षा बलों को उकसाया गया, उन्हें मारा गया, पीटा गया, लगभग 300 सुरक्षा बल गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल पहुँच गए मग़र उन्होंने किसानों के रूप में आये दंगाइयों पर किसी भी तरह का बल का प्रयोग नही किया और उनकी यही सहनशीलता ने निष्पक्ष दुनिया को किसान आंदोलन और इनके नेताओ के एजेंडा से परिचय कराया।

दरअसल बामपंथियो, कांग्रेसियों और देशविरोधियों को ये गलतफहमी थी कि किसान आंदोलन को इतना उद्वेलित किया जाए कि उसे संभालना मुस्किल हो जाये और उसके बाद दिल्ली की सड़कों पर फैले खून को दुनिया भर के देशों को दिखा दिखा कर भाजपा सरकार पर इतना दबाव बना दिया जाए कि भाजपा की राष्ट्रवादी राजनीति के आधार माने जाने वाले सारे बिल, वह चाहे जनसंख्या नियंत्रण हो, NRC हो, समान नागरिकता हो, को भविष्य में संसद की पटल पर लाने का वह साहस न जुटा पाए।

इस समय बंगाल और असम में चुनाव है, माहौल गर्म है, भाजपा और दोनो राज्यो की रीजनल पार्टियां अपनी अपनी जोर आजमाइश में लगी हुई है, इसी बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बंगाल की धरती में खड़े होकर लगभग एक साल से ठंडे बस्ते में पड़े CAA को लागू करने की घोषणा भी कर दी, मतलब भाजपा ने देश के विपक्ष को एक बार फिर चुनौती दे दी कि वह उनकी तामाम साजिशों से घबराकर अपने वादों से डिगने वाली नही है।

मजे की बात ये है कि जब भाजपा विपक्ष को बंगाल और असम की धरती पर ललकार रही है, ठीक उसी समय कांग्रेस नेतृत्व, इन राज्यो में भाजपा को चुनौती देने की जगह, उत्तरप्रदेश और राजस्थान में न सिर्फ लुका छिपी का खेल खेल रही है, बल्कि महापंचायत पर अपनी ऊर्जा खत्म कर रही है। जो संभवतः बाद में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की हैकिंग का मजबूत कारण बनेगा।

-राजेश आनंद

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