राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – यानि RSS -संगठन ही शक्ति है , हिंदुत्व ही संस्कार है और राष्ट्रप्रेम जीवन पद्धति , राष्ट्रोत्थान ध्येय -वो संगठन है -संघे शक्ति कालियुगे . संघ और विशेषकर हिंदुस्तान का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जानना समझना तो दऊर ढंग से उच्चरित तक करना दुष्कर कार्य है उनके लिए जिन्होंने अपनी रणनीति , सअट्टा , सरकार , नीति सब कुछ सिर्फ और सिर्फ विभाजन की नीति ,जो उन्हें उनके प्रशासनिक गुरु ब्रिटिशों ने उन्हें विरासत में दिया था – उसी बाँटो और राज करो की नीति को बहुत अर्थों में देश में में जहर की तरह बोते रहे .

आयातित क्रांति और आयातित विचारधारा जिसमें सबके लिए जगह थी , स्थान भी था और मान भी यदि किसी के लिये कुछ नहीं था , कुछ रखने का सोचा भी नहीं गया तो वो इस देश का बाहुल्य समाज हिन्दू ही रहा . और विश्व में स्वयंसेवकों के सबसे बड़े संगठन होने के बावजूद भी उनको इतना सहृदय समझा जाता है की राजनीति में लगभग बिल्कुल मतिमूढ़ , अपरिपक्व और अब तो निहायत ही ओछे व्यवहार और बोल वाला एक राजनेता संघ चालित विद्यालयों में दी जा रही शिक्षा की पाकसितां के मदरसों में तैयार किए जा रहे जेहादियों के प्रशिक्षण जैसा बताने के बावजूद भी उसे मूढ़ समझ कर हर बार की तरह “सॉरी ” बोलकर बच निकलने के लिए बख्श देता है .

देश के किसी भी कोने में देशवासियों के साथ बिना किसी स्वार्थ या लालसा के समर्पित भाव से हर आपदा , आफत , मुसीबत में जिस तरह तत्परता से राष्ट्रीय स्वयं सेवख संघ के कार्यकर्ता जुटाते हैं उस भावना को समझना राष्ट्रविरोधी और भारत से विमुख रहने वालों के लिए बहुत दूर की बात है .

सीधी सरल और स्पष्ट बात ये है कि प्रातः , सायंकाल , शाखा में गणवेश पहन कर भारत-भू को परम वैभव तक ले जाने और अखंड भारत व सनातन के ध्वजवाहक संस्कारों को ग्रहण करते ये स्वयं सेवख ही अपने जीवन में फिर इस समाज के सच्चे प्रहरी बन जाते हैं . प्रधानमंत्री ,उपराष्ट्रपति , मुख्यमंत्री से लेकर देश का कोई भी ऐसा दायित्व नहीं जो संघ के स्वयंसेवख के कंधे पर न आया हो .

अब पूरे 100 वर्ष का होने जा रहा ये संगठन की शक्ति , और आज का ही परिणाम और प्रभाव है कि आज दुनिया भारत ,बल्कि कहा जाए ,नया भारत देख रही है . वो भारत जो दुनिया को एक महामारी से बचाने के महायज्ञ में लगा है और अपने प्रभु श्री राम के मंदिर निमार्ण यज्ञ में भी .

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