देश में कोरोनावायरस की लहर व्यापक प्रभाव के तहत सैकड़ों की जान ले रही है। शमशान में चिताएं जल रही हैं और उधर राजनीतिक रैलियां कर रहे हमारे सियासी सूरमा अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं। देश की सरकार की आंख में आंख डालकर सवाल पूछने से मीडिया बच रहा है और लिजलिजे ज्ञान के सहारे कोरोना से निपटने के लिए देश को छोड़ दिया गया है। आखिर जब दिसंबर जनवरी में assume किया गया था कि कोरोना की अगली लहर मार्च-अप्रैल में आएगी तो सरकार घड़ियाली नींद क्यों सोती रही? आज देश में दवाई मौजूद नहीं हैं, जो मिल रही हैं वो 10 गुने ज्यादा दाम पर मिल रही हैं…आखिर इस कुव्यवस्था का ठीकरा किसके सिर फोड़ा जाए? क्या जनता ने सरकार महज चुनावी रैलियां attend करने के लिए चुनी है?


दिल्ली,महाराष्ट्र में जनता का जो बुरा हाल है वो इतना दारुण है कि अस्पताल में जगह नहीं है और घर में दवाई मिल नहीं रही है। दिल्ली के मसीहा केजरीवाल लगातार करोड़ों की टीवी एड देकर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को युवा टोली बनाने की बात कहकर 7 रेसकोर्स के कमरे में रह रहे हैं। बड़ा सवाल उठता है कि आखिर देश किसके भरोसे छोड़ दिया गया है? 


इतिहास याद रखेगा जब जन गण मन अस्पताल- अस्पताल भटक कर अपनी जान दे रहा था तब भारत का भाग्य विधाता लिजलिजे भाषण देकर अपनी जिम्मेदारियों से बच रहा था। इतिहास याद रखेगा कि श्मशान में जलती हुई ये लकड़ियां देश की आवाम को आवाज़ देने में मशाल का काम करेंगी और देश का अंतिम आदमी संसद से झकझोर कर पूछेगा कि आखिर आपकी क्या जिम्मेदारी है?

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