महाराणा प्रताप की आज जयंती है। प्रताप भारतीय शौर्य और पौरुष के स्थायी अलंकार हैं जिन्होंने कम संख्या बल के बावजूद ज्यादा मजबूत इरादों के बल पर अकबर को नाको चने चबवा दिए थे। महाराणा प्रताप कितने बलवान थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनका भाला 72 किलो और कवच 82 किलो ढाल तलवार सहित लगभग 208 किलो का वजन अपने शरीर पर धारण कर चलते थे यह सब किसी अजूबे से कम नहीं लगता लेकिन यह आर्यावर्त की भूमि की विशेषता रही है कि उसने ऐसे असंख्य वीरों को जन्म दिया जिसके शौर्य से सम्पूर्ण विश्व परिचित हुआ।

राणा प्रताप के गूढ़तम रहस्यों में से यह भी एक है कि वे अरावली की पहाड़ियों एवं मेवाड़ राज्य के जंगल के चप्पे-चप्पे से परिचित थे और जहाँ से चाहे वहां से अल्प समयांतराल में आ जाते थे।

यह किसी वरदान से कम नहीं था वह जितने वीर-धीर उतने ही उदार प्रवृत्ति के साथ -साथ नारी का सम्मान करते थे। कई बार युध्दों के उपरांत मुगलों को परास्त करने से उनकी स्त्रियां भी इनके कब्जे में आ गईं किन्तु उन्होंने ससम्मान वापस भेज दिया जबकि इसके इतर मुगल युध्द जीतने के बाद पराई स्त्रियों की इज्जत लूट लेते थे एवं उन्हें अपने हरम में भर देते थे।

राणा प्रताप के जीवन में आदिवासी भीलों का योगदान अविस्मरणीय एवं जिनकी कार्यक्षमता एवं पारस्परिक सहयोग से एक ऐसी सेना का निर्माण किया जिसका मनोबल उच्च शिखर पर रहता था और इन्हीं भीलों के साथ राणा प्रताप ने मेवाड़ राज्य की अस्मिता की लड़ाई लड़ी।

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