आज पूरी दुनिया बुद्धपूर्णिमा को श्रद्धा के साथ मना रही है ताकि भगवान बुद्ध के धम्म की शरण में जाया जा सके। आजकल एक ट्रेंड और फैशन चल गया है कि दलितों के तथाकथित ठेकेदार बने जो लोग और संगठन हैं वह लगातार बुद्ध भगवान की आड़ में सनातन धर्म के मूल्यों पर प्रहार करते हैं और इस मुद्दे पर उनका साथ देते हैं शांतिप्रिय समुदाय के लोग.. सनातन धर्म पर प्रहार करने के लिए कोई मौका ना चूकने वाले शांतिप्रिय समुदाय के लोग हिंदू धर्म के इन लोगों के साथ मिलकर कम्युनिस्ट नारा ‘जय भीम जय मीम’ हवा में उछालते हैं।


अब इन लोगों से पूछा जाना चाहिए कि आखिर 2 मार्च 2001 को अफगानिस्तान के बामियान प्रांत में भगवान बुद्ध की वैश्विक धरोहरों को रॉकेट लॉन्चर से उड़ाने वाले लोग किस समुदाय के थे। भारत के दलितों को भड़काने के लिए शांतिप्रिय समुदाय के लोग जय भीम जय मीम नारा उठाते हैं मगर जब दलित एकता के मुद्दे पर उनसे कहा जाए कि वह ‘बुद्धम शरणम गच्छामि’ और अफगानिस्तान के बामियान में तालिबान के इस कदम की निंदा करें तो इस मुद्दे पर वह शातिर चुप्पी अख्तियार कर लेते हैं। 


अफ़ग़ानिस्तान के बामियान में इन विशालकाय बुद्ध प्रतिमाओं को उड़ाने के लिए 3 दिन तक अफगानिस्तान में इन मूर्तियों के भीतर बारूद भरा था। करीब 25 दिन तक रोजाना बारूद भरकर उड़ाने के बाद ही आखिरकार बामियान की इन बुद्ध प्रतिमाओं को नुकसान हो सका। इससे पहले भी चंगेज खान, औरंगजेब, नादिरशाह, अब्दाली ने बामियान की इन बुद्ध प्रतिमाओं को ध्वस्त करने की कोशिश की थी।


आपको जब भी दलित एकता के मुद्दे पर शांतिप्रिय समुदाय के लोग दिखें तो आप उनसे पूछिए कि भगवान बुद्ध की प्रतिमा को बम से उड़ाने वाले लोग किस समुदाय के हैं। अगर दिखावटी प्रेम के लिए वह लोग इस कदम की निंदा करते हैं तो उनसे कहिए कि इस्लाम में बुत परस्ती हराम है ऐसे में अगर वह बुतों को अफगानिस्तान में बने रहने के मुद्दे पर हामी भरते हैं तो क्या वह मुसलमान रहे हैं? आप यकीन मानिए जय भीम जय भीम का नारा उछालने वाले ये तथाकथित चेहरे राजनीति में ईमानदारी की तरह फौरन गायब हो जाएंगे।

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