राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा पर अपनी रिपोर्ट कलकत्ता उच्च न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष गुरुवार को प्रस्तुत की। इसमें कहा गया है कि राज्य में हिंसक घटनाओं में पीड़ितों की दुर्दशा के प्रति राज्य सरकार की भयावह उदासीनता को दर्शाता है।


आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पश्चिम बंगाल में विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं के खिलाफ जानबूझकर सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं ने हिंसा चलाई और इसके चलते हजारों लाखों लोगों को अपना घर प्रदेश छोड़कर दूसरी जगह पर पलायन करना पड़ा। रिपोर्ट में कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में कानून का नहीं बल्कि शासक का राज है, रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ दल के लोग विपक्षी दलों के लोगों के खिलाफ हिंसा कर रहे हैं। रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि लोगों में पुलिस और सत्तारूढ़ पार्टी के ‘गुंडों’ का डर है।


रिपोर्ट में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण टिप्पणियां की गई हैं। आयोग की अलग-अलग सदस्यों वाली टीमों ने राज्य के विभिन्न इलाकों में हिंसा पीड़ितों से मुलाकात की थी… रिपोर्ट में सदस्यों के साथ मारपीट, हमला और यहां तक ​​कि परेशान किए जाने के उदाहरण का उल्लेख किया गया है, लेकिन इस दौरान ममता बनर्जी की पुलिस मूकदर्शक बनी रही थी।

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