औरतों को जिस तरह से पिछले 1500 सालों से बन्द दरवाजों और बुरकों के भीतर रखा गया है, वो अपने आप में इनकी ऊंचाई और गहराई दोनों पर सवालिया निशान खड़े करता है। पाक यात्रा ‘हज’ करने के लिए औरतों को अनिवार्य है कि वो अपने ‘मरहम’ के साथ ही जाएं, मगर मध्यकाल से जारी इन रवायतों को अब पहली बार ध्क्का देने का काम खुद सऊदी प्रशासन ने किया है। 


औरतों के लिए अबतक नियम था कि वो किसी न किसी मर्द की सरपरस्ती में ही हज करने के लिए जा सकती हैं। इस नियम को ‘मरहम’ कहा जाता था। मगर अब सऊदी अरब प्रशासन ने इस नियम पर से रोक हटा दी है और अब महिलाएं अकेले भी हज करने जा सकती हैं। इस तरह पाकिस्तान की बुशरा शेख पहली महिला बनने जा रही हैं जो बिना किसी मर्द के अकेले ही हज करने जा रही हैं। 


AFP न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए बुशरा शेख ने कहा कि यह उनके बचपन का सपना था कि वह हज करने जा रही हैं और ऐसे में बिना किसी मेल गार्जियन के हज पर जाना उनके लिए खुशी का पल है जिसके लिए वह ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करती हैं।


जानकारों के मुताबिक कुरान में हज पर महरम मर्द को ले जाने की बंदिश नहीं है… कुरान में हज के ऊपर 25 आयतें हैं, लेकिन किसी में ऐसा नहीं कहा गया है। शायद ये नियम इसलिए बने हो कि पहले हज पर जाना सुरक्षित नहीं था… लोग ऊंट पर बैठकर महीनों में हज करने पहुंचते थे…कई बार रास्ते में उन्हें लूट लिया जाता था। रास्ते में तमाम लोग बीमार हो जाते… शायद इसलिए महिला के साथ घर के किसी मर्द का होना जरूरी समझा गया हो, लेकिन आज हवाई यात्रा बहुत आसान है. महिलाएं भी अकेले सफर करती हैं।

लेकिन मुस्लिम धर्मगुरु इसे शरियत का नियम समझते हैं। शरियत का जो कानून है वह कहता है कि औरत के साथ उसका महरम होना चाहिए… उसका भाई होना चाहिए, उसका शौहर होना चाहिए…उसका बेटा होना चाहिए…उसका चाचा होना चाहिए। अगर ना हो तो औरत हज को ना जाए, कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब कुंभ के मेले से लेकर वेटिकन सिटी तक हर उम्र की महिला को और अकेली महिला को जाने की इजाजत है तो फिर वह हज में अकेले क्यों नहीं जा सकती है।

Article Source: AFP News agency

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