राइटर के फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी का बेरहमी से तालिबान ने कत्ल कर दिया। सारे लिबरल वामपंथी दानिश के कत्ल पर चिल्लाने लगे मगर अब तक किसी की जुबान से तालिबान का नाम नहीं निकला है। 2014 के बाद से अक्सर भारत में बसे हुए तमाम शांतिप्रिय समुदाय के लोग देश में बसे हुए अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके वजूद पर सवालिया निशान खड़े करते हैं, यह महज एक प्रोपेगैंडा है जो सिर्फ नरेंद्र मोदी की छवि को खराब करने के लिए चलाया जाता है। अगर 2014 के बाद से देश में अल्पसंख्यकों के मन में भारत देश के प्रति इतना ज्यादा डर है तो फिर आखिर दानिश सिद्दीकी और उसके जैसे तमाम लोग अपनी आजादी का बेखौफ इस्तेमाल कैसे कर पा रहे थे।

दानिश सिद्दीकी जब तक भारत में रहे तब तक उन्होंने बेहतरीन तालीम हासिल की, भारत देश में बोलने की आजादी का खूब लाभ उठाया, कोरोना की विपदा के समय भारत की छवि खराब की… मगर जैसे ही दानिश सिद्दीकी तथाकथित अपने लोगों के बीच पहुंचा वहां उसका कत्ल कर दिया गया। तमाम अल्पसंख्यक समुदाय के नौजवानों को यह सोचना चाहिए कि वह प्रोपेगेंडा करने वाले वामपंथी लिबरल गैंग के बहकावे में ना आएं और दानिश सिद्दीकी के इस वाकिये से सीख हासिल करें कि भारत जैसी लोकतांत्रिक खूबसूरती इस दुनिया में कहीं नहीं है.. यहां उनको दानिश सिद्दीकी की तरफ पढ़ने, बोलने और सरकार के खिलाफ काम करने की आजादी है , मगर वह महज मजहब के नाम पर तथाकथित अपने लोगों के बीच जाएंगे तो कट्टर उंगलियों से चली बंदूक की गोली पर किसी का नाम नहीं लिखा होता है।

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