“मैंने उन्हें अपना नाम मुसलमान बताया फिर भी उन्होंने मुझे चुंगी से पानी पीने नहीं दिया “यह कथन है डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की अपनी जीवन गाथा में की मुसलमानों में कितनी घृणा है एक दूसरे के जातियों के प्रति।
बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का विचार इस्लाम के प्रति बिल्कुल ही नकारात्मक था वह इसे एक ऐसा धर्म मानते थे जिसे मैं जातिगत की समस्याएं तो थी ही साथी साथ दूसरे धर्म के प्रति आदर का ना भाव था ना विचार था ना ही उनके लिए प्रेम था।
अपनी पुस्तक पाकिस्तान एवं भारत का विभाजन में डॉक्टर अंबेडकर लिखते हैं कि मुस्लिमों का भाई भाई वाला भाव केवल मुस्लिमों के लिए ही है, यह बात और पुख्ता हुई जब खिलाफत आन्दोलन चला जो की पूर्णतः इस्लामिक आन्दोलन था जिसका भारत से कोई लेन देन नहीं था। उसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे लोग खुल कर हिस्सा ले रहे थे, जिसका एक मात्र उद्वेश्य तुर्की पर खलीफा का राज्य पुनः स्थापित करना था।

मुस्लिम लीग को भारत के अधिकांश मुसलमानों का समर्थन प्राप्त था और मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान बनाने की बात न मानने पर डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा कर दी और 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे मनाया गया जिसमें 4000 से अधिक हिंदुओ की बंगाल में हत्या कर दी गई। डाॅ. अम्बेडकर ने लिखा कि केवल एक जमीन के टुकड़े पर रहने से ही देश नहीं बनता, बल्कि रहने वाले लोगों में यदि आपस में घृणा का भाव है तो वह साथ साथ किसी मजबूरी में तो रह सकते हैं, पर लंबे समय तक यह संभव नहीं है।

डॉ. अम्बेडकर ने इतिहास के उन पन्नों को उद्धृत किया जिसमें इस्लामिक आक्रमणकारियों द्वारा भारत की जनता पर किए गए भयंकर अत्याचारों का वर्णन है। कितने मन्दिर तोड़ दिए गए, उसकी जगह मस्जिदें खड़ी हो गईं, मंदिरों के धन को लूट लिया गया, स्त्री व पुरुषों पर भयंकर अत्याचार हुए, उन्हें गुलाम के रूप में अरब ले जाया गया।

अंबेडकर ने साफ तौर पर लिखा मुगलों का आक्रमण करने का कारण केवल लूट नहीं था, बल्कि गैर मुस्लिमों को बलात इस्लाम धर्म कबूल कराना था जो कबूल न करे उसकी सजा मौत थी। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया है कि लालच देकर भी इस्लाम कबूल करवा लिया जाता था। उस समय कुरान इस्लाम के मानने वाले कुछ ही लोगों को मिल पाती थी, डॉ अम्बेडकर को यदि कुरान मिल गई होती तो वह उसमें से भी ऐसी आयतों को अवश्य ही उद्धृत करते, जिसमें इस्लाम को किसी भी तरह से फैलाने का हुक्म है और गैर मुस्लिम को किसी भी प्रकार मुसलमान बनाने अन्यथा उन्हें मार देने का हुक्म है।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने की घोषणा की थी तब कई मुसलमान और ईसाई मिशनरी उनके पास गए थे उनके धर्म को अपनाने के लिए तभी उन्होंने सिरे से नकार दिया था और कहा था कि मैं भारत का निवासी हूं और भारत में रहने वाला ही कोई धर्म अपना लूंगा ना कि कोई भी विदेशी धर्म को।

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