एक रस्म
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मिथिला में एक परंपरा होती है नवविवाहित दंपत्ति के द्वारा गौरी पूजन के लिए फूल तोड़ने की। यह दूल्हे के ससुराल में निभाई जाने वाली परंपरा है। नवविवाहित पति अपनी पत्नी के लिए लग्गी से फूलों की डालियों को झुकाता है और नवविवाहिता पत्नी पुष्प संग्रह पात्र में जिसे फुल-डाली भी कहते हैं , फूल तोड़ तोड़ कर जमा करती जाती है गौरी पूजन के लिए।
बड़ी मनोहरी परंपरा है। और यह रस्म आमतौर पर ससुराल में होती है तो मादकता के साथ घबड़ाहट का भी समावेश रहता है और लिहाज का भी क्योंकि इस पुष्प त्रोटन प्रक्रिया में कम से कम दर्जनों आंखें उस नवविवाहित जोड़ी पर लगी रहती है।
थोड़ा सा हास परिहास और एक सरस प्रक्रिया है आमतौर पर मैथिल ब्राह्मणों की परंपरा में इस रास्ते से हर दूल्हा गुजरता है।
अब इसका निहितार्थ क्या है? दरअसल यह प्रक्रिया बताती है कि अपने आने वाले दांपत्य जीवन में छोटे से छोटा काम भी मिलकर करना चाहिए और दोनों का सहयोग उसमें होना आवश्यक है। अगर इतना ही होता तो साथ साथ रोटी पकाने की बात होती या सब्जी बनाने की रस्म होती। आखिर पुष्प वाटिका का प्रकरण क्यों?
वास्तव में मिथिला के अंतरतम में राम समाहित हैं। हर मैथिल की बेटी सीता है, राधा या रुक्मिणी नहीं। पुष्प वाटिका में राम के द्वारा सीता को देखना और अपने मर्यादित प्रेम के लिए पूर्ण पुरुषार्थ का प्रदर्शन एक नज़ीर है।
हर माता-पिता अपने बेटी और दामाद में राम सीता की छवि देखते हैं इसलिए शायद विवाह के तुरन्त बाद एक पुष्प वाटिका सजा दी जाती है।
परंतु जो लोग भी पूजा के लिए फूल तोड़ते हैं उन्हें पता है कि ज्यादा से ज्यादा फूल तोड़ने की लालसा में कभी-कभी तोड़े हुए फूल डलिया में संभाले नहीं जाते और जितना फूल तोड़ने की आशा में हम दुस्साहस करते हैं उससे ज्यादा फूल डलिया से गिर जाता है और तब पता चलता है कि अगर हम उन असंभव से लगने वाले फूलों की तरफ ना जाते तो उस परिस्थिति में भी हमारी फूलों की डलिया में कुछ ज्यादा फूल हीं होते।
भाग्य हमारे हर प्रयास को पहले से ही निर्धारित पुरस्कार से पुरस्कृत करता रहता है और उस निर्धारित सफलता से ज्यादा की चाहत हमें उस निर्धारित सफलता से भी कम सफलता पर मन मसोसकर रहने पर विवश कर देता है।
यह फूल तोड़ने का प्रकरण हर नव दंपति को यह बताता है कि वर्तमान में मिली हुई उपलब्धियों को सहेजना ज्यादा जरूरी है बजाय इसके कि और अधिक प्रयास करके कुछ अतिरिक्त सफलता प्राप्त की जाए। या दूसरे शब्दों में कहें तो यह फूल तोड़ने की प्रक्रिया दांपत्य जीवन में भाग्य द्वारा प्रदर्शन साथ साथ रहने के मौके को गँवा कर भविष्य में और अधिक सफलता की चाहत के नुकसान की ओर भी इशारा करता है।
भारतीय फिल्मी संगीत का एक गाना इस मौके पर याद आता है …
आगे भी जाने ना तूँ
पीछे भी जाने ना तूँ
जो भी है बस यही
एक पल है।
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