महात्मा गांधी अक्सर कहा करते थे  कि अंत मंे बैठे गरीब गणेष की सेवा करते समय उसकी संवेदनाआंे को उचित आदर मिलेगा तो ही सेवा का सम्मान होगा। अगर सेवा से संवेदना गायब होती है तो उसका फल वैसा नही होगा जिस भावना से हम सेवा के काम मंे लगते है। उन्हांेने कहा था ’’बिना श्रम के पॅूजी, भावना षून्य आनन्द,मानवता के बिना विज्ञान, चरित्र के बिना ज्ञान, सिद्धान्तहीन राजनीति, ईमानदारी के बिना व्यापार, उत्सर्ग के बिना उपासना महापाप है अहिंसा हमारे जीवन का आधार भूत नियम है।’’

गांॅधी जी के सम्बन्ध मंे आईस्टाईन ने कहा था ’’आने वाली पीढियां इस बात पर षायद ही विष्वास करंेगी कि ’’हाड मांस का ऐसा कोई पुतला धरती पर रहा था जिसने बगैर हथियार उठाये अपने देष को आजाद कराया और संसार को सत्य एवं अहिंसा का पाठ पढाया। महात्मा गांॅधी की  धार्मिकता, नैतिककता,भ्रातृत्व, सह अस्तित्व व चारित्रिक उच्चता पर आधारित थी। उनका कथन था कि भारत प्रमुख धर्माे का आश्रय स्थल रहा है बहुधर्मिय देष के रुप मे उभरा है। भारत के लोग धर्म मंे विष्वास करते है। धर्म उनके जीवन दर्षन को प्रभावित करता है। भारतीयांे की सामंजस्य की सोच व सहिष्णुता, धार्मिक मतभेद, सामाजिक असामंजस्य और तनाव को मिटा सकतीहै। महात्मा गांॅधी ने पहली बार दक्षिण अफ्रीका मंे उपनिवेष विरोधी संगठन की स्थापना की। 1894 मंे नाटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। 1912 मंे

अफ्रीका नेषनल कांग्रेस की स्थापना की,   अमानवीयता के विरुद्ध संघर्ष
किया।गाॅधी  ने अहिंसात्मक संघर्ष की ष्षैली की षक्ति, जिसे आज ’’सत्याग्रह’’ कहा जाता है, सें देष को ही नही, पूरे संसार को परिचित कराया, सारा विष्व आष्चर्य चकित होकर देखता रहा। सन् 1920 मंे गाॅधी जी ने ’’असहयोग’’ आन्दोलन चलाया, 1930 मंे’’सविनय अवज्ञा’’ आन्दोलन और 1942 मंे ’’भारत छोडो’’ आन्दोलन चलाया। 1920 से  1947 तक भारत के इस अर्ध.

नग्न संत ने, भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का नेेतृत्व किया। उनके प्रयास एवं प्रेरणा,नेतृत्व व ष्षक्ति के फलस्वरुप यह आन्दोलन स्वतंत्रता के लिए जन जन का आन्दोलन बन गया। महात्मा गाॅधी दार्षनिक, समाज सुधारक व राजनैतिज्ञ होने के साथ साथ एक महान षिक्षा षास्त्री भी थे। महात्मा गाॅधी ने कहा था ’’ईष्वर का कोई धर्म नही होता इसलिए मेरी आस्था संसार के सभी महान धर्माे द्वारा निर्देषित मूल भूत सत्य मंे है। हम तभी सच्चे राष्ट्र को बना पायेगंे जब हम सोने के स्थान पर सच्चाई को, धन एवं बल की अपेक्षा निर्भयता को, स्वार्थ के स्थान पर त्याग को दिखा पायेगंे। आॅख के बदले आॅंख के न्याय से तो सारा संसार अंधा हो जायेगा। गाॅधी जी ने धार्मिक कट्टरपन के विरुद्ध संघर्ष किया और स्पष्ट कहा कि ’’राज्य को धर्म के विषय मंे हस्तक्षेप नही करना चाहिए। ईष्वर तो सत्य व प्रेम है,ईष्वर एक है सब अलग अलग व्याख्याएंे करते हैं।’’ उन्हांेने धर्म निरपेक्षवाद के सिद्धान्त को सामाजिक न्याय और समानता के साथ भी जोडा। गाॅधी के नेतृत्व के अवयव दूर दृष्टि, साहस व चरित्र, करुणा,समवती भावना, दृढ संकल्प, सम्पे्रषण निपुणता, संगठन कुषलता, रणनीति कौषल, प्रबन्धन-कुषलता, उदारता, राष्ट्रीयता, आत्मविष्वास व विष्व के प्रति व्यापक दृष्टिकोण थे। भारतीयों का संगठन एवं पुनर्नवीनीकरण, औपनिवेषिक आधीनता से भारत की अहिंसात्मक मुक्ति, अस्पृष्यता का उन्मूलन, पंचायती राज का पुनुरुत्थान, सामंतवाद का अंत,राजनीति मंे पारदर्षिता व नैतिकता का सूत्र पात उनके नेतृत्व की उपलब्धियां रही और उनका प्रभाव उग्रवादी राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, सिद्धान्त एवं कार्यप्रणाली, पर्यावरण व जन षक्ति आन्दोलनांे पर पडा। गाॅधी ने साबित कर दिया ’’संकल्प ष्षक्ति के धनी और अपने उद्ेष्य की सच्चाई मंे अपरिमित श्रृद्धा रखने वाले, उत्साही लोगांे का एक छोटा सा समूह भी इतिहास की धारा को बदल सकता है।’’
स्वाधीनता की रात को, गाॅधी जी स्वतंत्रता का जष्न मनाने के स्थान पर, नोआखली मंे साम्प्रदायिक हिंसा को ष्षांत करने मंे लगे थे।

30जरवरीण्1948 को नाथूराम गोडसे ने इस संत की हत्या कर दी। उनकी मृत्यु के पष्चात भी उनका दर्षन भारतीय राजनीति व विष्वविचारधारा पर छाया रहा है। पंचायती राज इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान वे दलितों के उद्धारक बन कर उभरे। दलितो को जागृत करने के साथ-2 वे उच्च वर्ग को देष मंे व्याप्त अस्पृष्यता को छोडने की प्रेरणा देते रहे। गांधी जी ने सत्ता और पद से दूर रह कर सर्वाेदय एवं सम्पूर्ण क्रान्ति के दर्षन का प्रतिपादन किया, व  देष को स्वाभिमान एवं स्वावलंबन का पाठा पढाया। यद्यपि देष के  विभाजन और उनकी हत्या से देष का घटनाक्रम घूम गया। गाॅधी 20वीं ष्षताब्दी के पहले नेता  थे जिन्हांेने सरलतापूर्वक उपनिवेषवाद, वर्गभेद ,राजनैतिक और सामाजिक बुराईयांे से संघर्ष किया। लुई फिषर के अनुसार ’’केवल कार्ल माकर््स ऐसे व्यक्ति  है जो गांधी के समान लोगांे के मस्तिष्क पर प्रभाव डाल सके हैं। पूरे विष्व के सामने गांधी एक भविष्य के  रुप मंे आज भी विघमान है। गाॅधी के लिए सत्य उतना ही वास्तविक और सर्वषक्तिमान था जितना ईष्वर। मार्टिन लूथर किंग ने स्वीकार किया था,’’ गाॅधी की अहिंसा ही सरलतापूर्वक उपनिदेषवाद व वर्ग भेद को  मिटा सकती है। हमारे सामने केवल दो ही विकल्प है, अहिंसा का या अस्तित्वहीनता का।’’

भौतिकतावादी परिवर्तन गाॅधीकालीन भारत को सुरक्षित नही रख सका। गाॅधी साधनांे की पवित्रता मंे विष्वास करते थे। भारत माता को बंधन मुक्त कराने के साथ हिंसात्मक प्रति हिंसा से मुक्त कराना चाहते थे सत्य सेवा और सर्वाेदय उनका जीवन दर्षन था। उन्होंने अपनी वसीयत मंे  कहा था ’’षहरांे और कस्बों से भिन्न हिन्दुस्तान के लाखांे गाॅवांे की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हाॅसिल करना उनका ध्येय है।’’ उन्होने कहा था ’’हमंे साम्प्रदायिक संस्थाआंे के साथ गंदी होड से बचना है, प्रेम षांति,सर्वधर्म,समभाव, मानव मूल्य, सुचिता, नैतिकता पर आधारित षासन पद्धति स्थापित करनी है।’’

सत्य की और उन्मुख प्रेम के प्रति दृढ प्रतिज्ञ, मानव मात्र के दुख निवारण हेतु स्वयं जल कर दूसरों को आलोकित करने वाले कभी कभी हठी किन्तु स्वयं साहसिक रुप से आष्वस्त थे। गाॅधी की जीवनी के लेखक लुई फिंषर ने लिखा है-’’ हमारे यहां विज्ञान के बहुत सारे व्यक्ति है किन्तु ईष्वर के बहुत कम। हमने अणु का रहस्य तो जान लिया किन्तु ’सर्मन आन द माउण्ट’ को अस्वीकार कर दिया। गाॅधी ने अणु को अस्वीकार कर दिया, सर्मन आन द माण्ट को आत्मसात् किया। वे नीतिषास्त्र के महा मानव थे। लेखिका मेरी ई. किंग के अनुसार गाॅधी आठ सषक्त संघर्ष के अग्रणिता थे। जातिवाद के विरुद्ध,उपनिदेषवाद के विरुद्ध,वर्ण भेद के विरुद्ध, आर्थिक ष्षोषण के विरुद्ध, महिलाआंे के निम्नीकरण के विरुद्ध, धार्मिक और जातिवाद श्रेष्ठता के विरुद्ध।’’

उन्होंने लिखा है’’गांधी लोकतत्रिक भागीदारी, के साथ सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तनों के समर्थक थे।जब तक ष्षत्रुता,अषांति,जातिय ष्षेाषण,आन्तरिक संघर्ष और सैन्य आधित्यका भय रहेगा लोग गाॅधी की ओर देखेगंे। आज यह प्रष्न बडा सार्थक है ‘‘अब तक की यात्रा हमारी कितनी सफल रही।’’

गांॅधी जी के आषीर्वाद से पं. जवाहरलाल नेहरु,, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने, परन्तु आर्थिक नीतियांे के सम्बन्ध मंे उनकी सोच स्वतंत्रता के साथ समाजवादी पद्धति की रही। उन्हंेोने भारत मंे नियोजित विकास प्रारम्भ किया। देष मंे सार्वजनिक क्षेत्र मंे आधारभूत उधोग,स्थापित किये। लोकतंत्र की स्थापना मंे ऐतिहासिक एवं महत्वपूर्ण योगदान किया।  मिश्रित अर्थ नीति पर राष्ट्र निर्माण की राह की षुरुआत की। देष धर्म निरपेक्ष बना रहा। सन् 1950 मंे संविधान तैयार कर हमने संसदीय जनतंत्र स्थापित किया, कानून के ष्षासन और मूल अधिकारांे की घेाषणा के साथ सामंती समाज रचना को ध्वस्त किया, सामाजिक न्याय की आवाज बुलन्द हुई। योजनावद्ध विकास के माध्यम  से भारत अविकसित देष से विकासषील देष बनता हुआ विकसित देष बन गया है। सामुदायिक विकास से पंचायती राज तक की विकेन्द्रित  राजनीतिक की छवि सामने आई। सामाजिक न्याय व आर्थिक  विकास के युग का एक नया दौर प्रारम्भ हुआ। (डा.सत्यनारायण सिंह)

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