एक व्यापारी था। व्यापार के सिलसिले में दूर देशों को जाता रहता था। उसके पास दो गधे थे जो सामान ढोने के काम आते।

एक बार व्यापारी ने एक गधे पर नमक और दूसरे पर रुई लादी और दुसरे देश को चला। रास्ते में छोटी छोटी कई नदियाँ थीं। जब सब पहली नदी को पार कर रहे थे तो व्यापारी की नज़र बचाकर जिस गधे ने नमक लाद रखा था , उसने नदी में डुबकी लगा ली। जब दूसरी नदी पड़ी तो फिर उसने ऐसा ही किया। जब तीसरी नदी में भी उसने ऐसा किया तो दूसरे गधे ने इसका कारण पूछा। इसपर पहले गधे ने बताया की नदी में डुबकी मारने से थोड़ा नमक पानी में बह जाता है तो मेरा भार हल्का हो जाता है।

दूसरे गधे ने सोचा ये तो बड़ी “सही” सोच वाला है। मुझे भी ऐसा करना चाहिए। अगली नदी पड़ते ही पहला गधा पानी में लोट गया। पर क्यूंकि रुई ने पानी सोख लिया, जिससे वो और भरी हो गयी। गधे को रुई लेकर चलने में अब बहुत दिक्कत होने लगी।

जब काफी दूर निकल आये तो व्यापारी की नज़र नमक लादे घोड़े पर गयी। उसे सामान काम होने का आभास हुआ , फिर जब उसने दोनों गधों को पानी में लोटते तो मारने दौड़ा। अब चूंकि नमक बहुत कम हो गया था तो नमक लादे हुए गधे को भागने में कोई दिक्कत नहीं हुई। इसके उलट , रुई लादे गधा भाग भी नहीं सका और व्यापारी की मार का शिकार भी हुआ।

कहने का मतलब ये जिस रुई , जो नमक से कहीं हलकी होती है , को गधा आराम से लेकर जा सकता था उसे दूसरे गधे के क्षणिक सुख को देखकर उसने भारी कर लिया और बाद में व्यापारी के कोपभाजन का भी शिकार हुआ। “नक़ल में अकल” की ज़रुरत होती है , ये सही है। पर अकल इस बात में भी लगनी होती है कि क्या वाकई में नक़ल करनी भी है ?

इसलिए जो आपका है , आपके पास है या मिला है , उसको जानने-समझने की कोशिश करनी चाहिए। और किसी दूसरे को देखकर अपनी चीज़ों को नीची नज़रों से नहीं देखना चाहिए।

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