अटलजी, जिनके बारे में कुछ लिखने या बोलने के लिए प्रत्येक व्यक्ति बहुत छोटा है क्योंकि अटलजी का व्यक्तित्व इतना विशाल है कि उनके बारे में लिखते लिखते आपकी कलम की स्याही खत्म हो जाएगी, बोलते बोलते आपकी वाणी में शब्द खत्म हो जाएंगे, पढ़ते पढ़ते आपकी आंखें थकने लगेगी लेकिन इन सब के बावजूद आप अटलजी के व्यक्तित्व को माप नही सकेंगे।

अटलजी, भारतीय राजनीति के वो नक्षत्र जिन्होंने अपने दैदीप्यमान प्रकाश से भारतीय राजनीति को एक नई दिशा और दशा प्रदान की।
उनकी चिर परिचित सौम्य मुस्कान, भाषण की अद्भुत ओजस्वी शैली (जो गर्दन को हल्का सा झटका देकर हाथ हिलाने के बिना अधूरी लगती थी), उनके सार्थक नाम के महान व्यक्तित्व से हर एक आयु, वर्ग, दल का व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नही रह सकता था।
प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी उनमें लेश मात्र का अहंभाव नही था, प्रत्येक व्यक्ति से अटलजी बहुत ही सहज तरीके से मिलते थे और सबसे महत्वपूर्ण उनकी कुशाग्र बुद्धि, एक मुलाकात से ही उन्हें उस व्यक्ति का नाम और चेहरा हमेशा याद रहता था।

वर्तमान में भाजपा का जिस प्रकार से विस्तार हो रहा है उसका कारण है अटलजी द्वारा पार्टी की शैशवावस्था में पार्टी का पालन पोषण बेहद ही अनुशासनात्मक रूप से करना।
वरना आप सोचिए मात्र 40 वर्ष पुरानी पार्टी (06.04.1980) की केंद्र में तीन बार पूर्णकालिक सरकार, 18 राज्यों में मुख्यमंत्री, सैकड़ों सांसद, हज़ारों विधायक ये सब कैसे सम्भव हो पाता।
इसके साथ ही अटलजी ने अन्य पार्टियों की तरह परिवारवाद को बढ़ावा नही दिया और ना ही कभी वो राजनीति में इस मुद्दे का समर्थन करते थे, यही कारण है कि आज भी भाजपा परिवारवाद से स्वयं को बचाने में सफल है।

परम् पूज्य गुरुजी के साथ श्रद्धेय श्री दीनदयाल उपाध्याय जी एवं श्रद्धेय श्री अटलजी
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांगण से निकलकर देश के शीर्ष पद को ग्रहण करना अटलजी के लिए आसान नही था, क्योंकि प्रत्येक संगठन में प्रतिस्पर्धा रहती है और अटलजी ने हमेशा इस प्रतिस्पर्धा से स्वयं को दूर रखा लेकिन संघ को भी ऐसे व्यक्तित्व की तलाश थी जिसकी स्वीकार्यता सम्पूर्ण देश में हो।
स्वयं अटलजी ने आरएसएस की विचारधारा को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से आगे बढ़ाया।पार्टी के सिद्धांतों को लेकर वे मुख्य चेहरा बने। वे बखूबी जानते थे कि संघ के विचारों को कब और कैसे आगे बढ़ाना है। लोग विचारधारा को स्वीकार्य करेंगे या नहीं, अटलजी यह सब बहुत करीब से जानते थे।
आडवाणी जी के शब्दों में, “बड़ी बात यह थी कि लोगों ने अटलजी की बात को न केवल सुना, बल्कि उनकी विचारधारा को भी स्वीकार कर लिया। जहां तक प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवारी की बात थी तो उनसे बेहतर कोई दूसरा व्यक्ति था ही नहीं। मैंने संगठन के लिए खूब काम किया है। मैं संगठन के लिए ही ज्यादा उपयुक्त था। जब बात देश का नेतृत्व करने की आई तो अटल जी उसके लिए हर तरीके से उपयुक्त थे।”
इसलिए संघ द्वारा अटलजी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया और वो उस पर बिल्कुल खरे भी उतरे, इस प्रकार देश को अटलजी के रूप में प्रथम स्वयंसेवक प्रधानमंत्री का प्रभावशाली नेतृत्व प्राप्त हुआ।

भारत के शायद वो एकमात्र प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने राजनीति को कभी भी अपनी रुचि का विषय नही माना और इस बात को अटलजी स्वयं अनेक बार कह चुके थे कि, “राजनीति मेरे मन का पहला विषय नही था, राजनीति से कभी कभी उन्हें घृणा होती थी।”
यही नही एक बार उन्होंने संसद में भी कहा था कि, “‘मैं राजनीति छोड़ना चाहता हूं, पर राजनीति मुझे नहीं छोड़ती. लेकिन, चूंकि मैं राजनीति में दाखिल हो चुका हूं और इसमें फंस गया हूं, तो मेरी इच्छा थी और अब भी है कि बगैर कोई दाग लिए जाऊं.और मेरी मृत्यु के बाद लोग कहें कि वह अच्छे इंसान थे जिन्होंने अपने देश और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने की कोशिश की.”

अटलजी का कवि मन कभी भी राजनीति के वातावरण में सही तरीके से ढ़ल नही पाया।
कविता रचना उनका प्रिय विषय था और इसकी यदा कदा झलक उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल में भी देखने को मिलती थी, लेकिन फिर भी राजनीति के चक्रव्यूह में उनका कवि मन सदा ही निष्क्रिय रहा।
स्वयं अटलजी के शब्दों में…
“राजनीति के रेगिस्तान में ये कविता की धारा सूख गई।”
“कविता वातावरण चाहती है, कविता एकाग्रता चाहती है, कविता आत्माभिव्यक्ति का नाम है और वो आत्माभिव्यक्ति शोर-शराबे में नहीं हो सकती।”

अटलजी एक दृढ़ निश्चयी इंसान थे, गठबंधन की सरकार होते हुए भी उन्होंने वो ऐतिहासिक निर्णय लिए जिनको ये देश सदा याद रखेगा।
यथा :-
1. स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना
2. संचार नीति 2003
3. सर्व शिक्षा अभियान
4. पोखरण परमाणु परीक्षण
5. करगिल युद्ध में विजय
6. आतंकवाद निरोधी कानून POTA
7. संविधान समीक्षा आयोग
8. निजीकरण विनिवेश योजना

अटलजी ने हमेशा राष्ट्रहित को अन्य किसी भी हित से श्रेष्ठ माना है और यही कारण है कि उन्होंने हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर स्वयं को इस राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया, संसद में उनके एक भाषण के कुछ अंश इसी बात को प्रमाणित करते है…
“सत्ता का खेल तो चलेगा-सरकारें आएंगी जाएंगी, पार्टियाँ बनेंगी बिगड़ेंगी-मगर ये देश रहना चाहिए, इसका लोकतंत्र अमर रहना चाहिए”

05 दिसंबर 1992 को अटलजी का उद्धबोधन

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में उनके योगदान को कोई नही भूला सकता है, अपने विशेष उद्धबोधन तरीके से वो इशारों इशारों में ही बहुत बड़ी बात कह देते थे जैसे कि आप ऊपर वाले वीडियो में देख सकते है।
यदि आज अटलजी जीवित होते तो 05 अगस्त 2020 को उन्हें अपार खुशी और आत्मसंतुष्टि होती कि एक आरएसएस भाजपा कार्यकर्ता के द्वारा श्रीराम मंदिर का शिलान्यास सम्पन्न हो रहा है।

आप चाहे किसी भी उम्र, वर्ग या दल से सम्बन्ध रखते हो,
आपकी राजनीति में रुचि हो या नही,
आप अटलजी से मिले हो या नही,
इन सब बातों के बावजूद भी आप अटलजी के महान हिमालय व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नही रह सकते क्योंकि अटलजी जैसे युगपुरुष सदियों में एक बार जन्म लेते है जो अपने महान कार्यों से काल के कपाल पर ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते है जो समय के अबाध कालचक्र से भी निस्तेज नही होते है।

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