सोशल मीडिया के जगत में सबसे लोकप्रिय बने सोशल मीडिया नेटवर्क ट्वीटर पर कल राष्ट्रवादी यो का बडा गुट ‘हमारी संस्कृति हमारे विचार’ इस हॅश टॅग पर पुरे समर्थन के साथ लगातार लिख रहा था। और लिखे भी क्यु ना, हमारी संस्कृति हमारे लिए अनमोल विरासत है जिसे हमारे पुर्वजो ने अपने प्राणो की आहुती देकर हमे सौपी है। लगातार हिंदु संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति का बढता प्रभाव ओर युवा पिढीयों के मन में अपनी ही सभ्यता ओर धर्म के प्रति भरा हुवा पिछ़डापन इन तमाम बातो का इस हॅश टॅग के सहारे उल्लेख किया गया। हमारी संस्कृति ने विश्व को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना से जोडा। संस्कृति ओर विचारो का बडा गहरा मेल होता है। हिंदु संस्कृति की परिभाषा जिसने परखी हो वो प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी राहा। हिंदु संस्कृति को आत्मसात करते ही अच्छे विचारो की भावना जन्म लेती है। क्युकी हमारी सनातन संस्कृति ने कभी किसीकी अवहेलना,किसीको मारना या किसीको हानी पहुंचाना नही सिकाया हमारी संस्कृति तो वो है जो विश्व के स्थायी-अस्थायी जिव, पेड-पौधे, जल, वायु, अग्नि इन सभी में भगवान को देखकर पुजा करना सिकाती है। विश्व का कल्याण हो यही परिभाषा को साथ लेकर चलना ही हमारे संस्कृति की देन है।

लेकिन लगातार युवा पिढियो के मन में हमारी संस्कृति को लेकर अपशब्द भरे जा रहे है। उन्हे जताया जा राहा है की हिंदु संस्कृति के विचार पुराने ओर विकास में बाधा डालने वाले है। पाश्चात्य संस्कृति को बढावा देकर हिंदुवो के मन में अपने ही संस्कृति के प्रति दुरावा निर्माण किया जा राहा है। पाश्चात्य को स्विकार कर उसे प्रभावशाली ओर आधुनिक बताकर हिंदु संस्कृति को बदनाम करने कि इस भुमिका में सोशल मीडिया का एक हिस्सा और हिंदी फिल्मो का बडा योगदान राहा है। देश का बडा हिस्सा ऐसा है जिसपर फिल्मी जगत का असर पडता है। जैसे बचपन में शक्तिमान देखकर बच्चो को शक्तीमान बनने की इच्छा प्रकट होती थी, स्पाइडर मैन देखकर बच्चे उनके होने का अंदाजा बना लेते थे यानी चित्रपट, सिरीयल्स, वेबसिरीज ऐसी चिजे है जो अपना प्रभाव भली बाती छोड सकते है। ऐसे ही हिंदी फिल्मो में हिंदु धर्म के अस्तित्व पर सवाल खडे करना, हिंदु देविदेवतावो को अपमानित करना आम बाते है। इन सब बातो को प्रभावशाली व्यक्ती के मदत करके युवा वो के मन में अपने धर्म ओर संस्कृति के अस्तित्व के प्रति सवाल आसानी से खडा कर दिया जाता है। ओर उनके मन में पाश्चात्य संस्कृति के प्रति प्रेम अपनापन निर्माण कर देते है।

सभी भली बाती जानते है की मुगल आये,अंग्रेज आए चले गये लेकिन अपना प्रभाव याहा छोड गये ओर आज उनिके वंशज इस सब को आगे बढाकर फिरसे हमको उनकी संस्कृति का गुलाम बनाना चाहते है। पश्चिम देशो में परिवारो को मान्यता नही है बच्चे 15-16 साल के होते ही उन्हे अपने भरोसे छोड दिया जाता है लेकिन हमारी संस्कृति ने विश्व को परिवार माना। हमारे याहा परिवार को सबसे बडी मान्यताए है। सुख दुःख में साथ देकर परिवार को साथ लेकर चलना हमारी संस्कृति की परिभाषा है लेकिन कही फिल्मो में इसके विपरीत दिखाया जाता है। कही हिंदी फिल्मो में परिवार को भुलाकर अपने प्यार के खातिर घर से भागना दिखाया जाता है, विज्ञापनो में भी यही बाते सामने आती है उदाहरण के लिए हम Disney Hotstar VIP के विज्ञापनो को देख सकते है जिसमें ‘तुम अपना देखो’ नाम का एक बैकग्राउंड गाना होता है। इन सबका हमारे जिवन पर बडा गेहरा असर पडता है। माना की लोकतंत्र में सबको अपने अपने तरिके से जिने का अधिकार होता है लेकिन परिवार को भुलाकर अपने लिए स्वार्थी बनना हमारी संस्कृति नही सिकाती। समाज को बहुत से असमाजिक तत्वो से हमे फिल्मो ने अवगत कराया, ऐसी असामाजिक तत्वो से बच्चो के दिमाग पर ऐसा बुरा असर पडा की वो अपराध की ओर बढ पडे। भजन किर्तन के जगह डिस्को जाना, आधे अधुरे कपडे पेहनना, किसिके के मौत के पश्चात दिये की जगह मोमबत्ती जलाना ये सब बाते फिल्मो के जरिए ही सामने आती है। आज हम देखते है कि भजन के प्रथा को मानसिक बिमारी बताया जाता है तो डिस्को जाना हमे आधुनिक लगता है, छोटे छोटे कपडे पेहनकर हम खुदको पाश्चात्य संस्कृती की तरह दिखाना चाहते है। दिये की जगह मोमबत्ती जलाना हमे आधुनिक लगता है, अंग्रेजी भाषा आते ही किसी बच्चे की बुध्दीमता बताना ये सब बाते हम पर हावी होती जा रही है। कुल मिलाके हम पाश्चात्य संस्कृती के प्रति आकर्षित हो रहे है। हम भुल गये की हम आधूनिक नही बल्की गुलाम बनते जा रहे है।

इसी हिंदी फिल्मी जगत ने हमारे धर्म, देविदेवतावो के प्रति अनुचित बाते समाज में पैदा की। अभी की बात है वेबसिरीज ‘द सुटेबल बाॅए’ चर्चा का विषय रही। किस तरह से लव जिहाद को बढावा दे रही इस सिरिज में मंदिरो में अश्लील सिन दिखाया गया। आश्रम नाम की वेबसिरीज दिखाकर हिंदु धर्म का अपमान किया गया लेकिन कोई वेब सिरीज मदरसे पर नही बनती। आखिर क्यु? इसका चिंतन हमे ही करना होगा। कही फिल्मे ऐसे भी है जिसमें समाज के अंदर की बुराईयो को सामने लाया जाता है जैसे भ्रष्ठ नेता, भ्रष्ठ व्यापारी, भ्रष्ठ पुलिसकर्मी लेकिन ये सब भी हमारे हिंदु धर्म को टारगेट करके ही दिखाया जाता है। इसके लिए हम Indian Institute Of Management, रोहतक के डायरेक्टर प्रोफेसर धिरज शर्मा के रिपोर्ट को देख सकते है जिसमे उन्होने 1950 से लेकर 2010 के बिच में बनी हिंदी फिल्मो का अध्ययन कर बारकाई से जाँच की है। उनके मुताबित हिंदी फिल्मो में दिखाए जाने वाले 74 प्रतिशत सिख किरदारो का मजाक उडाया जाता है। भ्रष्ट राजनेतावो के 58 प्रतिशत किरदार ऐसे होते है जिनके सरनेम बताते है की वो उच्च जाती के ब्राह्मन है। भ्रष्ठ व्यापारीयो में 62 प्रतिशत किरदार हिंदु धर्म से निगडित होते है। इसके अलावा 84 प्रतिशत फिल्मो में मुसलमानों को अच्छा एवं ईमानदार दिखाया जाता है। आखिर ऐसी विपरित परिस्थिति क्यु दिखाई जाती है। आखिर हमारे ही धर्म को निशाना क्यु बनाया जाता है। कही फिल्मो में खलनायक कि भुमिका निभा रहे व्यक्ति को टिका लगा कर दिखाया जाता है की वो हिंदु है। यानी ये फिल्मे दर्शाना चाहती है की जो समाज में बुरे,भ्रष्ठ है वो हिंदु है। हिंदु निभा रहे किरदारो को भ्रष्ठ,संकुचित सोच एव कट्टर पंथी सोच का दिखाया जाता है। तो वही मुस्लिम निभा रहे किरदारो को खुली सोच का, ईमानदार और इस तरह से दिखाया जाता है जैसे उनसे अच्छा इन्सान कोई ना हो। हम किसी का विरोध नही करते लेकिन ये दोगलापण केवल हिंदुवो के साथ ही क्यु? हम संजय दत्त की संजु फिल्म, सिंघम 2 फिल्म के खलनायक की भुमिका में अमोल गुप्ते, टाॅयलेट एक प्रेम कथा के किरदार सुधिर पांडे, सरकार फिल्म के किरदार अमिताभ को देख सकते है ।

हिंदुवो को बदनाम करने का ये सिलसिला आज की बात नहीं है। ये तो बहुत पहिले से ही शुरू हुवा है। 1970 के दशक में बनी अमिताभ बच्चन की दिवार फिल्म काफी मशहुर हुई थी जिसका एक सिन था जिसमें अमिताभ मंदिर जाकर भगवान के अस्तित्व पर सवाल खडे करते है। लेकिन इस बात पर किसी हिंदु को आपत्ती नही होती ओर फिल्म हिट भी हो जाती है। बिल्ला नंबर 786 हो या खिलाडी 786 हर जगह केवल हिंदु किरदारो की अपने धर्म के प्रति संकुचित सोच को दर्शाया जाता है। जिसका असर हिंदु युवावों पर पडता है। बडे बडे नायक, फिल्म निर्माते खुदको धर्मनिरपेक्ष बताते है। आप सभी ने अमिताभ बच्चन की एक फिल्म देखी होगी जिसमें गोली बिल्ला नंबर 786 पर लगकर वापस चली आती है तो वही दुसरी तरफ भगवान पर सवाल उठाते है यानी सोच समजकर हिंदू धर्म के प्रति उनकी सोच को संकुचित किया जाता है, जिसका असर उनके चाहने वाले हिंदुवो पर पडता है। फिल्मो में वो सवाल उठाते ओर असल में इसका असर होता है कि हिंदु भगवान पर विश्वास नही करते। 2013 की फिल्म ‘गोलियों की रासलिला रामलिला’ कि बात करे तो फिल्म के नाम में ही हिंदुवो का मजाक उडाया है। इस फिल्म का एक संवाद है ‘राम रंगरलिया मना राहा होगा हनुमान गली मे’, उसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ओर हनुमान का भेस धारण किए हुए किरदारो को एक अजिब सा नृत्य कराते हुए दिखाया जाता है, इसी फिल्म का एक गाना ‘राम चाहे लिला चाहे राम’ इस गाने में भी श्री राम के चरित्र को मजाक बनाया है। कितनी आसानी से ये लोग हमारे धर्म का मजाक उडा देते है। अमिर खान की फिल्म पिके तो पुरी हिंदू धर्म की आलोचना में ही बनी है। हमारे भगवानो का रूप धारन किए हुए किरदारो को अजिब अजिब हरकते करते हुए दिखाया गया। फिल्म के अंदर दिखाया गया कि हिंदु देवी देवतावो का अस्तित्व ही नही है लेकिन मुस्लिमो के दरगाह पर सवाल याहा नही उठाया गया। यही इस हिंदी फिल्मी जगत का दोगलापन है और ऐसी मुविज आसानी से सुपरहिट हो जाती है। सलमान खान की बजरंगीभाई जान की बात करे तो इसमें पाकिस्तानी किरदारो को खुली सोच वाला, साफसुथरा तो हिंदु किरदारो को कट्टरपंथी ओर संघीन मानसिकता वाला दिखाया गया।

ना जाने ऐसी कही फिल्मे है जिसे बनाते वक्त पाकिस्तानी दर्शको के भावना वो का खयाल रखा जाता है लेकिन जिसके आधार पर फिल्मे हिट होती है उन्ह 100 करोड हिंदुवो की भावनावो को ठोकर मार दी जाती है।

अब वक्त है हमे निंद से जागने का, अपनी सनातन संस्कृति को बचाने का, अपनी आने वाली पिढी़यो को सनातन संस्कृति की महानता से अवगत कराने का। अब आपको सोचना है कि, क्या आप ऐसी फिल्मे देखना पसंद करेंगे?

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