द केरल स्टोरी

अब तक आमतौर पर मैंने केरल को एक ऐसे राज्य के तौर पर देखा, जहाँ के लोग बहुत ज्यादा पढ़े लिखे हैं, जहाँ पर साफ-सफाई बहुत है, जहाँ पर बैकवॉटर्स हैं, जहाँ के लोग नौकरी के लिए खाड़ी देशों में जाते हैं, परंतु आज 5 मई 2023 के दिन मैंने अपनी धारणा बदल ली। आज मैंने ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म का फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखा, क्योंकि मैं जानना चाहता था कि ऐसा क्या है जो आम आदमी को मालूम होना चाहिए परन्तु फिर भी आज तक उससे छुपाया गया।

दरअसल भारत की मीडिया जिसे छुपाना चाहिए, उसे तो दिखाती है, और जो दिखाना चाहिए उसको छुपा देती है। सच्चाई को सामने लाने के लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए। मैं फर्स्ट डे फर्स्ट शो में इसलिए भी गया क्योंकि मैं बहुत ज्यादा उत्सुक, था उत्साहित था, इस फिल्म को लेकर, इसके बारे में मैंने जो कुछ भी सुना था, उसने मेरी इच्छा जागृत कर दी कि मैं पहले ही दिन जानकर यह फ़िल्म देखूँ। जब मैं मल्टीप्लेक्स में गया तो मुझसे एक एक निजी चैनल के रिपोर्टर ने पूछा, कि आपको फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने के बाद कैसा लगा, मैंने उन्हें कहा कि मैंने इस फिल्म का फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखा क्योंकि मैंने ‘द कश्मीर फाइल्स’ का भी ‘फर्स्ट डे, फर्स्ट शो’ देखा था। चाहे लोग कुछ भी कहें, चाहे लोग इसको विवादास्पद बतायें, इसकी निंदा करें, इसे प्रोपेगेंडा फिल्म कहें, या ये कहें कि इस फिल्म के ज़रिए कुछ विशेष लोगों को या फिर एक विशेष विचारधारा को लाभ पहुंचाने का प्रयत्न किया गया है, या फिर आंकड़ों को बदलकर पेश करने का आरोप इस पर लगाया जाये। वास्तविकता यह है की जो इन फिल्मों में दिखाया जाता है, वह वास्तविकता में जो हो रहा है उसका 5 फ़ीसदी भी नहीं होता है। परन्तु चूंकि हर तथ्य को एक फ़िल्म के माध्यम से दिखा पाना हर बार संभव नहीं होता है, उसे एक ऐसी सूरत दी जाती है की उसे प्रस्तुति योग्य अवस्था में दर्शकों तक पहुंचाया जा सके। इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस प्रकार केरल की तीन महिलाएं, केरल के अलग-अलग हिस्सों से केरल के ही एक नामी नर्सिंग कॉलेज में प्रवेश लेती हैं। उस कॉलेज की दीवारों पर भारत विरोधी नारे लिखे होते हैं और माहौल उनके लिए बिल्कुल नया होता है।

केरल में नर्सिंग को बड़ा ही अच्छा पेशा माना जाता है, क्योंकि इसमें आप दीन-दुखियों की सेवा करते हैं और परोपकार करते हैं। फिर बताया गया है कि किस प्रकार केरल की 3 महिलाओं के साथ एक और महिला बतौर ‘रूम पार्टनर’ रहने आती है। यह ‘रूम पार्टनर’ एक आतंकी महिला है, जिसे की अन्य आतंकियों के साथ मिलकर महिलाओं को फुसलाकर आतंकी नेटवर्क का हिस्सा बनने के लिए लाने का दायित्व सौंपा गया होता है। यह ‘रूम पार्टनर’ एक षड्यंत्र का हिस्सा होती है। वह बाकी महिलाओं की कुछ लड़कों के साथ दोस्ती करवाती है, फिर वह सभी मिलकर इन महिलाओं का ब्रेनवाश करते हैं और उसके बाद उनके साथ जो घटित होता है वो बेहद दर्दनाक है। यह महिलाएं अपने मां-बाप से छिपाकर, उनके विरुद्ध जाकर कई गलत काम कर बैठती हैं। उन लडकों के साथ इनकी शादी करवा दी जाती है, इन लड़कियों को बेचा जाता है, इनका धर्मांतरण किया जाता है, इनके साथ ज्यादती करके इनका इस्तेमाल किया जाता है और छल से एक विश्वव्यापी षड्यंत्र का हिस्सा बना दिया जाता है।

दुनिया में सैकड़ों की तादाद में ऐसी महिलाएं हैं जिनको आतंकी संगठनों के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया जाता है, बेचा जाता है, या फंसाया जाता है। इन सबसे बचकर भाग पाना लगभग असंभव है।

‘द केरल स्टोरी’ एक नारी के संघर्ष की कहानी है, जो ‘किसी’ के प्यार में पड़कर अपना सब कुछ गंवा बैठती है, उससे जबरन कई चीजें करवाई जाती हैं, और उसको आतंकी संगठन के लिए काम करने के लिए भेज दिया जाता है, वह वहां पर भी संघर्ष करती है और खुद को बचा कर किसी तरह वह अपनी बात लोगों तक रखती है। यह कहानी एक महिला की ही कहानी नहीं है, यह कहानी कुछ महिलाओं की कहानी भी नहीं है, यह कहानी सैंकड़ों परिवारों की आत्मकथा है, कई देशों में रह रहे लोगों की कहानी है, जिनके साथ पता नहीं क्या-क्या हुआ है, परंतु जैसे-जैसे समय आगे चलता क्या यह बातें बाहर आने के बजाये, जो लोग प्रताड़ित थे, उनके भीतर ही दफन हो गईं । लोग अपनी बात नहीं रख सके, लोग अपनी बात बयाँ नहीं कर सके, अपना दुख अपने अंदर ही रख कर बैठे गए और न ही कोई उनकी सुनने वाला था। इस फिल्म के माध्यम से कुछ परिवारों को संबोधित किया गया और परिवारों के दर्द को हमारे सामने लाया गया। परंतु दुनिया भर में असंख्य ऐसे परिवार हैं, जिनकी वेदना इन परिवारों की वेदना से भी कहीं बढ़कर रही है।
ऐसी फिल्में रोज़-रोज़ नहीं बनती हैं और न ही किसी संख्या की मोहताज होती हैं। यह फ़िल्में यह बताती हैं कि किस प्रकार समाज को खुदको बदलना होगा, समाज को अपनी सोच को बदलना होगा, समाज को अपने आप को जागृत करना होगा। नारी को उसके जीवन में हर समय सुरक्षा की आवश्यकता है, अन्यथा उसका शोषण हो सकता है।

आमतौर पर बॉलीवुड में जो फिल्में बनती हैं वह निरर्थक होती हैं, और दर्शकों को फूहड़ और अश्लील मनोरंजन परोसती हैं, परन्तु यह फ़िल्म बहुत ‘हट के’ है। यह फ़िल्म समाज में जागृति लाने का काम करेगी। हमें पता भी नहीं चलेगा और यह उन लोगों तक पहुंच जाएगी, जिन लोगों को इसे देखना ही चाहिए। वो इसे देखेंगे और इससे लाभान्वित होंगे। इसके विरुद्ध कितना भी ‘प्रोटेस्ट’ किया जाए, यह अपने आप में एक सफल फ़िल्म है, क्योंकि हर एक फ़िल्म जो समाज को एक सकारात्मक संदेश देती है वो सफल होती है, क्योंकि सफलता का आंकलन केवल व्यवसायिक दृष्टि से नहीं किया जा सकता है, उसके आंकलन कई प्रकार से होते हैं।

जो भी लोग इस लेख को पढ़ रहे हैं, वह लोग इस फिल्म को देखें और अपने जानकारों तक इस फिल्म का संदेश पहुंचाएं। फिल्म में हिंसा है, क्योंकि हिंसा दिखाना आवश्यक था, वर्ना हिंसा की वास्तविक घटनाएं लोगों तक कैसे पहुंचाई जातीं ? किस प्रकार से साजिश के तहत लोगों को निशाना बनाया जाता है, वह इस फ़िल्म में बखूबी दिखाई गया है। आप को यह लेख जैसा भी लगे, आप भी अपने विचार इस पर लिखें। अगर हम आज भी नहीं बदले, तो यह कहानी हम में से कई और लोगों की कहानी भी हो सकती है, तो ज़रूर देखें ‘द केरल स्टोरी’।

यह लेख प्रांजल जोशी द्वारा 5 मई 2023 को ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म का फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखने के बाद लिखित है।
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धन्यवाद

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