आखिर कोई कोयले की खान में रहकर कोई कालिख से कब तक बच सकता है।

भारतीय फिल्म जगत भी एक ऐसी ही खान है जहां से सच का कोहिनूर कम ही निकलता है और सतह पर यानि हमारे समाज में, हमारे आपके घरों में, दिमागों में, भर जाता है, साल दर साल जमीन से निकलता झूठ की कालिख से सना भारतीय सेकुलरिज्म का कच्चा कोयला। सिनेमा से उपजे, मिथ्या और अवसाद से भरे इस कच्चे कोयले का बाद में फोड़ा लगाकर (इस्तेमाल लायक बनाकर), हमारे बीच बैठे मुनाफाखोर लोग कैसे अपने घरों के चूल्हे जला रहे हैं, इस पर चर्चा कभी और।

तो आखिर कोई कोयले की खान में रहकर कालिख से कब तक बच सकता है। फिल्म जगत में रहकर कोई सेकुलरिज्म यानि कि इस धरमनिर्पेक्षता के कोढ़ से कैसे बच सकता है। ठीक यही हुआ है हमारे चहेते, बाहुबली के निर्देशक एस एस राजमौली जी के साथ।
उनकी आने वाली फिल्म आर आर आर में उनपर हुए सेकुलरिज्म के कीटदंश का प्रभाव देखा गया।

हुआ ये की उन्होंने अपने इस आगामी बड़ी फिल्म , जो की एक सत्य पे आधारित ऐतिहासिक फिल्म है, के एक पात्र का फर्स्ट लुक यानी की प्रथम झलक लांच की। और थोड़े ही समय में, सोशल मीडिया, ट्विटर पर बवाल मच गया। Tweets, Retweets और Comments की बौछार और ट्विटर पर वामपंथ और दक्षिण पंथ की एक दुसरे पर पुष्प वर्षा शुरू हो गयी।

क्यों ????

बस यहीं तो राजमौली साहब जिम्मेदार हैं। अपने इस प्रथम झलक में जिस पात्र का उन्होंने जनता के लिए अनावरण किया वह कोई और नहीं बल्कि, हर सच्चे राष्ट्रभक्त के लिए प्रेरणा स्रोत, तेलंगाना के महान आदिवासी स्वंतंत्रता सेनानी वीर कोमुराम भीम गारू थे । माँ भारती के सपूत गोंड आदिवासी जनजाति के देवता, इस विलक्षण रणबांकुरे ने हैदराबाद के निजाम की रजाकार सेना को “जल जंगल और जमीन” पर अधिकार के लिए न केवल हनक के साथ ललकारा बल्कि, अत्याचारियों की व्यवस्था, कोर्ट कचहरी और कानून के धता बताते हुए, अद्भुत शौर्य युद्ध कौशल और पराक्रम दिखाते हुए धुल भी चटाई, अपना सर्वस्व लुटा दिया और महज ३९ वर्ष की आयु में अंतिम बलिदान दिया।

तो आखिर हमारे प्यारे राजमौली जी ने क्या गलत कर दिया इसमें ?

जी, ज्यादा कुछ नहीं, बस उन्होंने इस वीर आदिवासी गौरव को सेक्युलरिम के कुर्ते पायजामे में लपेट कर सर पर टोपी चढ़ा दी। वही जालीदार टोपी जो अपने राजनैतिक इस्तेमाल के लिए प्रख्यात है। वही टोपी जिसको हमारे माननीय प्रधानसेवक ने सप्रेम पहनने से मना कर दिया था ।

जनता का रोष इसी बात पर है की आखिर जो इतिहास में कभी हुआ ही नहीं उसे किसके तुष्टिकरण के लिए सच बताकर परोसना चाहते हैं राजमौली ? ट्विटर पर प्रख्यात , इतिहास के जानकार , @TrueIndology, की माने तो श्री कोमुराम भीम गारू मुस्लिम नहीं थे और नाहीं उन्होंने अपने संघर्ष के दौरान कभी छद्म वेश के रूप में मुस्लिम पोषक धारण की थी।
सवाल ये भी उठता है की क्या राजमौली जी को अब अपने काम पर , अपनी प्रतिभा पर , कला पर या जनता के विवेक पर भरोसा नहीं रह गया ?
वही जनता जिन्होंने उनकी पंचवर्षीय फिल्म बाहुबली को आसमान की ऊंचाइयों पर जा पहुंचाया ?
अब क्या वह भी एकतरफा संदर्भ परोसने के लिए कुख्यात बॉलीवुड की तर्ज़ पर भारतीय समाज को झूठ और सच के स्थान पर गांधीजी के तीन बंदर ही भेंट करेंगे ?
क्या सत्य के लिए मर मिटने वाले बाहुबली का निर्देशन करने वाला रीढ़ से इतना कमजोर है ?

अब तक इस पर राजमौली जी की और से कोई टिप्पणी या क्षमायाचना तो नहीं आयी है लेकिन जिस तरह से सोशल मीडिया में ये बात उछली है और जैसा आजकल सोशल मीडिया का दवाब है, कुछ भी कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।

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