कहानी है एक चिड़िया और एक कौवे की । खेतों में फसल पक रही थी । चिड़िया ने कौवे से कहा कि अपने लिए थोड़ा अनाज इकट्ठा कर लो । कौवे ने अलसाते हुए बोला :

तू चल मैं आता हूँ , चुपड़ी रोटी खाता हूँ । ठंडा पानी पीता हूँ हरी डाल पर बैठा हूँ ।

चिड़िया थोड़ा थोड़ा अनाज इकट्ठा करती रही । धीरे धीरे फसल कटने लगी । चिड़िया ने फिर याद दिलाया कौवे को कि थोड़ा अनाज इकट्ठा कर ले । इस पर कौवे ने बोला बारिश में अभी बहुत समय है और अभी तो फसल कटी है और अभी किसान के घर तक जाने में समय है :

तू चल मैं आता हूँ , चुपड़ी रोटी खाता हूँ । ठंडा पानी पीता हूँ हरी डाल पर बैठा हूँ ।

कौवा नहीं गया। धीरे धीरे फसल घरों में जाने लगी । चिड़िया अभी भी रास्ते में गिरते अन्न के दानों को उठाकर लाती रहती । कौवा अपनी धुन में पड़ा रहता ।

धीरे धीरे फसल घरों में बंद हो गयी । कौवा अभी भी लोगों के फैंके गए खाने को खाकर पड़ा रहता । चिड़िया अनाज पछोरती महिलाओं के आस पास बैठी रहती और जैसे कुछ मिलता लाकर घोंसले में रख देती ।

फिर एक दिन बारिश शुरू हो गयी । लोग घरों के अंदर बंद हो गए । कौवे को खाना मिलना बंद हो गया । चिड़िया भी अपने घोंसले में ही रहने लगी । अब वो बाहर ही नहीं आती । कौवा दिन भर डाल पर बैठा भीगता रहता । अब कहीं से उसे जूठन भी नहीं मिलती । बारिश और घनी होती गयी । बारिश और ठंड में ठिठुरता कौवा बहुत दिनों तक भूखा ही रहा और एक दिन भूखा ही मारा गया ।

यहाँ दो बातें समझनें की हैं , एक तो वक़्त रहते अपना काम पूरा करना चाहिए और दूसरा , दूसरों की दी गयी जूठन पर जीवन नहीं चलता । स्वावलंबी बनना ही पड़ता है !!!

उद्यम करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं सिर्फ़ सोचने से नहीं !! सोते शेर के मुँह में हिरन अपने आप नहीं आता , उसे शिकार करने जाना ही होता है !!

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