हम लोग जब छोटे थे तो अक्सर एक ही बात पर आपस में दोस्तों में फ़ुहाफुल्ली हो जाया करती थी | वो पौने दो रुपए में आने वाला पार्ले जी उसमे हमेशा ही odd नंबर्स में बिस्किट हुआ करते थे जो आपस में बाँटते समय अलग बच जाता था सारी मारी मारी उसी के लिए | यही हाल आजकल कुछ हमारे डेढ़ पौने दो सौ टीवी समाचार चैनलों का हो गया है |

अब आप अंदाज़ा लगाएं इस देश में अदालत फिर कैसे न व्यस्त हो मुकदमों की बाढ़ से हैरान ,जब उसे ये तय करना पड़ रहा हो कि ,

देखो रे , समाचार चैनल के नाम पर पूरे दिन का सर्कस चलाने वाले तुम लोग बहुत पहले ही आउट ऑफ़ द सिलेबस चले गए हो तो भाई बहन अपनी अपनी दुकान और जुबान दोनों की जिम्मेदारी आपकी खुदही की है |

आपस में मेरी टीआरपी तेरी टीआरपी से ज्यादा कैसे की रेस में अदालत भी रेफरी बने | बड्डे हाकिम ने सुना दिया फरमान ,” जैसे अर्नब भिया का मन होगा वैसे ही पूछेगा भारत | रिपब्लिक टीवी को ही रिपब्लिक राईट नहीं | अबे अहमक हो क्या ??

पीछे बेंच पर बैठी रिपब्लिक की पब्लिक से पूछा जाए तो वे तो कह रहे हैं कि असल में तो जनता जिस तरह से और जउन जउन एंगल से पूछना चाह रही है उससे तो जो अरनब कुर्सी से कूद के खड़ा हो कर और ऊँगली कर कर के पूछता है वही फिर भी ठीक है जी |

एक अलग आपत्ति इस बात पर जरूर जताई गई है कि सड़ सड़ , जे बात चलो मान लई कि , जे उँगरी कर कर के “पूछता है भारत ” कहेगा लेकिन हजूर , खाली पूछता है भारत , पूछता ही जाता है , मालिक हम लोक के बोलने का मौक़ा देता ही नहीं है | कई बार तो अपना मन से तीन चार डेडली प्वाइंट रख दिए होते हैं , घर पर आकर ट्वीट करने के लिए जब चैक करते हैं तो सब म्यूट रहता है हजूर | बताइये , तब वैसे ही थोड़ी सब इतना रो रहा है हजूर जी |

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