हिन्दुओ की मानसिक चेतना

भारत के सविधान को सर्वसम्मति से 26 नवंबर १९४९ को पूर्ण कर लिया गया था जिसमे जवाहर लाल नेहरू सरदार पटेल डॉ आंबेडकर डॉ राजेंद्र प्रसाद पट्टाभिसीतारामय्या जैसे तत्कालीन गाँधीवादी और सर्वमान्य नेताओ ने सभी महत्वपूर्ण विषयो को सम्मिलित किया था। सभी धर्मो के आदर की भारत की महान सभ्यता को लिख डाल ने की कोई जरुरत महसूस नहीं की गयी ऐसा नहीं था की तब भारत में मुस्लिम नहीं थे मुस्लिम थे और मौलाना अबुल कलम आजाद और रफ़ी अहमद किदवई जैसे बड़े नेता भी थे तब किसी के दिमाग में साम्प्रदायिकता नहीं थी और एक सर्वश्रेष्ठ सविधान कहा गया। सविधान में यूनिफार्म सिविल कोड की बात की गयी थी पर गांधीवाद का चोला उतरने लगा तो नेहरू 1956 में हिन्दू कोड बिल ले आय।

हद तो तब हो गयी जब इस हिन्दू कोड बिल को हिन्दुओ ने स्वीकार कर लिया पर नेहरू की मुस्लिम के तीन तलाक हलाला जैसी बहुविवाह जैसी बेहद घिनौनी समाज के आधे हिस्से को प्रताड़ित करने वाली कुरीतियों पर चोट करने की हिम्मत नहीं हुई जिससे भारत की जनविवधता पर बड़ा प्रभाव पड़ा मुस्लिम जनसंख्या तेजी से बढ़ी और वे अच्छा राजनितिक प्रभाव रखने लगे। जिससे शुरुआत हुई तुष्टिकरण की राजनीती जिसकी सबसे बड़ी झंडाबरदार तानाशाह इंदिरा गाँधी निकली । और आपातकाल के काले अंधेरे में आंबेडकर राजेंद्र प्रसाद सरदार पटेल और खुद के पिता द्वारा स्वीकृत प्रस्तावना में ही सेक्युलर और समाजवादी शब्द घुसेड़ दिए गए। पश्चिम से आयातित ये शब्द उन वामपंथियों की हरकत थी जो नेहरू के बनाये जे एन यू छोड़कर लंदन में “उन्ही से पढ़ के आये जिनके खिलाफ लड़ाई लड़ने” को लेकर इनकी औलादे आज भाजपाइयों को कोसने में देर नहीं लगाती ।

पादरियों के आतंक से निकली सेक्युलर की “चर्च और राज्य को अलग” करने की परिभाषा को जबरदस्ती भारत जैसी विशाल, सहिष्णु सभ्यता के खांचे में फिट कर दिया गया “नेहरू अम्बेडकर राजेंद्र प्रसाद पटेल और न जाने कितने तत्कालीन नेताओ की बुद्धि और विवेक” को धता बता ये सब हुआ अंग्रेजो की सबसे बड़ी “दुश्मन” और नेहरू की “प्रियदर्शिनी” की ही शह पर, तो जो अपने बाप की विवेक पर सवाल उठादे वो अपने बाप बराबर बेगुनाहो को जेल में ठूंस दे कोई आश्चर्य नहीं।

राजा के लिए कठिन कर्तव्यों के पालन की राम राज्य से बड़ी थ्योरी और क्या होगी जिसे गाँधी ने हमेशा अपने करीब रखा कई देश इसे अपना आदर्श मानते हैं परन्तु दुनिया में इस “जनता के लिए अपने निजी सम्बन्धो की बलि चढ़ा देने वाली” इस महान सभ्यता को निर्यात करने के बजाय ये वामपंथी जबरदस्ती भारत की सहिष्णुता विविधता पर सेक्युलर की परत चढाने में कामयाब हो गये।

मुस्लिम तुस्टीकरण के नंगे नाच होते रहे और सत्ता की मलाई एक परिवार और उसके गुलाम लेते रहे 1944 में बर्बाद जापान अंतरिक्ष में गोते लगा रहा थे ये सेक्युलर हमें “कंप्यूटर” दे रहे थे , जिसका गुणगान करते चेले आज तक नहीं थकते , जब सुनामी से उजड़ने वाला वही जापान टेक्नोलॉजी जायंट बन रहा था तब ये बांधो का सर्वे करवा रहे थे , जब 1960 शांत हुआ चीन नयी दवाओँ पर पेटेंट ले रहा था ये aiims के लिए कुर्सियां ढून्ढ रहे थे, इतने महान कार्यो को करने में समय कम लगता था तो संसद में सायरा बनो जैसी महिलाओ के पक्ष में आये सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को लम्बी दाढ़ी देखते ही पलट देते थे और हिन्दुओ के सबसे बड़े आराध्य श्रीराम को विवादित कर आनंद पाते थे काशी मथुरा पर मुस्लिमो के कब्जो से हिन्दुओ की सहिष्णुता को मानसिक हार में बदलने की कुचेष्टा थी। तब आया एक नेता जिसने हिन्दुओ के इस तिरस्कार को मानसिक हार में नहीं बदलने दिया जिसने लोगो को बताया की बाबर भी था और उसकी औलादे आज सत्ता में भी हैं।

यही वो नेता था जिसने सही मायने में हिन्दुओ की मानसिक चेतना को जागृत किया रथ यात्रा से लेकर चुनावो में राम का उद्घोष होने लगा और तुष्टिकरण की नीव हिलने लगी यही राम का उद्घोष बीजेपी को हिंदी पट्टी के बड़े राज्यों में सत्ता में ले आया और राज्यों की विकास दर राष्ट्रीय दर से अधिक भी करके दिखाई जिससे राम के साथ साथ बीजेपी के काम को भी जनता ने स्वीकार कर लिया

छद्म सेक्युलरवाद(pseudo secularism)

1992 में मस्जिद विध्वंश ने हिन्दुओ को भारत पर अपने नैसर्गिक अधिकार की कमजोर होती भावना ने फिरसे हिलोरे मारना शुरू किया इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ अडवाणी को दिया जा सकता है इसके परिणाम में कुछ दंगे जरूर हुए पर इससे कही बड़े दंगे देश देख चूका था और एक बड़े वर्ग खासकर अगड़ी जातिओ के लिए कांग्रेस और छद्म सेक्युलर अछूत होते गए। इस तरह से अडवाणी ने भारत को छद्म सेक्युलरवाद से मुक्ति दिलाने में पहली सफलता दिलाई। पर ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा फायदा कांग्रेस ने उठाया मुस्लिमो को डरा कर और दूसरी और आरक्षण का सपना दिखाकर और मुस्लिम वाजपेई के पोखरण परिक्षण गाव गावं सड़क बचो के लिए मुफ्त शिक्षा के ऊपर अपने धार्मिक पहचान और एकता के प्रदर्शन को तवज्जो दे गए देश की 50 फीसद सड़के वाजपेई के कार्यकाल में बनी बच्चो के लिए अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा जैसी बेहद महत्वपूर्ण योजना सर्व शिक्षा अभियान आजादी के 50 साल बाद वाजपेई और अडवाणी की अगुवाई वाली सरकार के इंतज़ार में थी और आज़ादी दिलाने वाले तथाकथित लोग 50 साल भारत को सेक्युलर बनाते बनाते पचासो दंगे करवा बैठे सिखो के कत्लेआम से लेकर भागलपुर तक अयोध्या से लेकर मुंबई तक इनके खून से रंगे हाथ जब साम्प्रदायिकता पर लेख लिखते हैं तो वही खून इनकी लेखनी पर चढ़ लिखावट में नजर आ जाता है .

अडवाणी की वो मेहनत आज फलीभूत होती दिखाई दे रही है अडवाणी को इसका संतोष अवश्य होगा की उनके विचार को मान्यता मिली और बीजेपी ने उसे छोड़ा नहीं उसी विचार पर आज राम को काल्पनिक कह डालने वाले उन्ही राम का गुणगान करने को मजबूर हो रहे है यह अडवाणी डॉक्ट्रिन की सफलता ही है

एक और कारसेवको पर गोली के आदेश देकर लठैत बने मुलायम को खुद का बेटा लट्ठ दिखा चचा को बाहर धकिया दिया वही सेक्युलर वाद के बिहारी ब्रांड अडवाणी को गिरफ्तार कर जेल भेजने वाले ललुआ आज राममंदिर का भूमि पूजन जेल से देखेंगे यदि दूरदर्शन जेल में चलता हो

गोस्वामी तुलसीदास ने इसी सन्दर्भ में लिखा था

“तासु बिरोध न कीजिअ नाथा। काल करम जिव जाकें हाथा”

by- Mayank Upadhyay, Mtech water resource engineering punjab engineering college chandigarh.

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