अभी कुछ वर्षों पूर्व भी एक समय ऐसे और इससे भी बुरे वायु पदूषण आपातकाल जैसे हालात हो  गए थे राजधानी दिल्ली में जब लोगों  घर दफ्तर तक में मास्क लगा कर सांस लेने पर विवश होना पढ़ा था और ये कोरोना महामारी से  पहले की बात थी।  हैरानी बिलकुल भी नहीं होती यदि आज दिल्ली के कूड़ों के पहाड़ , प्रदूषित यमुना से बाढ़ग्रस्त यमुना और हर साल शीत ऋतु में बायु प्रदूषण आपातकाल , इनमें से किसी भी , किसी भी एक समस्या के लिए भी कुछ प्रभावी , दूरदर्शी नहीं सोचा किया गया।

वायु प्रदूषण का बढ़ता बिगड़ता स्तर और संतुलन अब भी सिर्फ प्रकृति के भरोसे ही है जबकि इसके लिए दिख रहे , समझे जा रहे कुछ स्पष्ट कारणों में से एक पराली जलाने , और इसे आदतन , इरादतन जलाने वालों पर भी कोई रोक टोक नहीं डाली जा पा रही है। कुछ यही सारो सार था अभी माननीय न्यायपालिका के पास लगे एक संदर्भित वाद में।

अदालत ने न्यायालय में उपस्थित पंजाबा के प्रतिनिधि अधिकारियों द्वारा रखे गए स्पष्टीकरण को पर्याप्त न मानते हुए अगली पेशी पर ये बताने को कहा है कि पिछले दिनों पराली जलाते हुए पकडे जाने वालों पर क्या और कितनी , कैसी कार्रवाई की गई , जुर्माना सिर्फ लगा भर देकर खानापूर्ति की गई या लगाया  गया जुरमाना वसूला भी गया है।

ज्ञात हो कि कुछ वर्ष  पूर्व दिल्ली और पंजाब में दो अलग अलग राजनैतिक दलों की सरकार होने के कारण एक दूसरे पर  दोषारोपण का खेल चल जाता था किन्तु अब दोनों राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकार होने के कारण पराली जलाने की घटनाओं में कमी आने का अनुमान लगाया गया था।  किन्तु हुआ इसका ठीक उलट।  इसका दुष्परिणाम भी तुरंत ही सामने आ गया और धुंए तथा गैस की काली चादर जो दिसंबर जनवरी तक शिकंजा फैलाती थी उसने सर्दियों की आहट से कहीं पहले ही स्थति नारकीय कर दी।

अभी हाल ही में पस्चिमी विक्षोभ से प्रभावित वर्षा ने कुछ समय के लिए प्रदूषण के इस आपातकाल से राहत जरूर दी लेकिन जल्दी ही स्थिति फिर जानलेवा हो गई है।  यहाँ यह उल्लेख करना  कि वायु गुणवत्ता के खराब होते स्तर से विवश होकर लाखों लोगों को घरों ,दफ्तरों , होटलों तक में वायुशोधक यंत्रों को लगाना पड़ा जाहिर है कि ये सभी उपाय भी स्थाई कर सौ प्रतिशत कारगर उपाय नहीं है।

जहां तक दिल्ली राज्य सरकार की बात है तो जब स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा मंत्री तक आर्थिक घपले घोटाले के आरोपों में गिरफ्तार हों , महीनों एक जमानत  भी नहीं पा सके हैं ऐसे में वाय गुणवत्ता बेहतर करना तो दूर बदतर न हो इसके लिए जैसे गैर प्रायोगिक  व निष्प्रभावी योजनाएं , रेड लाइट ऑन , गाडी ऑफ़ तथा ऑड ईवन सहित तमाम योजनाएं सिर्फ विज्ञापनबाजी बन कर रह गई।

प्रदूषण के विरूद्ध पारस्थितिकी तैयार करने में सबसे प्रभावी होते हैं वन क्षेत्र।  दिल्ली सरकार व सम्बंधित संशताओं ने इस दिशा में भी कोई प्रभावी कार्य नहीं किया।  प्रतिवर्ष पौधे लगाने का दिवस मना  तक सब वहीँ का वहीँ।  राज्य और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी , भूमिका के विमर्श से इतर समझने और आज अभी समझने वाली बात है कि फिर कैसे भारत अपनी राजधानी में विश्व के सभी देशों को बुला कर कह सकेगा कि आओ मिलकर दुनिया को हरित और स्वच्छ करते हैं।

आज राजधानी दिल्ली में ढाई करोड़ की विशाल जनसंख्या के लिए हवा पाई स्वास्थ्य जैसे बुनियादी जरूरतों को सुनिश्चित करना जितनी बड़ी चुनौती है यदि समय रहते इस पर गम्भीरता से काम नहीं शुरू किया गया तो सबसे बड़े अफ़सोस की बात ये होगी कि कभी अपने खेतों से हरा सोना उगाने वाले पंजाब प्रांत के कृषक समाज पर पराली जला कर शहरों की हवा में जहर घोलने का इल्ज़ाम भी हमेशा के लिए लग जाएगा।

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