इस देश में हमने कुछ नामों के साथ जो अलंकरण लगा रखे हैं वो सर्वथा ही न सिर्फ विपरीत हैं बल्कि दूर दूर तक , कोसों तक उन उपनामों और उपमानों के साथ उनका कोई भी लेना देना नहीं है।

मुझे और मुझ जैसे करोड़ों भारतीयों के विश्वास और देश के प्रति निष्ठा को उस वक्त बहुत बड़ी राहत मिली थी जब लखनऊ की एक स्कूली विद्यार्थी बालिका की सूचना अधिकार प्रार्थना पत्र के उत्तर में सरकार ने ये स्पष्ट किया था कि , मोहन दास करम चंद गाँधी जी को कभी किसी सरकारी /सार्वजनिक अभिलेख ,कागजात में “राष्ट्रपिता” का दर्ज़ा नहीं दिया गया था।

मेरे जैसे ही करोड़ों भारतीयों को इस बात पर भी सख्त आपत्ति है किसी को देश का बापू बना दिया गया किसी को देश का चाचा। चलिए उन पुरानी बातों को हम ये भी मान लें की शायद उस समय का दस्तूर और सचेतता अलग होने के कारण ऐसा हो गया होगा।

मगर आज आधुनिक भारत में , मुलायम सिंह यादव जैसे मुगल प्रेमी , सनातन विरोधी को उनके टोंटी ले जाने वाली पार्टी द्वारा नेताजी कहा पुकारा जाना कतई भी स्वीकार नहीं है। इस देश में एक ही नेताजी थे हैं और रहेंगे वो हैं -नेताजी सुभाष चंद्र बोस।

पिछले कुछ समय से देखने सुनने पढ़ने में आता है कि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नाम के साथ दीदी जोड़ कर पूरे राजनीतिक और सामाजिक फलक में उन्हें “ममता दीदी ” कहने की एक परिपाटी सी बन गई है।

देश के प्रधानमन्त्री नरेंद्र भाई मोदी जी तक को , भाई अमित शाह जी को , भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जे पी नड्डा जी सहित तमाम विरोधियों और साथियों तक को अपमानित भाषा , लहज़े और व्यवहार से सम्बोधित करने वाली गुस्सैल स्वभाव की स्वामिनी , मुझ जैसे करोड़ों भारतीयों को किसी भी दृष्टिकोण से न ही ममतामयी दिखती हैं और न ही दीदी की छवि उनमें दिखती है।

राजनैतिक ,वैचारिक , सामाजिक मतांतर होना , नीतियों और विचारों में विभेद होना भी माना जा सकता है , और ये स्वभाविक भी है , किन्तु कभी -मैं प्रधानमंत्री को लोहे के लड्डू भेजूँगी ताकि उसे खाकर उनके दाँत टूट जाएं तो कभी केंद्र के कानून से असहमति में सार्वजनिक रूप से – काका छीछी जैसे अनर्गल नारों का प्रलाप ये कुछ उदाहरण हैं जो उन्होंने समय समय पर आम लोगों के सामने रखे हैं।

ममता मयी इन तथाकथित दीदी के प्रदेश में रोज़ हज़ारों निर्दोष लोगों की ह्त्या कर दी जाती है , देश की सबसे बड़े राजनैतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं उनके वरिष्ठ साथियों पर कातिलाना हमला होता है , कोरोना महामारी के कारण सैकड़ों जानें जाती हैं , केंद्र से नाराज़गी के कारण लाखों किसानों को उनके अधिकार के रूप में मिलने वाली सहायता राशि से वंचित रखा जाता है -कहाँ दिखती हैं कोई दीदी और कहाँ दिखती है कोई ममतामयी ,स्नेहमयी मूर्ति ???

अगले आलेख में पढ़िए – अब ना चोलबे काका छीछी -तुमि बाड़ी जाबे मोमता दीदी

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