आज की हालत में ये कहना गलत नहीं होगा कि हिंदु कहीं भी सुरक्षित नहीं है. चाहे लंदन हो या भारत का कोई राज्य. हर जगह हिंदुओं पर जुल्म किये जा रहे हैं . अभी लीसेस्टर में रहने वाले हिंदु किस कदर हिंसा का शिकार हो रहे हैं वो किसी से छिपी नहीं है सोशल मीडिया में सामने आ रही तस्वीरें बेहद डराने वाली हैं.

देखा जाए तो भारत के कुछ राज्यों में भी ऐसे ही हालात है. जहां हिंदु जुल्म बर्दाश्त करने को मजबूर हैं. छपरा जिले में 15 साल के बच्चे आदित्य तिवारी की हत्या इसका बेहद ही खौफनाक उदाहरण है. दरअसल छपरा में 21 सितम्बर को आदित्य तिवारी नाम के एक नाबालिग लड़के की चाकू मार कर हत्या कर दी गई थी। FIR के मुताबिक 7 आरोपियों में से 6 मुस्लिम समुदाय से हैं। जिनमें से 4 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इन आरोपियों की हिम्मत देखिए आदित्य को मारने से पहले एक आरोपी ने आधे घंटे पहले सोशल मीडिया और वाट्सएप स्टेटस में आज “खेल होई, काल बेल होई, फिर उहे खेल होई गाने की टोन पर ‘जलालपुर में खेला होई’ का पोस्ट डाला”. मतलब ना तो कानून का डर ना ही भविष्य की चिंता . बैखौफ होकर किसी शातिर अपराधियों की तरह इनसब ने मिलकर एक बच्चे को मार डाला.

उधर आदित्य के परिजनों ने बिहार पुलिस पर बड़ा आरोप लगाया है। आदित्य के भाई ने दावा किया है कि जांच कर रही पुलिस आरोपियों के बजाए उनके रिश्तेदारों को प्रताड़ित कर रही है उन्हें कस्टडी में लेने में लगी है। लेकिन सबसे शर्मनाक बात ये है कि मृतक के घर पहुंचे JDU नेता गौतम सिंह ने निर्दोष परिवार वालों पर पुलिस की तरफ से हो रही कार्रवाई का समर्थन किया है।

मतलब बिहार में बनी नई-नवेली सरकार किस तरह से तुष्टीकरण का समर्थन कर रही है ये बताने की जरुरत नहीं है. लेकिन आदित्य की हत्या के बीच झारखंड की अंकिता और उत्तराखंड की अंकिता भंडारी पर भी चर्चा लाजिमी है. क्योंकि इन दोनों की हत्या भी उतनी ही दुखद है जितनी आदित्य की लेकिन, एक टीस जरुर है कि जिस गुस्से और खीज के साथ हम सोशल मीडिया से लेकर न्याय के लिए सड़कों पर उतरे थे क्या वही गुस्सा हम में आदित्य को इंसाफ दिलाने के लिए है? जवाब है नहीं. आखिर क्यों आदित्य को इंसाफ दिलाने के लिए वैसी हलचल हिंदु समुदाय और हिंदुवादी संगठनों में नहीं दिख रही है?

लेकिन बात यहां एक बच्चे की है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि शायद वो किसी लड़की के साथ छेड़छाड़ का विरोध कर रहा था और इसी वजह से उसकी हत्या कर दी गयी. जिसकी जान लोगों के अनुसार लड़कियों को बचाने में गयी। लेकिन आदित्य की हत्या के 4 दिनों बाद भी इस हत्या के सम्बन्ध में कोई हलचल नहीं है। आखिर ये हलचल क्यों नहीं है? क्या इसलिए क्योंकि अंकिता भंडारी की हत्या की वजह से बीजेपी को लेकर हंगामा करने से कुछ लोगों को फायदा होता और अंकिता लड़की थी तो लोग उसके दर्द से खुद को जोड़ लेते! लेकिन आदित्य का क्या? क्या आदित्य की हत्या और कारणों पर बात नहीं होनी चाहिए? क्या उसके लिए इंसाफ की आवाज नहीं उठनी चाहिए?

दरअसल अंकिता हो या आदित्य, दोनों ही ऐसे वर्ग से आते हैं, जो लगातार जीनोसाइड का शिकार हो रहा है और इस समय तो हर जगह हिंदु हिंसा का शिकार हो रहा है. फिर ऐसे में अंकिता की हत्या पर शोर मचाना और आदित्य की हत्या पर चुप्पी क्यों? क्योंकि इससे वामपंथी और फेमिनिस्ट एजेंडा टूटता है?

दरअसल वामपंथियों और फेमिनिस्टों का एक ही एजेंडा है कि किसी तरह से हिंदुओं को ही बदनाम करना, हिंदुओं को ही हर तरह से अपराधी बताना और यह जो एजेंडा है, वहीं उन्हें झारखंड की अंकिता, जिसे शाहरुख ने जलाकर मार डाला था, और उत्तराखंड की अंकिता जिसे पुलकित आर्य ने मारा है, उसके बीच अंतर करने के लिए बाध्य करता है.

झारखंड की अंकिता हो या फिर उत्तराखंड की अंकिता, दोनों ही एक मजहबी हिंसा की तो एक हवस की हिंसा की शिकार हुई! झारखंड की अंकिता, बिहार के आदित्य की हत्या के विमर्श पर चुप्पी एक बहुत बड़े षड्यंत्र का संकेत है और दुर्भाग्य यही है कि अपराधी अगर शाहरुख़, साहिल और अरशद है तो इस पर बहुत ही शातिर तरीके से चुप्पी साध ली जाती है और अगर मरने वाला हिंदु लड़का आदित्य तिवारी है तो यह चुप्पी और भी गहरी हो जाती है .

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