बंगाल में बिगड़ता जनसांख्यिकीय संतुलन अब खतरे के निशान से ऊपर दिखना शुरू हो गया है। हिंदुओं की घटती और मुस्लिमों की तेजी से बढ़ती आबादी एक बड़ा खतरा है। विभाजन के समय पूर्वी बंगाल में हिंदुओं की आबादी 30 प्रतिशत थी, लेकिन यह घटकर अब महज 8 प्रतिशत हो गई है। जबकि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है। इतना ही नहीं कई जिलों में तो यह आबादी 63 प्रतिशत तक है।

मुस्लिम संगठित होकर रहते हैं और 27 फीसदी आबादी होते ही इस्लामिक शरिया कानून की मांग करते हुए अलग देश बनाने तक की मांग करने लगते हैं। ममता बनर्जी की वोट बैंक की राजनीति के कारण बंगाल के कई इलाके मुस्लिम बहुल हो चुके हैं और हिंदुओं का इन इलाकों में जीना भी दूभर हो गया है। राज्य में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या एक करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है।

अवैध घुसपैठ ने राज्य की जनसंख्या का समीकरण बदल दिया है। उन्हें सियासत के चक्कर में देश में वोटर कार्ड, राशन कार्ड जैसी सुविधाएं मुहैया करवा दी जाती हैं और इसी आधार पर वे देश की आबादी से जुड़ जाते हैं। बांग्लादेश के रास्ते पहले इन्हें पश्चिम बंगाल में प्रवेश दिलाया जाता है। फिर उनका राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड बनवा जम्मू से केरल तक पहुंचा दिया जाता है।

जाहिर है पश्चिम बंगाल में आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में बंगाल में बिगड़ता हुआ जनसांख्यकीय संतुलन एक बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। अगर समय रहते देश इस खतरे को लेकर नहीं चेता तो नतीजे ख़तरनाक हो सकते हैं।

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