कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की कमर तोड़ देने वाले वीर पराक्रमी कैप्टन विक्रम बत्रा की आज पुण्यतिथि है। कारगिल की ऊंची चोटी पर ‘यह दिल मांगे मोर’ जैसी कैची लाइन कह देने वाले विक्रम बत्रा की यादें पूरा देश सहेज कर रखना चाहता है। भारत मां के सच्चे वीर सपूत ने अदम्य साहस शौर्य और वीरता का प्रदर्शन कर दुश्मन देश के दांत खट्टे किए थे, उनकी वीरता के किस्से तो देश का बच्चा-बच्चा जानता है आज हम आपको उनकी निजी जिंदगी का एक किस्सा बताते हैं…

डिंपल नाम था उनका..! २४ साल के कैप्टन विक्रम बत्रा करगिल युद्ध से वापस आने के बाद उनसे शादी करने वाले थे..  लेकिन जब वह करगिल से वापस आए तो तिरंगे में लिपटकर..
  ‘यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई’……
 डिंपल ने आजीवन शादी न करने का निर्णय लेते हुए पूरी जिंदगी कैप्टन विक्रम बत्रा की याद में बिताने का फैसला लेकर अपनी प्रेम कहानी को अमर कर दिया.. पचानवें में चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी में विक्रम और डिंपल की पहली मुलाकात हुई थी.. चार सालों के उस खूबसूरत रिश्ते में दोनों ने एक दूसरे के साथ काफी कम समय बिताया, उस रिश्ते के एहसास को शब्दों में बयां करने की कोशिश में आज भी डिंपल की आंखें भर आती हैं..  एक न्यूज वेबसाइट को इंटरव्यू देते हुए डिंपल ने बताया था कि जब एक बार उन्होंने विक्रम से शादी के लिए कहा तो विक्रम ने चुपचाप ब्लेड से अपना अंगूठा काटकर उनकी मांग भर दी थी.. 


 तेरह जम्मू ऐंड कश्मीर राइफल्स में  दिसम्बर सतानवें को लेफ्टिनेंट के पोस्ट पर विक्रम की जॉइनिंग हुई..  जून ऩिनान्वें को उनकी टुकड़ी को करगिल युद्ध में भेजा गया.. हम्प व राकी नाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम को कैप्टन बना दिया गया.. इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण पाँच हजार एक सौ चालीस चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया..  बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ बीस जून को सुबह तीन बजकर तीस मिनट पर इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया..!!
विक्रम बत्रा ने इस चोटी के शिखर पर खड़े होकर रेडियो के माध्यम से एक कोल्डड्रिंक कंपनी की कैचलाइन ‘यह दिल मांगे मोर’ को उद्घोष के रूप में कहा तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में उनका नाम छा गया.. अब हर तरफ बस ‘यह दिल मांगे मोर’ ही सुनाई देता था..  इसके बाद सेना ने चोटी चार आठ सात पांच को भी कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर दिया..  इसकी बागडोर भी कैप्टन विक्रम को ही सौंपी गई.. उन्होंने जान की परवाह न करते हुए कैप्टन अनुज नैय्यर के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा..  मिशन लगभग सफलता हासिल करने की कगार पर था लेकिन तभी उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक विस्फोट हुआ, नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए.. कैप्टन बत्रा नवीन को बचाने के लिए पीछे घसीटने लगे, तभी उनकी छाती में गोली लगी और 7 जुलाई 1999 को भारत का वह शेर बलिदान हो गया….!!


देश और देशवासियों के प्रति उनका प्यार किस कदर था, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि 18 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी आंखें दान कर दी थीं..  विक्रम को ग्रैजुएशन के बाद हॉन्ग कॉन्ग में भारी वेतन पर मर्चेन्ट नेवी में भी नौकरी मिल रही थी, लेकिन सेना में जाने के जज्बे वाले विक्रम ने इस नौकरी को ठुकरा दिया..  कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत सन् 1999 में सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया… दुश्मन मुल्क भी जज्बे का ऐसा कायल कि उनको नाम दिया ‘शेऱशाह’।


आज विक्रम हमारे बीच नहीं है…आज उनकी पुण्यतिथि है.. डिंपल आज भी इंतजार में है..काश वो लौट आये..  कुछ प्रेम कहानियाँ वाकई अदभुत होती है.. कैप्टन विक्रम जैसे बेटे और डिंपल जैसी बेटियों से ही ये भारत देश दीर्घायु है…!!


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