एक तरफ जहां देश में कोरोना महामारी का संकट छाया हुआ है वहीं दूसरी तरफ खुद को किसानों का हिमायती बताने वाले लोग उन्हें मौत के मुंह में धकेलने का काम कर रहे हैं. जिस तरह से राकेश टिकैट ने कोरोना प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए तमाम नियमों की अनदेखी करते हुए हर जगह भीड़ इकट्ठा कर सरकार के खिलाफ किसानों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया , वाकई ऐसे समय में ये देश के साथ गद्दारी से कम नहीं है. हाल के दिनों में जिस तरह पंजाब-हरियाणा और यूपी के गांवों में कोरोना के मामले बढ़े है उसे लेकर काफी हद तक ये माना जा रहा है कि किसान आंदोलन इसके लिए जिम्मेवार है.

दरअसल राकेश टिकैट के लिए किसान तो सिर्फ बहाना है किसानों के बहाने वो अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.  मोदी सरकार के तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। इस आंदोलन को 6 महीने से भी ज्यादा समय हो चुका है . वहीं एक बार फिर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने 26 मई को ‘काला दिवस’ मनाने का ऐलान किया है। 26 मई को नरेंद्र मोदी सरकार के 7 साल पूरे होने जा रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन ने इस दिन को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया है। टिकैत ने ट्वीट कर लिखा “26 मई को आंदोलन के 6 माह पूरे होने पर देश भर के किसान मनाएंगे काला दिवस।”

वहीं इस आंदोलन को हवा देने में आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं रही है. आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्डा ने कहा है कि उनकी पार्टी (AAP) भी किसानों के इस  प्रदर्शन का समर्थन करेगी। 

जाहिर है इस समय कोरोना महामारी को देखते हुए जहां मोदी सरकार हर वो कोशिश कर रही है जिसके जरिये देश को इस संकट से निकाला जा सके , कई राज्यों में लॉकडाउन बढ़ाया जा रहा है वहीं टिकैट जैसे लोग आंदोलन के बहाने सड़कों पर भीड़ इकट्ठा कर सरकार के लिए नई परेशानी खड़ा कर रहे हैं.

कुछ दिनों पहले किसानों के धरना स्थल पर दो किसानों की कोरोना से मौत होने के बाद जहां भाकियू ने यहां तक कह दिया कि जब किसान ही नहीं रहेगा, तो आंदोलन कौन करेगा? लेकिन, इसके बावजूद राकेश टिकैत सरीखे किसान नेता इसे ना टालने की जिद पकड़े हुए हैं. बता दें आपको राकेश टिकैत ने पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों का भी दौरा किया था. अगर ये कहा जाए कि किसान संगठनों की ये ‘पंचायत’ कोरोना की ‘सुपर स्प्रेडर’ बन गई है, तो गलत नहीं होगा. वैसे, इन सभी बड़े किसान नेताओं की वैक्सीन लगवाते हुए तस्वीरें लोगों के सामने थी. लेकिन, किसानों की जान शायद इनके लिए बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती है. अपनी सियासी जमीन को पक्का करने के लिए ये किसान नेता किसानों को भड़काने में जुटे हुए हैं. ये नेता शायद असंवेदनशील हो चुके हैं, ऐसा नहीं है कि किसान आंदोलन को टाला नहीं जा सकता है. लेकिन आंदोलन की आड़ में अपनी सियासी रोटियां सेंकने वालों ने इसे हवा दे रखी है.

इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या किसान आंदोलन को इस महामारी तक के लिए टाला नहीं जा सकता है. क्या क्या इन किसान संगठनों की किसानों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है?

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