कहते हैं कि डायन भी एक घर तो बक्श ही देती है और नियम ये कि किसी आपदा विपदा के समय तो शत्रु भी अपनी शत्रुता को थोड़ी देर के लिए दरकिनार करके इंसानियत का धर्म निभाता है। लेकिन बात जब कलियुग की हो तो फिर कहना ही क्या ??
आज जब महामारी के कारण सबको ,जो जहां है वहां चुपचाप खुद को और दूसरों को को सुरक्षित रहने को कहा बताया जा रहा है तो -थोड़े थोड़े दिनों में अलग अलग तरह के इवेंट आयोजन से मीडिया का ध्यान खींचने में माहिर -आन्दोलनजीवियों ने एक बार फिर से अपने फूफा केजरीवाल जी की दिल्ली को नर्क बनाने के लिए दिल्ली कूच का नया रंगारंग कार्यक्रम बनाया है।
यूँ भी पिछले एक साल से राजधानी की सीमा से लेकर लालकिले की छाती तक पर अपने ट्रैक्टर से स्टंट दिखाने वालों को भला क्या सरोकार किसी कोरोना से और उससे मरने वालों से , पिज़्ज़ा से लेकर फुट मसाज और एसी से लेकर पीआर तक सब कुछ मैनेज करने के लिए कैनेडा तक से लोग बाग़ हल चला रहे हैं।
और उस पैसे के दम पर देखिये कि सीमा पर जो टैंट तम्बू का सर्कस खड़ा किया गया है उसकी वजह से , पड़ोस के राज्य से ऑक्सीजन तक लाने में घंटों लंबा इतंज़ार और मशक्कत के बाद किसी तरह से उन्हें अस्पतालों तक पहुँचाया जा रहा है।
अदालत , पुलिस और प्रशासन को पहले ही बता और जता चुकी है , ये भी कह चुकी है कि सरकार किसी के बाप की नहीं है और इसका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ लोगों के आवागमन के लिए किया जाना न्यायोचित है। मगर जो पुलिस और प्रशासन , लालिकले काण्ड वाले दिन धैर्य और पूरी सहनशीलता से खुद पर चोट खाकर भी उपद्रवियों को इसलिए नहीं ठीक से निपटाया क्यूंकि वे सब किसान आंदोलन के नाम पर एकत्र हुए थे।
लेकिन ठकैत , जैसे धूर्त और मंजे हुए घुन्ने लोग अब जब इस पूरे प्रकरण को अपने लाला जी की दूकान बना कर पूरे देश और हज़ारों मासूम निर्दोष लोगों की जान के साथ भी खिलवाड़ करने की हिमाकत करने की कोशिश कर रहे हैं तो फिर निश्चित रूप से सरकार , पुलिस , प्रशासन का ये दायित्व हो जाता है कि कुछ भी देर और अंधेर होने से पहले ये जरूर तय कर ले कि ,कम से कम लोगों की जान की कीमत पर कुछ भी , किसी को भी , कैसा भी खिलवाड़ करने का मौक़ा नहीं दिया जाएगा।
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