भगवान श्री कृष्ण विराजमान के सखा पहुंचे कोर्ट

रामजन्मभूमि का निर्णय बनेगा कृष्णजन्मभूमि की मुक्ति का आधार

मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन 1669 में इसे तुड़वा दिया

राम लला विराजमान के बाद अब भगवान श्रीकृष्ण विराजमान ने भी मथुरा की अदालत में एक सिविल मुकदमा दायर किया है. इसमें 13.37 एकड़ की कृष्ण जन्मभूमि भूमि का स्वामित्व मांगा है और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है.

इसमें 13.37 एकड़ की कृष्ण जन्मभूमि का स्वामित्व मांगा है और शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की गई है. ये विवाद भगवान श्रीकृष्ण विराजमान, कटरा केशव देव खेवट, मौजा मथुरा बाजार शहर’ के रूप में जो अगले दोस्त रंजना अग्निहोत्री और छह अन्य भक्तों ने दाखिल किया है.

भगवान श्रीकृष्ण विराजमान ने भी मथुरा की कोर्ट में 13.37 एकड़ भूमि को लेकर सिविल मुकदमा दायर किया। इसके साथ ही बगल से शाही ईदगाह मस्जिद हटाने की मांग की गई है। यह केस मथुरा की अदालत में दायर किया गया है। इस केस में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक देने और वहां से इदगाह मस्जिद को हटाने की अपील की गई है। यह वाद भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की सखा रंजना अग्निहोत्री एवं छह अन्य लोगों ने दायर किया है।

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को जमीन देने को गलत बताते हुए सिविल जज सीनियर डिवीजन छाया शर्मा की कोर्ट में दावा पेश किया गया है। श्रीकृष्ण विराजमान, अस्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि, उनकी सखा लखनऊ निवासी रंजना अग्निहोत्री व त्रिपुरारी त्रिपाठी, दिल्ली निवासी कृष्ण भक्त प्रवेश कुमार, करुणेश कुमार शुक्ला व शिवा जी सिंह, सिद्धार्थ नगर निवासी कृष्ण भक्त राजमणि त्रिपाठी की ओर से पेश किए दावे में कहा गया है कि 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच जमीन को लेकर समझौता हुआ था। इसमें तय हुआ था कि मस्जिद जितनी जमीन में बनी है, बनी रहेगी। वादी के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बताया कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है। ऐसे में सेवा संघ द्वारा किया गया समझौता गलत है। उन्होंने मस्जिद को हटाने की मांग की है।

गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर की तरह मथुरा के श्रीकृष्‍ण जन्‍मस्‍थान पर भी आक्रमणकारी महमूद गजनवी ने हमला किया था। लूटकर इस धर्मस्‍थल को भी तोड़ डाला था। यह मंदिर तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है। अभी भी इस जगह पर मालिकाना हक के लिए दो पक्षों में कोर्ट में विवाद चल रहा है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍ठमी पर जानिए जन्‍मस्‍थान का इतिहास…
 – जिस जगह पर आज कृष्‍ण जन्‍मस्‍थान है, वह पांच हजार साल पहले मल्‍लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्‍ण ने जन्‍म लिया था।
– इतिहासकार डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने कटरा केशवदेव को ही कृष्ण जन्मभूमि माना है। विभिन्न अध्‍ययनों और साक्ष्यों के आधार पर मथुरा के राजनीतिक संग्रहालय के दूसरे कृष्णदत्त वाजपेयी ने भी स्वीकारा कि कटरा केशवदेव ही कृष्ण की असली जन्मभूमि है।
– इति‍हासकारों के अनुसार, सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा बनवाए गए इस भव्य मंदिर पर महमूद गजनवी ने सन 1017 ई. में आक्रमण कर इसे लूटने के बाद तोड़ दिया था।

कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने बनवाया था पहला मंदिर
– जनमान्‍यता के अनुसार, कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में एक मंदिर बनवाया था।
– आम लोगों का मानना है कि‍ यहां से मिले शिलालेखों पर ब्राहम्मी-लिपि में लिखा हुआ है। इससे यह पता चलता है कि यहां शोडास के राज्य काल में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था।

विक्रमादित्य ने बनवाया था दूसरा बड़ा मंदिर – इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में दूसरा मंदिर 400 ईसवी में बनवाया गया था। यह भव्‍य मंदिर था।
– उस समय मथुरा संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हुआ था। इस दौरान यहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास हुआ था।

आस-पास बौद्ध आस्‍था का भी केंद्र बना – इस दौरान मथुरा के आसपास बौद्धों और जैनियों के भी विहार और मंदिर भी बने।
– इन निर्माणों के प्राप्त अवशेषों से यह पता चलता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उस समय बौद्धों और जैनियों के लिए भी आस्था का केंद्र रहा था।

वि‍जयपाल देव के शासनकाल में बना तीसरा बड़ा मंदिर, सिकंदर लोदी ने तुड़वाया
– खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से पता चलता है कि 1150 ईस्वी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल के दौरान जज्ज नाम के एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नया मंदि‍र बनवाया था।
– उसने विशाल और भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को 16वीं शताब्दी के शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर डाला गया था।

चौथी बार बना मंदिर, औरंगजेब ने तुड़वाया
– इसके लगभग 125 वर्षों बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया।
– कहा जाता है कि इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन 1669 में इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया।
– यहां प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदि‍र के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था। मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था।
– इस कुएं से पानी 60 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर मंदि‍र के प्रांगण में बने फव्‍वारे को चलाया जाता था। इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद है।

बिड़ला ने की श्रीकृष्‍ण जन्‍मभूमि‍ट्रस्ट की स्‍थापना
– ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया।
– वर्ष 1940 में जब यहां पंडि‍त मदन मोहन मालवीय आए, तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर वे काफी निराश हुए।
– इसके तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए और वे भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए। इसी दौरान मालवीय जी ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा।
– बिड़ला ने भी उन्हें जवाब में इस स्थान को लेकर हुए दर्द को लिख भेजा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया।
– इससे पहले कि वे कुछ कर पाते मालवीय का देहांत हो गया। उनकी अंति‍म इच्छा के अनुसार, बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की।

1982 में पूरा हुआ वर्तमान मंदिर का निर्माण कार्य
– ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी। इसका फैसला 1953 में आया।
– इसके बाद ही यहां कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।

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