नौ वर्ष के अबोध पुत्र के हाथ में अपने पिता परम पूज्य गुरु तेग बहादुर जी का सिर मुग़लई बर्बरता का सबसे ह्रदय-विदारक दृश्य है। दिल्ली का शीशगंज गुरुद्वारा इस बात का प्रमाण है कि भारत में सनातन धर्म कैसे ज़िंदा रहा..क्योंकि हमारे पूर्वजों ने अपनी आस्था और धर्म को त्यागने के बजाय अधर्मियों के हाथों अपना सर कटवाना उचित समझा। ऐसी विभूतियों के बलिदान को कोटि नमन।
हर सनातन धर्मी चाहे जाने या न जाने। चाहे माने या न माने ..पर उसकी हर साँस महात्मा तेग बहादुर सिंह जैसे बलिदानियों की ऋणी थी..है..रहेगी।
असहनीय दुःख की बात है कि..जिस आततायी औरंगज़ेब ने हमारे गुरु की हत्या की उसी के नाम पर दिल्ली तक में सड़कों के नामकरण किए गए!इससे आप समझ सकते हैं कि स्वयं को “सेकुलर” कहने वाली सरकारों ने समस्त भारतवंशियों को कितना दर्द कितनी पीड़ा दी है!
“वो जिसने मेरे पुरखों के किए थे सर कलम तब
उन्ही के नाम पर अब शहर में सड़के बनी हैं?”
ऐसी विभूतियों को एकमात्र श्रंद्धाजलि यही होगी कि हम हमारी वर्तमान और आने वाले पीढ़ियों को, गुरु गोबिंद जी सा सक्षम बनाएँ …अन्यथा भारत भूमि हमें कभी माफ़ नहीं करेगी।
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