हिन्दू धर्म को हीन बनाने के लिए पिछले 300 सालों से जो साजिश हुई है, उसका असर भारतीय जनमानस पर गहरा पड़ा है। ये बौद्धिक युद्ध इतना असरदार है कि हिन्दू धर्म अनुनायी अपने रीति रिवाज का अनुसरण करने से हिचकते रहे हैं और अगर पढ़ लिख जाएं तब तो मानो बुद्धि के सब दरवाजे बंद। जबकि इसके ठीक उलट मुस्लिम समाज अपनी परंपरा का निर्वाह समर्पित तरीके से करता है।  इसकी बानगी ये है कि मुस्लिम स्त्रियों में फेमनिज्म जागता है तो वे हिजाब जैसे दमघोंटू लिबास का भी परंपरा के प्रति गर्व के साथ समर्थन करती हैं। जबकि हिंदू लड़कियों में फेमनिज्म जागता है तो सिंदूर, बिंदी, मंगलसूत्र और यहाँ तक कि साड़ी भी पितृसत्ता का दमन नजर आने लगती है। 


कोई मुस्लिम फेमनिस्ट पूरे इस्लामिक इतिहास की धुर जानकार होने के बावजूद बहू जैनब व छः साल की बच्ची के साथ निकाह करने वाले अपने पैगम्बर के खिलाफ कभी भी एक शब्द नहीं बोलती। जबकि हिंदू फेमनिस्ट मोहतरमाएँ वेद उपनिषद तो छोड़िये  रामायण व महाभारत का अध्ययन करे बिना राम, कृष्ण, युधिष्ठिर व भीष्म जैसे उदात्त चरित्रों की गाड़ी भर भरकर ऐसे निंदा करेंगी कि ये चरित्र महापुरुष तो छोड़िये सामान्य मानव से भी गये गुजरे दिखते हैं। 
कोई भी मुस्लिम फेमनिस्ट कभी भी इस्लाम को अपनी पहचान मानना बंद नहीं करती और उसे जीवन के हर पहलू में अमल में लाती है। हिंदू फेमनिस्ट हिंदुत्व को एक पिछड़ी सोच मानती हैं इसलिए प्रायः ‘मेरा धर्म तो इंसानियत है।’ का नारा बड़े जोर शोर से बुलंद करती हैं। कितनी भी फेमनिस्ट हो मुस्लिम लड़की या तो अपने मजहब से बाहर शादी करेगी नहीं, करेगी तो लड़के को इस्लाम कुबूलवाने की कोशिश करेगी और ये भी न हो सका तो अपनी मजहबी पहचान को बनाकर रखेगी और हिंदू पति से पैदा संतान को वैचारिक नपुंसक बनाकर इस्लाम की ओर धकेलेगी। 


हिंदू फेमनिस्ट लड़की किसी अब्दुल या असलम की मुहब्बत में पड़ते ही पैरों पड़ते माँ बाप को लात मारकर और अपनी संस्कृति से विश्वासघात करके कलमा पढ़ लेगी और कल तक साड़ी को भी पुरुष दमन का प्रतीक मानने वाली तुरंत हिजाब और बुर्का ओढ़ लेगी। मुस्लिम फेमनिस्ट लड़कियाँ इतनी आत्मविश्वासी होती हैं कि वे कभी हिंदुओं से तुलना नहीं करतीं। 

मुस्लिमों में फेमनिज्म वैसे तो है नहीं और यदि है भी तो उनसे एकाध निकलने वाली महिलाएं इस्लाम की बेहतरीन जानकार होती हैं। कॉलेज कैम्पस, कनॉट प्लेस, चौपाटी और फेसबुक पर झुंडों में घूमती हिंदू बकरियां मिल जाएंगी जिन्हें मिमियाने और हिंदू परंपराओं के विरुद्ध फेमनिज्म की मींगनी करने के अलावा कुछ भी नहीं आता। 
यही कारण है कि-
जब मुस्लिम स्त्रियों में फेमनिज्म जागता है तो आरफा खानम शेरवानी, शेहला रशीद जैसी कट्टर इस्लामिक स्त्रियाँ परिदृष्य में आती हैं और मुस्लिम आइडियोलॉजी की प्रचारक पैदा होती हैं। जब हिंदू स्त्रियों में फेमनिज्म जागता है तो मैत्रेयी पुष्पा, संजुक्ता बासु और अणुशक्ति जैसी हिंदुत्व विरोधी, इस्लाम चाटू फेमनिस्ट नमूनी सामने आती हैं। निष्कर्ष: फेमनिज्म हिंदुत्व के विरुद्ध वामपन्थियों का सबसे घातक हथियार सिद्ध हुआ है।

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