सन 1966 में शास्त्री यज्ञपुरुषदास जी एंड अदर्श वर्सेस मूल दास गुरदास वैश्य एंड अदर्श केस के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय ने हिंदुत्व की परिभाषा को परिभाषित किया। इस प्रकरण में प्रश्न उठा था कि स्वामी नारायण सम्प्रदाय हिन्दुत्व का भाग है अथवा नहीं ? इस प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री गजेन्द्र गडकर ने अपने निर्णय में लिखा –
जब हम हिन्दू धर्म के संबंध में सोचते हैं तो हमें हिन्दू धर्म को परिभाषित करने में कठिनाई अनुभव होती है। विश्व के अन्य मजहबों के विपरीत हिन्दू धर्म किसी एक दूत को नहीं मानता, किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, किसी एक मत का अनुयायी नहीं है, वह किसी एक दार्शनिक विचारधारा को नहीं मानता, यह किसी एक प्रकार की मजहबी पूजा पद्धति या रीति नीति को नहीं मानता, वह किसी मजहब या सम्प्रदाय की संतुष्टि नहीं करता है। बृहद रूप में हम इसे एक जीवन पद्धति के रूप में ही परिभाषित कर सकते हैं – इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं।
इस प्रकार से उच्चतम न्यायालय ने हिंदू धर्म की परिभाषा को परिभाषित किया और सामान्य बोलचाल की भाषा में हम यह कह सकते हैं कि हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है। हमारे पूर्वज आदि अनादि काल से जिन पद्धतियों को अपनाते आ रहे हैं उस पद्धति को मानते हुए आज भी हम उस पथ पर चलते हैं और उनकी द्वारा दी गई शिक्षा के अनुसार अपना जीवन निर्वहन करते हैं यही हिंदू धर्म है यही हिंदू संस्कृति है।
उग्र हिंदुत्व शब्द की उत्पत्ति तथाकथित वामपंथी इंटेलेक्चुअल बुद्धिजीवी गैंग की देन है। जहां तक उग्र हिंदुत्व की बात है तो हिंदुत्व उग्रता से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। उग्र हिंदुत्व शब्द की उत्पत्ति हिंदुओं को आपस में विभाजित करने का एक षड्यंत्र है और इस षड्यंत्र में सो कॉल्ड बुद्धिजीवी सेकुलर वामपंथी काफी हद तक सफल भी हो रहे हैं। वामपंथी लेखकों का मानना है कि उग्र हिंदुत्व भारत के सेकुलर रिज्म को प्रभावित करेगा लेकिन हिंदुत्व के बाद उग्र हिंदुत्व की परिभाषा अभी तक परिभाषित नहीं हुई है। मेरा मानना यह है कि-
हिंदू हित की बात करना,हिंदुओं को एकत्रित करने के बात करना,हिंदुओं को संगठित करने की बात करना, जिस क्रियाकलाप से हिंदू धर्म एवं सभ्यता संस्कृति का प्रचार प्रसार होता हो, जिससे हिंदुओं का विकास हो,हिंदुओं को दुख दर्द को समझना, हिंदू धर्मांतरण पर रोक लगाने की बात करना, समान आचार संहिता कानून लागू करना, इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ बात करना, ट्रिपल तलाक पर चर्चा करना, लव जिहाद पर रोक के लिए कानून बनाने की मांग करना, जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की बात करना और ऐसे ही असंख्य मुद्दों पर हिंदूओं द्वारा अपने बात को रखने में इन्हें उग्र हिंदुत्व नज़र आता है।
देश की पिछले सरकारों ने हिंदू आतंकवाद की परिभाषा को प्रस्तुत किया था और अब आए दिन उग्र हिंदुत्व की चर्चा वामपंथियों और तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा की जा रही है।
लेकिन इन्हें यह जान लेना चाहिए कि उग्र हिंदुत्व जैसा वह सोचते हैं वैसा कुछ भी नहीं है और उनके झूठ का प्रोपेगेंडा इस देश में अब ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकता क्योंकि जो हिंदू हित की बात करेगा अब वही हिंदुओं के दिलों पर राज करेगा इसलिए वामपंथी और तथाकथित बुद्धिजीवियों का षड्यंत्र हिंदुओं को आपस में विभाजित कर इन्हें हिंदूत्व और उग्र हिंदुत्व में विभाजित करना ही् है जो कभी सफल नहीं होगा।
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