सऊदी अरब सरकार ने मध्यकाल में अटकी हुई इस्लामिक सोच से आगे बढ़कर मानवीयता के नाम पर एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है । सऊदी सरकार ने  जो एक  कट्टर सुन्नी वहाबी विचारधारा का देश है वहां पर मस्जिदों के लाउडस्पीकर की आवाज को कम करने के आदेश दिए हैं। नए आदेश में सरकार ने मस्जिदों में लगे लाउडस्पीकर्स के वॉल्यूम यानी आवाज को कम रखने के निर्देश दिए गए हैं। आदेश में कहा गया है कि लाउडस्पीकर के वॉल्यूम को उसकी क्षमता का एक तिहाई रखें।

आधे घंटे के अंदर प्रिंस का दूसरा आर्डर निकला कि जो कोई भी लाउड स्पीकर मीनारों से बजाएगा उसे जेल जाना पड़ेगा। आदेश निकलने के 2 घंटे के भीतर पूरे सऊदी से मीनारों से लाउडस्पीकर उतर गए, प्रिंस ने एक और आर्डर दिया जितनी डेसिबल की परमिशन थी उसके एक तिहाई से ज्यादा आवाज मस्जिद के भीतर से भी ना आए।


आदेश का पालन हुआ अब कोई अजान या नमाज की आवाज सड़कों तक नहीं पहुंचती प्रिंस ने कहा जब मोबाइल से लेकर टीवी और एप्स के जरिए नमाज का समय प्रसारित हो जाता है तो चिल्लाने की क्या जरूरत है । सऊदी के इस आदेश के बाद पाकिस्तान हिंदुस्तान और कई मुल्कों में बहस छिड़ गई है। यह सब सऊदी को ही अपना रहनुमा मानते हैं क्योंकि मक्का सऊदी में ही है और सऊदी को किसी दकियानूसी मौलवी की परवाह नहीं।


बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों को अपनी इस्लामिक सोच का आका मानने वाले भारतीय उपमहाद्वीप के तमाम मुसलमान इस फैसले को नजीर मानकर उसका पालन करेंगे या फिर अपनी मध्यकालीन कट्टर सोच में ही अटके रहेंगे।

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