कुछ लोग कंगना के अतीत मे झांकते हुए तरह तरह के प्रश्न उठाते है, अश्लील तस्वीर का मीम बनाके उसका मज़ाक़ उड़ाते है , चरित्र हत्या तक कर रहे है। ये वही लोग है जिन्हें अपने अतीत का ज़रा भी ज्ञान नहीं, या फिर बात करने से डरते है कही ख़ुद के सेक्युलर, लिबरल, महिलावादी होने का ढोंग ना खुल जाए।

आख़िर कंगना इतनी कम उम्र मे इतनी सफल स्टार कैसे बन गयी? क्या उसने कभी किसी से फ़ेवर नहीं लिए होंगे? क्या कभी कॉम्प्रॉमायज़ नहीं की होंगी? क्या कभी उन बड़ी हस्तियों के ऑफ़िस की ख़ाक नहीं छानी होगी? ज़रूर ली होगी फ़ेवर, किए होंगे कॉम्प्रॉमायज़, छानी होगी दर दर की ख़ाक तो क्या? अगर उसने भी किया तो किया। शर्म तो  उन लोगों को आनी चाहिए जिन्होंने ऐसा माहौल बना रखा है। हज़ारों लड़कियाँ सपनो के शहर मुंबई अभिनेत्री बनने का ख़्वाब लिए हर साल आती है और निराश लौट जाती है। शायद ही कोई एक कंगना बन पाती है, ये अपना अपना  मेहनत और नसीब है।

इस सब के बावजूद उसने कभी अपने व्यक्तिगत जीवन से समझौता नहीं किया, अपने देश, अपने धर्म से समझौता नहीं किया।किसी गैंग का हिस्सा नहीं बनी। जितना ऊपर उठती गयी उतनी ही ज़िम्मेदारी भी दिखायी पुरुष प्रधान फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाया अपने दम पे ।महिला प्रधान फ़िल्में बनाई, महिलावाद का झुनझुना बजाने वालों के मुँह पे अपनी सक्सेस से तमाचा जड़ा, बोल बच्चन से नहीं कर्म करके दिखाया। शायद इसलिए जिन फ़ेमिनिस्ट को रिया चक्रवर्ती केस में पेट्रीआर्की दिखती है कंगना के केस मे नहीं दिखी।

कोई कहता है इस शहर ने ये दिया वो दिया दौलत दी शोहरत दी । अगर कोई शहर किसी को कुछ देता तो हज़ारों भीख माँगने वाले ना मिलते हर सिग्नल पे।सब अपने दम पे कमाना पड़ता है । कुछ प्रांतवाद में यक़ीन करने वालों को उसके बाहरी होने से तकलीफ़ है क्यू भई ये देश सबका है जो जहां चाहे रहे । 

कुछ लोगों को उसके झाँसी की रानी से तुलना से दिक़्क़त है। जब एक राजनैतिक घराने की राजकुमारी को माँ दुर्गा से तुलना की जा सकती है जिनके  जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि ही उनका उपनाम (surname) है। फिर कंगना से  क्या दिक़्क़त है? बस यही की वो एक बड़ी ही मामूली परिवार से आती है?

कंगना आज एक सफल स्टार है दश वर्ष पहले क्या सोचती थी क्या बोलती थी इसकी बात ना ही  करे तो बेहतर है, क्यूँकि दश वर्ष पहले आप क्या सोचते थे, समझते थे, या बोलते थे ये आप को भी पता होगा। दश वर्ष पूर्व कैसे प्रधानमंत्री चुने थे और आज कैसे प्रधानमंत्री चुना है समझना इतना मुश्किल भी नहीं। जितना वैचारिक दूरी इस देश ने तय की है उतनी ही कंगना ने भी की उसके विचार के लिए उसे सराहना मिलनी चाहिए ना कि आलोचना।

कंगना आज कैरियर के उस मक़ाम पे खड़ी है जहाँ एक गलती और वर्षों की मेहनत पानी। ऐसे वक्त में उसने अपना हित किनारे कर देश के साथ खड़ी हुई, किसी के लिए आवाज़ उठाई अपनी पहचान दांव पे लगा दी। आमतौर पे ये नहीं होता। जैसे जैसे एक हिंदू सफल होता जाता है अपनी जड़ो से, अपनी पहचान से दूर होता चला जाता है। बड़े बड़े महानायक है जो किसी मज़ार, दरगाह पे माथा टिकाते मिल जाते है पर असल मुद्दों पे एक ट्वीट तक नहीं निकलती।

कुछ लोगों की तकलीफ़ ये है के कंगना राजनीति में कदम न रख दे।अपने विचारो में स्पष्ट व हिम्मती लड़की है क्यों नहीं आना चाहिए राजनीति में ? और इसमें नया क्या है जया बच्चन, जया प्रदा, हेमा मालिनी दर्जनो फ़िल्म स्टार राजनीति में आए है पर उनका स्टारडम अक्सर बोझ ही बना है। तमिलनाडु की “अम्मा” जयललिता भी  एक समय पे अभिनेत्रि थी। जयललिता का जयललिता से अम्मा बनने का सफ़र भी कुछ इसी तरह का रहा था। स्मृति ईरानी भी एक अभिनेत्री है जिन्होंने एक युवराज को उसके ही गढ़ से खदेड़ दिया तो अगर कंगना भी राजनीति में आ के मुखर आवाज़ के साथ अपनो की जरूरतमंदो की आवाज़ बुलंद करे तो ग़लत क्या है? 

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