अल्पसंख्यकों के रहनुमा जब बहुसंख्यक हो जाएं और बहुसंख्यकों के अल्पसंख्यक, तब ऐसा ही होता है जो आज कपिल मिश्रा के साथ हो रहा है. भारत एक लोकतंत्र है जहां सबको अपने धर्म को जीने और उसकी रक्षा करने का अधिकार है लेकिन सेकुलरता की परिभाषा संविधान से ऊपर है शायद जो यह अधिकार कपिल मिश्रा को या कहें तो पूरे हिंदू धर्म को नही देती. वह एक मज़हब विशेष के नाम पर राजनीतिक दल बनाने और उसके नाम पर चुनाव लड़ने का तो अधिकार देती है लेकिन हिंदुओं को एक गैऱ-राजनीतिक संगठन के नाम पर इकट्ठे नहीं होने दे सकती.

सही है इकट्ठा होने भी दें तो कैसे, आखिर हिंदुओ का बिखराव ही तो उनकी वह ताकत थी जिसके ज़रिए दशकों से वह समाज में विघटन का बीज बोकर उसे साज़िशों से सींचकर अपने स्वार्थों के फल उगाते आए. लेकिन अब जब कपिल मिश्रा केवल भारतीय राजनीति का ही नहीं बल्कि पूरे हिंदू समाज का वह चेहरा बन चुकें हैं जो तब आवाज़ उठाता है जब तमाम मुख्यमंत्रियों के मुंह में दही जमा होता है, जो तब भी ज़मीन पर आकर लड़ता है जब उसके पीछे खड़े होने वालों की संख्या दहाई में, सैकड़े में या हज़ार में होगी उसे नहीं पता होता और जिसकी ओर कोई भी ज़रूरत में फंसा हिंदुस्तानी आशा की दृष्टि से देख सकता है इस विश्वास के साथ की उसकी आशा पूरी होगी, तो सेक्युलर खेमे का गोलबंदी कर कपिल मिश्रा को टारगेट करना किसी को आश्चर्य नहीं लगना चाहिए. 

दिशा रवि जैसों को बचाने के लिए हिंदू इकोसिस्टम के बहाने जो कोशिशें कपिल मिश्रा के खिलाफ चल रही हैं उन्हे देखकर मुझे एक किस्सा याद आता है- दरअसल नवंबर 2020 में जब- हिंदू इकोसिस्टम को शुरू करने का ऐलान कपिल मिश्रा ने किया और इसके लिए गूगल फार्म ट्वीटर पर शेयर किया तो मुझे याद है मैने उनसे कहा था- आपको नहीं लगता कि इस तरह पब्लिक फोरम में फार्म शेयर करने से बहुत से आपके विरोधी सिर्फ़ आप पर नज़र रखने के लिए इस ग्रुप में आ जायेंगे? उनका जवाब था- मै जानता हूं लेकिन क्या फ़र्क पड़ता है? हमारे पास छुपाने को कुछ नहीं, और हम हर सिचुएशन के लिए तैयार हैं. यह घटना मैने इसलिए बताई कि जिन्हे लगता है कि हिंदू इकोसिस्टम ग्रुप के कुछ स्क्रीन शॉट्स लेकर खबरों में लगाकर उन्होने खोजी पत्रकारिता के आसमान में कोई  सुराख कर दिया है या किसी एनजीओ एक्टिविस्ट की महाराष्ट्र पुलिस को कंप्लेंट के बाद इकोसिस्टम ग्रुप के लोग डर जायेंगे तो उन्हे बताती चलूं कि आपके जहां तक पहुंचने में फरवरी 2021 आधी से ज़्यादा निकल गई, उससे भी आगे की सोचकर नवंबर 2020 में कपिल मिश्रा ने यह काम शुरु किया था. बाकी कानूनी दांवपेंचों से कपिल मिश्रा को घेरने का अधिकार आपको है तो संविधान के दायरे में रहकर अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा करने का अधिकार दूसरों को भी है. और रही बात उस टूलकिट की तुलना हिंदू-इकोसिस्टम से करने की जिससे हिंदुस्तान के ख़िलाफ अंतर्राष्ट्रीय साज़िश रची गई, तो इस पर तो बस मै इतना कहना चाहती हूं कि महोदय और महोदयाओं- अपनी रक्षा के लिए लाइसेंसी रिवाल्वर रखने पर धारा 302 नहीं लगती, लेकिन उसका उपयोग किसी का मर्डर करने पर ज़रूर लगती है. बात समझ आ गई हो तो ठीक वरना आखिरी लाइन किसी अपीलजीवी से पढ़वा लेना।

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