मैं शुरू से इस तथाकथित किसान आंदोलन का समर्थक नही था, आज भी नही हूँ और ऐसा इसलिए नही है कि मैं भी यही मानता हूँ कि ये खालिस्तानियों का आंदोलन है। सच ये है कि, न सिर्फ भारत मे बल्कि दुनिया मे, खालिस्तानी अभी इतने मजबूत नही है कि वह इतना बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकें, कि सरकार घुटनो पर आ जाये। यद्यपि ऐसा भी नही है कि कि इस आंदोलन को खालिस्तानियों का समर्थन नही है मग़र इसके केन्द्रविन्दु पर दुनिया का सबसे ताकतवर व अराजक वर्ग ही है जिसे बामपंथी कहते है, ये दुनिया भर में में आतंकवाद, नक्सलवाद और अराजकता के पोषक हैं। इनकी क्रूरता का पुराना इतिहास है। संख्याबल होने पर नरसंहार और अल्पसंख्या की स्थित में साजिश इनके युद्ध का माध्यम रहा है।
इनका इतिहास खागालेगें तो पायेगे कि वास्तव में ये कभी किसी के पक्ष में नही रहे, मुस्लिम देशों में इन्होंने मुस्लिमों के खिलाफ, ईसाई देशों में ईसाइयों के खिलाफ और भारत मे हिन्दुओ के खिलाफ इन्होंने हमेशा कुचक्र ही रचा है। आतंकवादी या नक्सलवादी फिर भी बंदूक लेकर सामने आता है, मग़र ये अपने मूलस्वरूप में कभी सामने नही आते। ये न सिर्फ इस देश मे बल्कि दुनिया में मुट्ठी भर है मगर अपनी एकता, प्रबंधन और सजिसों के कारण आज भी बहुत ताकतवर है और यही कारन है कि अपनी बेहतरीन योजना के दम पर किसी भी सत्ता को घुटनों पर लाने की काबिलियत रखते है। CAA आन्दोलन के दौरान शाहीनबाग में इन्होंने मुस्लिमो को अपनी ढाल बनाई मगर फेल हो गए क्योंकि आंदोलनकारियों की विश्वसनीयता पर देश को कही न कही शक था मगर इस बार इन्होंने अपनी गलती सुधारी और किसानों के नाम को अपनी ढाल की तरह इस्तेमाल किया, और उसका परिणाम ये हुआ कि सियारों की तरह हुंआ हुंआ करते हुए सारे राजनीतिक/गैरराजनीतिक लोग बिना सच जानने की कोशिश किये हुए किसानों के नाम पर इकट्ठे हो गए। यद्यपि मैं उन्हें गलत नही कह रहा हूँ क्योंकि किसान अपने आप मे विश्वास का प्रतीक है, और उसके नाम पर देश का इकट्ठा हो जाना, बताता है कि खेतो में काम करने वाले लोगों के जेब मे पैसे हो या न हो मग़र विश्वसनीयता में उनसे बड़ा ब्रांड कोई और नही है।
बामपंथियों ने उनकी इसी ब्राण्ड वैल्यू का फायदा उठाया और पंजाब और हरियाणा के बिचौलियों के आंदोलन को उन्होंने अपनी एकता, बेहतर रणनीति और संगठन कौशल के दम पर दुनिया के सामने किसानों के आंदोलन की तरह पेश किया, परिणामस्वरूप सोशल मीडिया में ‘मैं किसान के साथ हूँ’ की DP लगाने वाले भावुक लोगो की बाढ़ सी आ गयी जिसे देखकर बामपंथी और उत्साहित हो उठे, और अपनी चंद मांगो को लेकर आये बिचौलिए की मांगों में जायज नाजायज किसानों की मांगों को जोड़ कर परिस्थितियों के अनुसार उन्हें लगातार बढ़ाते गए ताकि समाधान की स्थिति न बनने पाए। इसके साथ साथ छोटे छोटे कबीलों में बटें किसानों को उन्होंने संगठित होकर एक किसान नेता के छत्रछाया में आंदोलन नही करने दिया, क्योकि वह जानते थे कि भीड़ से बात करके किसी भी समाधान तक पहुँचना हमेशा मुस्किल होता है, अपनी इस रणनीति को शाहीनबाग में उनके द्वारा पहले भी आजमाया जा चुका था।
तो अब सवाल उठता है कि क्या इस आन्दोलन का मुख्य सूत्रधार बामपंथी ही है तो ये पूर्णतः सच नही हैं। अराजकता की इस बहती हुई गंगा में वह हर आदमी हाँथ धो रहा है जो इस देश से नफरत करता है, जिसका राजनीतिक हित है या जो अपने धर्म ही सत्ता स्थापित करना चाहतें है। मजे की बात ये है कि इनमे से किसी को भी किसानों से लेना देना है।
– राजेश आनंद
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