शूरवीर महाराणा प्रताप की आज जयंती है .. जरा 2 मिनट ठहर कर उनकी रोबदार मूछें, उनका 6 फुट से लंबा कद , उनके 55 किलो का भाला और ढाल, उनके घोड़े चेतक और मेवाड़ के प्रति उनके स्वाभिमान को याद कीजिए । रगों में देशभक्ति उमड़ घुमड़ कर दौड़ने लगी ना ? वामपंथी इतिहासकारों  की बेईमान यह थी कि उन्होंने कभी भी महाराणा प्रताप की वीरता को  सही तरीके से किताबों में नहीं लिखा …. महाराणा प्रताप और अकबर की सेनाओं के बीच 4 दिन तक लगातार युद्ध चला.. महाराणा प्रताप ने समर्पण नहीं किया वह लगातार ताउम्र अपनी आखिरी सांस तक अकबर से लड़ते रहे , मगर फिर भी किताबों में लिखा गया कि महाराणा प्रताप उस युद्ध में हारे थे, जबकि सच यह है कि महाराणा प्रताप ने उस युद्ध में अकबर को हराया था। 

उदयपुर के राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार 18 जून 1576 को हुए हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप ने अकबर को युद्ध में हराया था…शोधकर्ता की खोज के अनुसार हल्दी घाटी की युद्ध के पश्चात महाराणा प्रताप ने हल्दी-घाटी के आसपास की जमीन के पट्टे ताम्र-पत्र के रूप में बांटे थे. इन पट्टों पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर थे. उन दिनों जमीनों के पट्टे जारी करने का अधिकार सिर्फ राजा को होता था. राजा द्वारा चुने दीवान ही पट्टे पर हस्ताक्षर करते थे, जो आधिकारिक रूप से मान्य होता था।

उपयुक्त शोध में यह बात भी उजागर हुई कि हल्दी-घाटी युद्ध समाप्त होने के बाद अपने सबसे प्रिय सेनापति मान सिंह और आसिफ खां के युद्ध हारने से अकबर उनसे बेहद नाराज थे. उपयुक्त शोध के अनुसार दोनों ही सेनापति को छह माह तक राज दरबार में कदम नहीं रखने की हिदायत दी गई थी, क्योंकि कोई भी युद्ध जीतने पर अकबर सेनापति और सेना को पुरस्कृत करता था. अगर मानसिंह और आसिफ खां युद्ध जीतते तो अकबर उन्हें राज दरबार में कदम नहीं रखने की सजा क्यों देता?. इससे लगता है कि हल्दीघाटी युद्ध महाराणा प्रताप ने ही जीती थी।

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