सरदार पटेल की आज पुण्यतिथी है, पूरा देश सरदार को भारत के एकीकरण के चलते याद कर रहा है। यहां विशेष तौर पर जिक्र करना होगा सरदार पटेल के हैदराबाद मिशन का, जिसमें उन्होंने हैदराबाद के निजाम और उसके रजाकारों की फौज को कुचलकर भारत का तिरंगा वहां फहराया। हैदराबाद का जिक्र इसलिए भी खास है क्योंकि उसी गुजरात के 2 शख्स भारत की राजनीति में शीर्ष पर बैठे हैं और दोनों की ही मंशा हैदराबाद में भगवा लहराने की है। इसी बाबत हाल ही में हुए हैदराबाद निगम चुनाव में बीजेपी ने जमीन पर कड़ी मेहनत की और चुनाव में 4 से 44 पर पहुंचकर जबर्दस्त दस्तक दी। 


सरदार पटेल की ये पुण्यतिथि इसलिए भी खास है क्योंकि इस बार राष्ट्र्वादी विचारधारा का परचम हैदराबाद की 4 मीनार पर फहराया है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अमित शाह और नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद चुनाव में खासी दिलचस्पी दिखाई। बेशक भारत में हैदराबाद का विलय 1948 में हुआ मगर ओवैसी जैसी मानसिकता का वहां जीतना दर्शाता था कि ये विलय अभी मानसिक स्तर पर नहीं हुआ है। अब जाकर जब बीजेपी ने वहां दस्तक दी है तब कहा जा सकता है कि विचारों की बौद्धिक लड़ाई में अब जाकर निजाम की मानसिकता को चुनौती मिली है। 
गौरतलब है कि हैदराबाद के निजाम ने भारत के साथ न मिलने की घोषणा की थी। निजाम भारत को चुनौती देने के लिए लगातार सैन्य क्षमता बढ़ा रहा था,इससे पटेल चिंतित थे। निजाम के नाज नखरों को सहते सहते जब पटेल का सब्र जवाब दे गया तो आखिरकार 13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो चलाया। निजाम और उसकी रजाकार सेना ने घुटने भारतीय आर्मी के सामने टिक न सके और इस तरह हैदराबाद का विलय भारत मे हुआ।


अकबरुद्दीन ओवैसी को भी ये समझना चाहिए कि वो लाख निजाम के कदमों पर चलने की नापाक कोशिश करे मगर गुजरात के बेटे सरदार पटेल की तर्ज पर देश की कमान आज भी 2 गुजराती बेटों के हाथ में है जो निजामशाही और ओवैसी जेहनियत को हिंदुस्तान के खाके में कहीं से भी फिट नहीं बैठने देंगे।

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