पालघर की धरती पर संतों का बहा खून 1 साल पूरा होने पर चीख चीख कर कह रहा है, कि बेशक 1 साल पूरा हो गया मगर इस हत्याकांड में एक भी दोषी की फांसी या उम्रकैद की सजा नहीं हुई है। आखिर इन बूढ़े, अहिंसक, निर्बल, शस्त्रहीन संतों का दोष क्या था?? महज भगवा पहनना?? संतों के शरीरों पर लाठी चलाने वाले कायर हाथ आज भी हमारे सियासी पुरोधाओं के मुंह पर वोटबैंक की टेप लगाए हुए हैं, इसलिए गिद्ध शांति से सब भरे हुए हैं और अपनी अपनी बारी का इन्तजार कर रहे हैं। 


दरअसल गांव में 1300 लोग रहते हैं जिनमें से 93% Sc/St समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। गांव में पहले से ही ईसाई मिशनरी और नक्सली गतिविधियां बहुत प्रमुखता के साथ रही हैं, जिसकी वजह से गांव के लोगों में हिंदू धर्म के प्रति नफरत मौजूद रही है।

16 अप्रैल,2020 के दिन कल्पवृक्ष गिरी महाराज (70) और सुशील गिरी महाराज (35) अपने ड्राइवर नीलेश तलगाडे (30) के साथ पालघर के गढ़चिंचले गाँव से गुजर रहे थे, तभी लगभग 500 की भीड़ ने उन्हें घेर लिया। ये इलाका दहानु तहसील में पड़ता है। नासिक के रहने वाले ये दोनों साधु जूना अखाड़ा से सम्बन्ध रखते थे, जिसका मुख्यालय वाराणसी में है। ये साधुओं के सबसे बड़े अखाड़ों में से एक है। 

जाहिर है इस देश में जिसे हिदुस्तान कहते हैं वहां हिंदू धर्म को मानने वाले 2 साधुओं की निर्मम- बर्बर हत्या कर दी जाती है मगर जाति-जगह के समीकरण में बंटी हुई जनता और उनके चुने हुए नुमाइंदे बेशर्मी की नुमाइश में लगकर मौन साध लेते हैं। याद रखिये साधू कल्पवृक्ष औऱ सुशील गिरी जी बेशक इस दुनिया से चले गए हैं मगर अनसुलझे सवालों की लंबी लकीर आपसे हमसे यह सवाल कर रही है कि आप हम कबतक मौन रहेंगे?

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