तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा – कल्पना करके देखिये की देश का एक सपूत , देश को सैकड़ों सालों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए अपने देश वासियों से उनकी धन सपंत्ति बल नहीं सीधा और स्पष्ट उनका जीवन ,रुधिर रक्त को समर्पित करने का आह्वान करके हिन्दुस्तानियों की , की पहली फौज -आजाद हिन्द फौज ही नहीं खडी कर दी बल्कि भारत की पहली आज़ाद सरकार भी बना दी। ठीक उस ब्रितानी हुकूमत के सामने सीना तान कर बनाई गई इस सरकार को उन दिनों दुनिया के एक दो नहीं पूरे 9 देशों ने मान्यता प्रदान कर दी थी।

उन दिनों जब अंग्रेजन ने भारतीयों को दोयम दर्ज़े का नागरिक बनाया हुआ था उन्हीं की प्रशासनिक सेवाओं में अपनी मेधा/प्रतिभा से अव्वल स्थान पर चयनित होने के बाद स्वदेश की खातिर उस सेवा को लात मार दी। सुभाष चंद्र बोस -भारतीय स्वतंत्रता संगम के वो महामानव थे जिनके भय से ब्रितानी हुकूमत उनके जीते जी ही नहीं वरन उसके बाद भी भयाक्रांत रही। वो ही अकेले ऐसे जान नायक थे जिन्होंने उन दिनों चरम पर पहुँच चुकी गाँधीवाद के अंधानुसरण की परम्परा को अपनी उपस्थति मात्र से धवस्त कर दिया था स्वयं करमचंद गाँधी उनके इस राजनैतिक उदय से हतप्रभ थे।

उन्होंने कांग्रेस द्वारा अंग्रेजों के साथ की रूठने मनाने वाले चल रहे सारे आंदोलन के विपरीत सीधा ही अंग्रेजों को देश से बाहर जाने के लिए युद्ध लड़कर उन्हें हिन्दुस्तान से बेदखल कर दिए जाने का जयघोष कर दिया। देश और पूरी दुनिया को अपने पराक्रम तेज़ और तीक्ष्ण राजनैतिक परिपक्वता से प्रभावित करने वाले सुभाष बाबू का व्यक्तित्व ऐसा था कि दुनिया को थर्रा देने वाला जर्मन शासक हिटलर भी पहली ही भेंट में उनसे बहुत अधिक प्रभावित होकर उनका मुरीद हो गया।

असल में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध ब्रितानी साम्राज्य क शत्रु देशों को साथ मिलाकर उन्हें भारत से ने के लिए उन्हें भारत से भगाने के अभियान में उनकी मुलाक़ात उन दिनों दुनिया को थर्रा देने वाले जर्मन एडॉल्फ हिटलर से तय हुई। हिटलर से पहली बार परिचय का वो पूरा वाकया ही ऐतिहासिक हो गया। पहली बार मिलने आए हिटलर से सुभाष बाबू ने मुलाकात से इंकार कर दिया और दूसरी बार आए हिटलर से भी नहीं मिले। आखिर में विवश होकर असली हिटलर सुभाष बाबू से मिलने आए और आते ही पूछा कि ,सुरक्षा कारणों से पहले भेजे गए उनके दोनों हमशक्लों को सुभाष बाबू ने पहचाना कैसे।

तीक्ष्ण बुद्धि सुभाष बाबू ने उत्तर दिया कि , असली हिटलर खुद आगे बढ़ कर हाथ क्यों मिलाएगा और यदि आप मुझ से सच में ही मिलना चाहते हैं तो आप भी हाथों पर चढ़े दास्ताने उतार कर मिलाएं ताकि वास्तव में मिलने का एहसास हो सके। इसी के बाद से हिटलर सुभाष बाबू का मुरीद हो गया।

अब जबकि राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र जयंती को राष्ट्रीय पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का निर्णय इतने वर्षों में किसी सरकार ने लिया है तो फिर नेताजी के नाम पर कर उनसे जुड़ी तमाम योजनाओं ,परियोजनाओं पर कार्य करने के लिए साथ और सुझाव देने की बजाय जब राज्य सरकार स्वार्थवश और सिर्फ विरोध के लिए विरोध करने की राजनीति करने के लिए कुछ भी अनर्गल प्रलाप करने लगे तो इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और भला क्या हो सकती है ??

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