साक्षात ईश्वर व सृष्टि के रचयिता हैं श्री राम

राम को इमाम कहना और केवल हिन्द तक सीमित करना दोनों एक घटिया सोच का नतीजा, जहां सामने वाला दिन में पांच बार लाउडस्पीकर पर कहता हैं कि उसके ईश्वर के अलावा और कोई ईश्वर नहीं

वहां साक्षात ईश्वर श्रीराम को ईश्वर कहने से डरना, सेकुलरिज्म के नाम पर अगर मुस्लिम ने उन्हें ईमाम कह दिया तो खुशी में झूमते रहना, अखंड मूर्खता हैं

हिन्दू धर्म को मानने और समझने वाले एक बात जानते हैं कि भगवान शिव स्वयं श्रीराम की आराधना करते हैं। उनका ध्यान करते हैं। श्रीराम भगवान शिव की साधना करते हैं। तो कल कोई महामूर्ख कहेगा कि भगवान शिव ईमाम ए हिन्द की पूजा करते हैं।

अल्लामा इकबाल जिसने श्री राम को इमाम ए हिन्द कहा था वो उसी बीमारी से ग्रस्त था जिसे जिहादी मुस्लिम सोच कहा जाता हैं। कट्टर इस्लामिक जेहादी अल्लामा इकबाल ने ही भारत को तोड़कर मुसलमानों का अलग देश बनाने की बात की थी।।

अल्लामा इक़बाल, जिन्हें मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान कहा जाता है, यानी पाकिस्तान का विचारक। ये सही भी है क्योंकि सबसे पहले ‘टू नेशन थ्योरी’ की बात इन्होंने ही की थी। इन्हें शायर-ए-मशरिक, अर्थात पूरब का शायर भी कहा जाता है। इक़बाल को हाकिम-उल-उम्मत, अर्थात उम्माह का विद्वान भी कहा गया है। यहाँ उम्माह आते ही आप समझ गए होंगे कि इसका अर्थ है मुस्लिमों का शासन। यही मुहम्मद इक़बाल की विचारधारा भी थी- पूरी दुनिया के मुसलमान एक राष्ट्र के रूप में हैं। ‘तराना-ए-मिल्ली’ का सार यही है कि पैगम्बर मुहम्मद ही सारी दुनिया के मुसलमानों के नेता हैं। इन्होंने इस्लाम में राष्ट्रवाद की भावना होने की बात को ही नकार दिया।

सारे जहां से अच्छा लिखने वाले इकबाल ने आगे ये भी लिखा था :

चीन-ओ-अरब हमारा हिन्दोस्ताँ हमारा
मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा

इसका अर्थ है कि चीन और अरब हमारे हैं, हिंदुस्तान भी हमारा ही है। हम तो मुस्लिम हैं और ये सारी दुनिया ही हमारी है। यहाँ चीन का तात्पर्य पूरे मध्य एशिया से था। इसकी अगली पंक्तियों में उन्होंने लिखा है कि एक अल्लाह को मानना मुस्लिमों की साँस में, सीने में बसता है। इसकी अगली पंक्ति में वो लिखते हैं कि मुस्लिमों को मिटाना इतना आसान भी नहीं है। इसके बाद वो मंदिरों और मूर्ति पूजा का मखौल उड़ाते हुए लिखते हैं कि उन सबमें उनके ख़ुदा का घर सबसे ऊपर का स्थान रखता है। इसका एक अर्थ ये भी है कि मुस्लिमों का काबा जो है, उसका स्थान दुनिया के सारे मंदिरों से भी ऊपर है, सबसे ऊँचा।

दिसंबर 29, 1930 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में मुस्लिम लीग का 25वाँ वार्षिक सम्मलेन था और इसी मुहम्मद इक़बाल ने में विभाजन की ऐसी नींव रखी, जिसका खामियाजा पूरे भारत को भुगतना पड़ा। उन्होंने धमकाया कि भारत में तब तक शांति का नामों-निशाँ भी नहीं हो सकता, जब तक मुस्लिमों को अलग देश और उन्हें अपना शासन न मिले। वहाँ ऐलान कर दिया कि एक मुस्लिम कभी भी इस बात को स्वीकार नहीं करेगा कि उसके देश की नीतियाँ इस्लामी क़ानून से अलग हों।

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