वामपंथी लेखिका राणा अय्यूब ने देश के सम्मान-मान-अभिमान सचिन तेंदुलकर के लिए ज़हर उगला है। राणा अय्यूब ने ‘CARVAN’ पत्रिका के लेख का उल्लेख करते हुए लिखा है कि सचिन तेंदुलकर देश के हीरो नहीं हैं। किसी नए नवेले लड़के वैभव वत्स ने सचिन के विषय में लेख लिखकर कहा है कि सचिन CAA प्रदर्शन में शामिल लोगों के समर्थन में नहीं बोले तो वो गुनहगार हो गए.. सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्यों भई सचिन आपके CAA के समर्थन में क्यों बोलते? तुम्हारे आका मसूद अजहर पाकिस्तान से हिंदुओं को बेइज्जत करके निकाल रहे हैं तुम तब उसपर नहीं बोले… तुम राम मंदिर के लिए करोड़ों हिंदुओं की जनभावना के समर्थन में नहीं बोले…तुम डॉक्टर नारंग, अंकित शर्मा, दिलबर नेगी, निकिता के समर्थन में नहीं बोले …तो भला कोई तुम्हारे देश विरोधी प्रोटेस्ट के बारे में क्यों बोले? राणा अय्यूब सचिन की नीली वर्दी हिंदुस्तान के नवयुवकों का आकाश है जिसके साये में उड़कर वो देशभक्ति, समर्पण, विनम्रता, त्याग, निष्ठा, धर्म के संस्कार सीखते हैं।


इनकी गुंडई देखिए कि भारत रत्न सचिन तेंदुलकर को कह रहे हैं कि ‘मोदी तेरी हत्या करेंगे-हिंदू की कब्र खुलेगी’ जैसे नारे वाले प्रोटेस्ट के समर्थन में जबरदस्ती बोलिए वरना आपको छोटी सोच के आदमी का सर्टिफिकेट पकड़ा दिया जाएगा। गली में क्रिकेट खेलने वाले14 वर्षीय सोनू भी इस गैंग को गरियाते हुए कहा रहा है कि सचिन तेंदुलकर को गाली दे रहे हैं…यानी स्वयं आसमान पर थूक रहे हैं। देश के बच्चे बच्चे को ये पता है कि सचिन का इस देश के लिए क्या दर्जा है, मगर इन हवा में रहने वाले वमिस्तानी नफरती तत्वों को नहीं पता है। 


गौरतलब है कि जिस वैभव वत्स से CARVAN में लेख लिखवाया गया है वो स्वयं बड़े वमिस्तानी कार्यकर्ता का बेटा है यानी उसे देश की दिशा दशा हवा का कुछ पता नहीं है। याद कीजिए जब वकार यूनुस की तेज गेंद सचिन तेंदुलकर के जबड़े पर लगी थी तब भी 16 साल के इस युवक ने ग्राउंड से बाहर जाने से मना कर दिया था। ये वही सचिन है जिन्होंने केन्या के खिलाफ शतक ठोककर अपने पिता को श्रद्धांजलि दी थी। देश में कोई राणा अय्यूब को जानता तक नहीं है मगर इस देश का बच्चा बच्चा सचिन तेंडुलकर बनना चाहता है। 


सामर्थ्य की शिलाओं को जब समर्पण के कदमों से चढ़ा जाता है तब जाकर कोई सचिन तेंदुलकर बनता है, अपार सफलता के बोझ से जो अहंकार नहीं विनम्रता के अलंकार को पहनता है तब जाकर कोई सचिन बनता है, किसी फ्री लांसर कम्युनिस्ट लेखक के सहारे क्रिकेट के भगवान की छवि को धूमिल करने के लिए राणा अय्यूब जैसी नफरत से भरी हुई लेखिका की देश को जरूरत नहीं है।

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